कौन थे डॉक्टर द्वारकानाथ कोटणीस, जिनकी भारत के साथ तनाव के बीच चीन में मनाई गई जयंती
नई दिल्ली- चीन सरकार की ओर से डॉक्टर द्वारकानाथ कोटणीस की जयंती मनाई गई है, जिसमें विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले भारतीय और चाइनीज स्टूडेंट्स ऑनलाइन माध्यम से जोड़े गए। इस कार्यक्रम का आयोजन चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार से जुड़े एक संगठन की ओर से किया गया। डॉक्टर कोटणीस एक युवा भारतीय डॉक्टर थे, जिनका निधन 1942 में चीन-जापान युद्ध के दौरान चीन में ही हो गया था। 6 साल पहले कोटणीस की जयंती से कुछ दिनों पहले ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत दौरे पर आए थे। तब उन्होंने 19 सितंबर, 2014 को डॉक्टर कोटणीस की छोटी बहन मनोरमा कोटणीस को एक अवॉर्ड भी दिया था।
दरअसल, 1938 में जब भारत गुलाम था तो जापान युद्ध के दौरान चीन के सैनिकों की मदद के लिए भारत से 5 सदस्यीय डॉक्टरों की एक मेडिकल टीम इंडियन मेडिकल मिशन टीम के तौर पर चीन भेजी गई थी। डॉक्टरों की इस टीम में एम अटल, एम चोल्कर, द्वारकानाथ कोटणीस , बीके बासु और डी मुखर्जी जैसे बेहद युवा डॉक्टर शामिल थे। इन पांचों में से कोटणीस को छोड़कर सभी वतन लौटे, लेकिन उनका वहीं निधन हो गया था। चीन में चाइनीज पीपुल्स एसोसिएशन फॉर फ्रेंडशिप विद फॉरेन कंट्रीज (CPAFFC) ने उन्हीं की 110वीं जयंती की याद में एक शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री रिलीज की है, जिसमें उस भारतीय युवा और होनहार डॉक्टर की विरासत पर चर्चा की गई है। खास बात ये है कि यह आयोजन ऐसे वक्त में हुआ है, जब लद्दाख में दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने युद्ध से ठीक पहले वाली स्थिति में हैं।
इस दौरान सीपीएएफएफसी के चेयरपर्सन लिन सॉन्गटियन ने भारत-चीन तनाव का हवाला देते हुए कहा कि दोनों देशों के युवा स्टूडेंट इसके बावजूद डॉक्यूमेंट्री बनाने से नहीं रुके। बल्कि, कोटणीस को याद करने के लिए उन्होंने चीन और भारत के बीच शांति और मित्रता की अपनी गहरी आशा को शॉर्ट वीडियो में शामिल किया है। इस कार्यक्रम में नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास के एक वरिष्ठ कूटनीतिज्ञ मा जिया भी शामिल हुए।
दरअसल, चीन की सेना के लिए डॉक्टर कोटणीस का ऐसा अमिट योगदान है जिसे चीन चाहकर भी उन्हें नहीं भुला सकता। यही वजह है कि चीन का कोई नेता जब भारत दौरे पर आता है तो महाराष्ट्र के उनके परिवार के सदस्य से जरूर मिलने की कोशिश करता है। चीन में उन्हें भारत-चीन मित्रता के प्रतीक के तौर पर सम्मान प्राप्त है। उनके निधन के वर्षों बाद भी चीन की आम जनता में उनकी निस्वार्थ मानव सेवा और अपने काम के प्रति लगन और समर्पण को लोग आज भी याद करते हैं। 10 अक्टूबर, 1910 को महाराष्ट्र के सोलापुर में जन्मे डॉक्टर कोटणीस ने मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से मेडिसिन की शिक्षा ली थी।
कहते हैं कि डॉक्टर कोटणीस ने करीब 5 साल तक चीन में रहकर अपने पेशे के जरिए अपना अनमोल योगदान दिया था। युद्ध के वक्त में तो उन्होंने लगातार 72-72 घंटों तक घायलों की इलाज करके सैकड़ों चीनी सैनिकों की जान बचाई थी। आखिरकार काम के दबाव में वह बीमार हो गए और 9 दिसंबर, 1942 को महज 32 साल की युवा अवस्था में चीन में ही उन्होंने अंतिम सांसें लीं। उनकी मौत पर चीन का नेता माओ जेडोंग जो बाद में तानाशाह बना, उसने कहा था, 'सेना ने अपने सहायक हाथ को गंवा दिया और देश ने अपना एक दोस्त खो दिया है।'
इससे पहले उनकी 110वीं जयंती पर मुंबई में भी एक वेबिनार आयोजित किया गया, जिनमें चीन के काउंसल जनरल तांग गुओकाई ने भारत-चीन मित्रता में उनके योगदान को याद किया। चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ ने कहा है कि, 'भारत और चीन की संस्कृति और परंपरा में कई समानताएं हैं, ठीक उसी तरह जैसे कि डॉक्टर कोटणीस को चीन में भारतीय माना जाता है और भारत में चाइनीज।'
शी जिनपिंग ने डॉक्टर कोटणीस की बहन मनोरमा कोटणीस को दिल्ली में 6 वर्ष पहले फाइव प्रिंसिपल्स ऑफ पीसफुल को-एक्सिस्टेंस फ्रेंडशिप अवॉर्ड से नवाजा था।