कौन हैं जस्टिस पुष्पा वीरेंद्र गनेडिवाला? बॉम्बे हाई कोर्ट की जज जिनके 'विवादित' फैसलों पर हो रही है चर्चा
नई दिल्ली- बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court)की जज जस्टिस पुष्पा वीरेंद्र गनेडिवाला (Justice Pushpa Virendra Ganediwala) इन दिनों अपने कुछ विवादित फैसलों की वजह से सुर्खियों में हैं। उन्होंने हाल में कुछ ऐसे फैसले दिए हैं, जिसे काफी विवादस्पद माना जा रहा है और एक पर तो सुप्रीम कोर्ट ने रोक भी लगा दी है। जस्टिस गनेडिवाला 2019 में ही हाई कोर्ट जज बनी हैं और अभी नागपुर बेंच में पदास्थापित हैं। उन्होंने बच्चों से जुड़े यौन अपराधों को लेकर पॉक्सो कानून (POCSO Act) की व्याख्या करते हुए जो टिप्पणियां की हैं, उसी पर बहस हो रही है।
इस वजह से चर्चा में हैं जस्टिस पुष्पा वीरेंद्र गनेडिवाला
दरअसल, बीते 19 जनवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच (Nagpur bench of Bombay High Court) में जस्टिस पुष्पा वीरेंद्र गनेडिवाला (Justice Pushpa Virendra Ganediwala)की अगुवाई वाली अदालत ने चार साल पुराने एक मामले में फैसला देते हुए कहा था कि 'स्किन टू स्किन' स्पर्श हुए बिना या कपड़ों के ऊपर से नाबालिग पीड़िता को 'स्पर्श करना' पॉक्सो कानून (POCSO Act) या यौन अपराधों पर बाल संरक्षण कानून के तहत यौन हमला नहीं माना जा सकता। फैसले में कहा गया था कि इस कानून के तहत अपराध करार देने के लिए यौन इच्छा के साथ-साथ 'स्किन टू स्किन' संपर्क होना चाहिए। 2016 के दिसंबर की इस घटना में 39 वर्षीय एक आदमी पर 12 साल की पीड़िता का यौन उत्पीड़न का आरोप था। अदालत ने पाया कि आरोपी ने पीड़ित बच्ची को 'पकड़ा' था, लेकिन यह पॉक्सो कानून (POCSO Act)के तहत यौन हमला नहीं, बल्कि आईपीसी की धारा 354 या एक महिला के साथ छेड़छाड़ का अपराध है। इसके पीछे जज ने दलील दिया कि पीड़िता कपड़े में थी, इसलिए आरोपी और उसका स्किन टू स्किन संपर्क (skin to skin contact) नहीं हुआ, और ऐसे में इसे यौन हमला (sexual assault)नहीं माना जा सकता।
बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले से हैरान हो गए लोग
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला ना केवल पीड़िता के लिए, बल्कि बाल सुरक्षा अधिकारों से जुड़े विशेषज्ञों के लिए भी हैरान करने वाला था, क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर यौन हमलों का व्याख्या इस तरह से किया जाएगा तो यह अपराध एक खतरनाक शक्ल अख्तियार कर सकता है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आरोपी को बरी करने वाले विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दिया। अदालत में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि यह खतरनाक मिसाल बनेगा कि बिना त्वचा से त्वचा संपर्क हुए यौन उत्पीड़न हो ही नहीं सकता। बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले विशेषज्ञों का भी कहना है पॉक्सो कानून की यह बहुत ही अजीब व्याख्या है कि कपड़ों के ऊपर से यौन हमला नहीं किया जा सकता। सार्वजनिक स्थानों पर तो इससे महिलाओं का जीना मुहाल हो जाएगा।
'हाथ पकड़ना, पैंट की जिप खोलना यौन उत्पीड़न नहीं'
इसके बाद जस्टिस पुष्पा वीरेंद्र गनेडिवाला का एक और फैसला आया है। उनकी अगुवाई वाली बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की एकल पीठ ने यह व्यवस्था दी है कि किसी लड़की का हाथ पकड़ना और आरोपी का पैंट की जिप खोलना प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज ऐक्ट, 2012 (POCSO) के तहत यौन हमले की श्रेणी में नहीं आता। अदालत के मुताबिक यह आईपीसी की धारा 354 ए (1) के तहत यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है। इस केस में 50 साल का एक आरोपी 5 साल की बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराए जाने के बाद अदालत में पहुंचा था। सेशन कोर्ट ने उसे पॉक्सो ऐक्ट के तहत घोर यौन उत्पीड़न का दोषी मानते हुए 5 साल की कठोर सजा और 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।
2019 बॉम्बे हाई कोर्ट की जज बनीं
हालांकि, हाल के इन विवादास्पद फैसलों से पहले जस्टिस पुष्पा वीरेंद्र गनेडिवाला की पहले कई अहम फैसलों लेकर काफी सराहना हो चुकी है। 1969 में महाराष्ट्र के अमरावती जिले में जन्मीं जस्टिस गनेडिवाला 2007 में जिला जज नियुक्त हुई थीं। वह मुंबई के सिविल कोर्ट में और नागपुर के डिस्ट्रिक्ट और फैमिली कोर्ट की जज भी रह चुकी हैं। उसके बाद वह नागपुर की मुख्य जिला और सेशन जज बनीं। बाद में उनकी नियुक्ति बॉम्बे हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के तौर पर हुई। 2019 में उनकी नियुक्ति बॉम्बे हाई कोर्ट के एडिश्नल जज के तौर पर हुई थी।
कई बड़े फैसले दे चुकी हैं
जस्टिस गनेडिवाला 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट के उस बेंच में शामिल थीं, जिसने यह फैसला दिया था कि अभियुक्तों के पैरोल का अधिकार सीमित है और एक ही साल में वह कई बार इसकी मांग नहीं कर सकते। 2019 में वो उस डबल बेंच में शामिल थीं जिसने हत्या के दो अलग-अलग मामलों में अभियुक्त की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का फैसला दिया था। सितंबर 2020 में ये जिस डबल बेंच की सदस्य थीं, उसने नागपुर में कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए महाराष्ट्र सरकार को पर्याप्त स्टाफ और सुविधाएं मुहैया करवाने का निर्देश दिया था। यही नहीं, पिछले साल इन्होंने जेईई (JEE)परीक्षा रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन अधिकारियों को निर्देश दिया था कि जो लोग कोरोना या बाढ़ की वजह से परीक्षा ना दे पाएं उनके लिए फिर से परीक्षा की व्यवस्था करवाई जाए। यही नहीं इन्होंने कोरोना की वजह से एक गर्भवती महिला को अस्पताल से सलाह नहीं मिलने पर भी सरकार को उसके इलाज के लिए इंतजाम करने का निर्देश दिया था। (जस्टिस पुष्पा वीरेंद्र गनेडिवाला की तस्वीरें- बॉम्बे बार एसोसिएशन साभार)
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