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जब दिल्ली जल रही थी, तब एक बाप-बेटे ने बचाई 60 बेगुनाहों की जान

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नई दिल्ली- दिल्ली हिंसा में मरने वालों की संख्या 50 से ऊपर हो चुकी है। लेकिन, बहुत कम लोगों को पता है कि जब दिल्ली को कुछ दंगाई जला रहे थे तो उसमें समाज के हर तबके से ऐसे लोग भी निकल कर आए जो अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों की जान बचाई और उनकी संपत्तियों की रक्षा की। ये दंगे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जगह-जगह सड़कों को घेरकर हो रहे धरना-प्रदर्शनों और उसके कथित विरोध से शुरू हुए थे। लेकिन, इसी दौरान एक पिता-पुत्र की ऐसी कहानी भी सामने आई है, जिन्होंने मानवता की रक्षा करते समय न किसी का धर्म देखा और न ही उनकी लिबास। उन्होंने सिर्फ इंसानियत देखी और 60 लोगों को मौत के मुंह से निकालकर सुरक्षित जगहों तक पहुंचा दिया।

बाप-बेटे ने बचाई 60 से ज्यादा बेगुनाहों की जान

बाप-बेटे ने बचाई 60 से ज्यादा बेगुनाहों की जान

दिल्ली धीरे-धीरे संभल रही है। लेकिन, जिनका दंगों से सीधा वास्ता हुआ है, वह उस खौफनाक मंजर को कभी अपने दिल-दिमाग से नहीं निकाल सकेंगे। हजारों दंगाइयों ने सैकड़ों लोगों पर हमला किया। 50 से ज्यादा मार डाले गए। दो सौ से ज्यादा जख्मी कर दिए गए। लेकिन, इन तमाम कहानियों के बीच एक ऐसी कहानी भी है, जिसने न हिंदू देखा और न मुसलमान। सिर्फ इंसानियत देखी। सिर्फ इंसान को देखा। ये कहानी है दंगा प्रभावित उत्तर-पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी इलाके की। जहां 53 साल के मोहिंदर सिंह ने अपने 28 वर्ष के बेटे इंदरजीत के साथ मिलकर 60 से ज्यादा लोगों की जान बचा ली। अगर ये बाप-बेटे उस वक्त अपनी जमीर की न सुने होते तो पता नहीं कि हताहतों का आंकड़ा कितना ऊपर जाता।

स्कूटी और बाइक से निकालकर बचाई जान

स्कूटी और बाइक से निकालकर बचाई जान

24 फरवरी की घटना है। मोहिंदर सिंह अपने घर के पास ही अपनी दुकान के पास थे। तभी उनके इलाके में एक भीड़ पहुंच गई। मोहिंदर और इंदरजीत ने अपनी बाइक और स्कूटी निकाली और भय से कांप रहे 60 से ज्यादा लोगों को एक-एक करके करीब 1.5 किलोमीटर दूर ही करदमपुरी इलाके में पहुंचा दिया। एनडीटीवी से बातचीत मे मोहिंदर ने कहा, 'मुसलमान जमा हो गए थे और फैसला कर लिया था कि इलाके को छोड़कर पड़ोस के इलाके में चले जाएंगे। लेकिन, तभी वे भीड़ से घिर गए। मैं बेगुनाह बच्चों के चेहरे पर मौजूद डर को नहीं देख सकता था।' वे बोले- '1984 के दंगों में हिंदुओं के परिवार थे, जिन्होंने हमें बचाया था, लेकिन इन दंगों में हमने ये नहीं देखा कि किस समुदाय के लोगों को हम बचा रहे हैं। यह सिर्फ मानवता के लिए था और सिर्फ इंसानों को बचाना चाहता था, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।'

'जो संकट में थे उन्हें बचाना चाहते थे'

'जो संकट में थे उन्हें बचाना चाहते थे'

मोहिंदर के बेटे इंदरजीत ने भी पिता की तरह ही का नजरिया जाहिर किया। उनके मुताबिक, 'जब मैं लोगों को ले जा रहा था तो बिल्कुल भी डर नहीं रहा था। उस समय मेरे मन में सिर्फ एक बात थी कि जिसपर पर भी संकट है, उसे बचाना है।' मोहिंदर 1984 के दंगों को याद कर कहते हैं, 'तब मैं 16 साल का था और वह खौफनाक मंजर अभी भी मुझे याद है। जब यहां हिंसा भड़की तो मेरे मन में तीन दशक पुराने उस दंगे की याद ताजा हो गई। उसने मुझे इंसन की जिंदगी की अहमियत याद दिलाई।"

सूझबूझ से टाल दी बड़ी दुर्घटना

सूझबूझ से टाल दी बड़ी दुर्घटना

हिंसक भीड़ ने उस घर पर भी हमला किया था, जिसमें कम से कम 10 सिलेंडर पड़े थे। इंदरजीत ने कई सिलेंडर को बाहर निकाल दिया और पास के पंप से आग पर पानी फेंका नहीं तो कई घर तबाह हो सकते थे। वो घर उनके पड़ोसी 30 साल के मोहम्मद नईम का था। आरोपों के मुताबिक उसका घर लूट लिया गया, पास में उसकी दुकान में तोड़-फोड़ कर दी गई। उस भयानक मंजर को याद करते हुए नईम कहते हैं, 'हमारे घर और दुकान पर कम से कम 1,000 लोगों की भीड़ ने हमला किया था। वे नारेबाजी कर रहे थे और कई के हाथों में तलवारें भी थीं। घर में जितने भी जेवर थे, सब लूट लिया।.....जान बचाने के लिए परिवार की महिलाएं पीछे से भाग गईं। हम लोग बच गए थे और बहुत ही डर गए थे। लेकिन सिंह ने हमें स्कूटी पर बिठाया और सुरक्षित जगह तक पहुंचा दिया।' नईम का कहना है कि अगर बुद्धि का परिचय देते हुए सिलेंडर समय पर नहीं निकाले गए होते तो पूरा इलाका चपेट में आ जाता।

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English summary
In Gokulpuri, Delhi, 53-year-old Mohinder Singh along with his 28-year-old son Inderjeet saved more than 60 lives.
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