जब गोलियों की बौछार के बीच भारत और पाकिस्तान के कमाँडरों ने लिखे एक दूसरे को पत्र
1971 युद्ध के 50 वर्ष पूरे होने पर नौंवी कड़ी में आज जानिए जब जमालपुर की लड़ाई के दौरान ज़बरदस्त गोलीबारी के बीच भारत और पाकिस्तान के कमांडरों ने एक दूसरे को पत्र लिखे. पढ़िए रेहान फ़ज़ल की विवेचना.
1971 की लड़ाई में जब पूर्वी मोर्चे में बख़्शीगंज पर भारतीय सैनिकों का कब्ज़ा हो गया तो उस इलाके के कमाँडर मेजर जनरल गुरबख़्श सिंह गिल ने वहाँ जाने की इच्छा प्रकट की.
ब्रिगेडियर हरदेव सिंह क्लेर ने उन पर ज़ोर डाला कि वो वहाँ बाद में हैलिकॉप्टर से आएं जब उस इलाके पर भारतीय सैनिकों का पूरा नियंत्रण हो जाए. लेकिन जनरल गिल नहीं माने. दोनों अफ़सर एक जोंगा पर सवार हुए. ब्रिगेडियर क्लेर उसे ड्राइव कर रहे थे और गिल उनके बगल में बैठे थे. अभी वो कुछ मील ही चले होंगे कि जोंगा का टायर एक लैंडमाइन के ऊपर से गुज़रा. एक ज़ोरदार धमाका हुआ और जोंगा में सवार दोनों सैनिक अफ़सर उछलकर सड़क पर आ गिरे.
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बाद में भारतीय सेना से मेजर जनरल के पद से रिटायर हुए हरदेव सिंह क्लेर लिखते हैं, "मैंने उठकर अपने अंगों को हिलाया और पाया कि मैं चल सकता हूँ. जनरल गिल जोंगा की दूसरी तरफ़ गिरे पड़े थे. उनके पैर बुरी तरह से क्षत-विक्षत हो चुके थे. मैं देख सकता था कि उन्हें ठीक करना हमारे बस की बात नहीं थी. मैं उन्हें पीछे आ रहे वाहन में बैठाकर 13 गार्ड के मेडिकल एड सेंटर में ले गया जहाँ डाक्टरों ने उनकी जाँच की. फिर उन्हें हैलिकॉप्टर में बैठाकर गुवाहाटी के सैनिक अस्पताल ले जाया गया. मेजर जनरल गंधर्व नागरा को जो 2 इनफ़ैन्ट्री डिवीजन को कमान कर रहे थे, जनरल गिल की जगह 101 कमेयूनिकेशन ज़ोन की कमान सौंपी गई. फिर हमने जमालपुर के कब्ज़े की तैयारी शुरू कर दी."
सिर में गोली लगने से भारतीय सैनिक की मौत
जमालपुर के रक्षण की ज़िम्मेदारी पाकिस्तानी सेना की 31 बलूच रेजिमेंट को सौंपी गई थी. जमालपुर ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे एक महत्वपूर्ण संचार केंद्र था.
1एमएलआई ने पाकिस्तानी सेना के पीछे जमालपुर ढाका रोड पर एक रोड ब्लॉक बना दिया था जबकि 13 गार्ड्स ने जमालपुर मैमनसिंह सड़क को काट दिया था.
8 दिसंबर, 1971 को ब्रिगेडियर क्लेर ने अपने हैलिकॉप्टर से 13 गार्ड्स द्वारा बनाए गए रोड ब्लॉक के पास लैंड किया. चारों तरफ़ गोलियाँ चल रही थीं. वहाँ मौजूद भारतीय सैनिकों ने लाइट फ्लेयर्स छोड़ कर उन्हें वहाँ लैंड न करने के लिए आगाह किया. लेकिन ब्रिगेडियर क्लेर ने उसकी परवाह नहीं की.
नीचे उतरते ही एक जवान उन्हें वहाँ चल रहे एक्शन के बारे में ब्रीफ़ ही कर रहा था कि एक गोली ब्रिगेडियर क्लेर की बगल से गुज़रती हुई उस सैनिक के सिर में लगी. गोली उसके हेलमेट को पार कर गई और उस सैनिक की वहीं मृत्यु हो गई. ये बताता था कि भारतीय सैनिकों को कितनी खराब गुणवत्ता के हेलमेट दिए गए थे.
ब्रिगेडियर क्लेर पर जमालपुर पर हमला करने का दबाव
पूर्वी कमान के कमाँडर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने ब्रिगेडियर क्लेर से रेडियो पर संपर्क कर कहा कि वो उसी रात जमालपुर पर हमला करें चाहे इसके लिए भारत को कितने ही सैनिकों की बलि देनी पड़े.
ब्रिगेडियर क्लेर ने जवाब दिया- "मैं दुश्मन के पीछ रह कर हालात का जाएज़ा ले रहा हूँ. मैं तभी हमला करूँगा जब मैं पूरी तरह से तैयार हो जाऊंगा."
मेजर जनरल (रिटायर्ड) हरदेव सिंह क्लेर लिखते हैं, "जनरल अरोड़ा मेरे पास आ कर खुद हालात का जाएज़ा लेना चाहते थे लेकिन मैंने उनसे कहा कि मौजूदा हालात में उनके इतने आगे आने में जोखिम है. मैं इस स्थिति में नहीं हूँ कि उन्हें वहाँ सुरक्षित लैंड करने की गारंटी दे सकूँ. लेकिन मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि तुरा में हुए वॉर गेम्स में जिस कार्यक्रम पर सहमति हुई थी, मैं उसका पालन करूँगा. वो मेरी बात मान तो गए लेकिन मैं देख सकता था कि वो बहुत दबाव में थे."
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जमालपुर गैरिसन के कमाँडर को क्लेर का पत्र
अगले दिन 9 दिसंबर को कर्नल बुलबुल बरार से विचार विमर्श करने के बाद ब्रिगेडियर क्लेर ने तय किया कि जमालपुर के पाकिस्तानी गैरिसन कमाँडर को हथियार डालने का विकल्प दिया जाए. कर्नल बुलबुल बरार ने जनरल क्लेर के राइटिंग पैड पर पाकिस्तानी कमाँडर को संबोधित चार पन्ने का नोट लिखा. क्लेर ने उस पर अपने दस्तख़त किए. पत्र में लिखा गया
कमाँडर
जमालपुर गैरिसन
मुझे आपको सूचित करने का निर्देश हुआ है कि आपकी गैरिसन को हर तरफ़ से काट दिया गया है और आपके बच निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा है. तोपखाने के साथ एक ब्रिगेड ने आपको घेर लिया है और सुबह तक एक और ब्रिगेड यहाँ पहुंच जाएगी. आपने अभी तक हमारी वायुसेना का बहुत कम स्वाद चखा है. अगर आप हमारे सामने हथियार डाल देते हैं तो एक सैनिक के रूप में मैं आपकी सुरक्षा और हमारी तरफ़ से अच्छे व्यवहार का आश्वासन देता हूँ. मैं समझता हूँ कि आप अपने अहम के लिए अपने मातहत सैनिकों की जान ख़तरे में डालने की बेवकूफ़ी नहीं करेंगे. मैं शाम साढ़े छह बजे तक आपके जवाब का इंतज़ार करूँगा. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपको नेस्तोनबूद करने के लिए हमें मिग जहाज़ों की 40 उड़ानें एलॉट की गई हैं. मैं उम्मीद करता हूँ कि आप इस पत्र के वाहक के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करेंगे और उसको कोई नुक़सान नहीं पहुंचाएंगे.
हस्ताक्षर
ब्रिगेडियर एच एस क्लेर
पाकिस्तानी कमाँडर का साहसिक जवाब
मुक्ति वाहिनी के संदेशवाहक ज़ोहल हक़ मुंशी के ज़रिए इस संदेश को पाकिस्तानी कमाँडर के पास पहुंचाया गया. वो एक साइकिल पर सफ़ेद झंडा लगाए पाकिस्तानी इलाके में गए.
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लेफ़्टिनेंट कर्नल पुंटामबेकर लिखते हैं, "पाकिस्तानी सैनिकों ने उस संदेशवाहक को पकड़ कर पहले तो उसकी पिटाई की. वो बेहोश होने ही वाला था कि एक पाकिस्तानी अफ़सर ने वहाँ पहुंचकर उसे बचाया. जब उसके शरीर की तलाशी ली गई तो वहाँ उन्हें ब्रिगेडियर क्लेर का लिखा हुआ नोट मिला. वो ज़ोहल हक़ मुंशी को गैरिसन कमाँडर लेफ़्टिनेंट कमाँडर सुल्तान अहमद के पास ले गए. रात आठ बजे कर्नल सुल्तान अहमद ने उसी संदेशवाहक के ज़रिए भारतीय ब्रिगेडियर को एक संदेश भेजा."
प्रिय ब्रिगेडियर
पत्र के लिए धन्यवाद. यहाँ जमालपुर में हम लड़ाई शुरू करने का इंतज़ार कर रहे हैं जो कि अभी शुरू नहीं हुई है. इसलिए बातें करने के बजाए लड़ाई शुरू करिए. हमें पराजित करने के लिए 40 उड़ानें काफ़ी नहीं हैं. आप अपनी सरकार से और उड़ानों की माँग करिए. संदेशवाहक के साथ उचित व्यवहार न करने के बारे में आपकी टिप्पणी ग़ैर-ज़रूरी हैं. ये दिखाता है कि पाकिस्तानी सैनिकों की मेहमाननवाज़ी को आप कितना कम आँकते हैं. मुझे उम्मीद है कि उसे हमारी दी गई चाय पसंद आई होगी. उम्मीद करता हूँ कि अगली बार जब आप से मुलाकात हो तो आपको स्टेन गन के साथ पाऊँ न कि कलम के साथ जिस पर आपकी बहुत महारत दिखाई देती है.
आपका शुभचिंतक
लेफ़्टिनेंट कर्नल सुल्तान अहमद
जमालपुर फ़ोर्सेज़
200 पाकिस्तानी सैनिक जमालपुर से बच निकलने में सफल
चारों तरफ़ से घेर लिए जाने के बावजूद लिखे गए इस पत्र को जीवट और निर्भीकता की मिसाल माना गया. ख़ासकर ये देखते हुए कि इस संदेश के अंदर 7.62 राइफ़ल की एक गोली को लपेट कर भेजा गया था. ये खाली गीदड़ भभकी नहीं थी.
लेफ़्टिनेंट कर्नल रिफ़त नदीम अहमद लाहौर से छपने वाले अख़बार फ्राइडे टाइम्स के 16 अक्तूबर, 2021 के अंक में छपे अपने लेख में लिखते हैं, "इस पत्र को भेजने के तुरंत बाद 31 बलूच के कमाँडिंग अफ़सर को निर्देश मिले कि वो जमालपुर छोड़ कर माधूपुर की तरफ़ बढ़ने की कोशिश करें. इस प्रयास में बहुत से पाकिस्तानी सैनिक मारे गए लेकिन इसके बावजूद करीब 200 सैनिक 93 ब्रिगेड और 33 पंजाब से जा मिलने में सफल हो गए. वहाँ से वो ढाका से 30 किलोमीटर दूर कलियाकैर की तरफ़ बढ़ गए. 13 दिसंबर को उन्हें आदेश हुए कि वो ढाका के बाहर तुंगाई नदी पर मोर्चा सँभालें. तब तक भारतीय सैनिक चारों तरफ़ से ढाका की तरफ बढ़ रहे थे. जब पाकिस्तानी सैनिकों को हथियार डालने का आदेश दिया गया तब भी उन्होंने लड़ाई रोकी नहीं वो भारतीय सैनिकों का मुकाबला करते रहे."
ब्रिगेडियर हरदेव सिंह क्लेर ने 11 दिसंबर की सुबह 2 बजे जमालपुर पर हमला करने के आदेश दे दिए. दिन भर पाकिस्तानी ठिकाने पर हवाई हमलों का सिलसिला जारी रहा.
सूरज डूबने से कुछ समय पहले भारतीय विमान ने वहाँ दो नापाम बम भी गिराए. उसी शाम करीब 4 बजे पाकिस्तानी सैनिकों ने 1 एमएलआई के कब्ज़े के इलाके पर ज़बरदस्त फ़ायरिंग शुरू कर दी.
पाकिस्तानी 120 एमएम मोर्टर गोलों का इस्तेमाल कर रहे थे ताकि भारतीय रक्षण थोड़ा नर्म पड़ जाए. ब्रिगेडयर क्लेर ने इससे अंदाज़ा लगाया कि उस रात पाकिस्तानी सैनिक बच निकलने का प्रयास करेंगे.
पाकिस्तानी सैनिकों को ग़लतफ़हमी
मेजर जनरल (रिटायर्ड) क्लेर लिखते हैं, "जमालपुर में जब सूर्य अस्त हुआ तो लड़ाई के मैदान में शाँति थी. आप इसे पहले से चेतावनी समझ लें या छठी इंद्री या महज़ सौभाग्य, मैंने पहले पाकिस्तानियों पर हमला करने के दिए आदेश को रद्द किया और कमाँडिंग अफ़सरों से डिफ़ेंसिव लड़ाई के लिए तैयार रहने के लिए कहा. मैंने अंदाज़ा लगाया कि पाकिस्तानी लड़ते हुए पीछे हटने की कोशिश करेंगे और कर्नल बुलबुल बरार को इसका सबसे अधिक सामना करना पड़ेगा. फिर मैंने जनरल नागरा से संपर्क कर कहा कि मैं अगली सुबह तक उन्हें जमालपुर दे दूँगा. आप सात बजे तक वहाँ लैंड करने की कोशिश करिए और हमारे सैनिकों के लिए अच्छा नाश्ता भी लेकर आइए."
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कर्नल सुल्तान अहमद के सैनिकों से निपटने की पूरी योजना बनाकर ब्रिगेडियर क्लेर सोने चले गए. लेकिन 10 दिसंबर की आधी रात के बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों की तरफ गोलीबारी शुरू कर दी. लेकिन 1 एमएलआई सैनिकों ने फ़ायर अनुशासन का बेहतरीन करते हुए उस फ़ायरिंग का जवाब नहीं दिया. इससे पाकिस्तानी सैनिकों को ये ग़लतफ़हमी हो गई कि भारतीय सैनिक पीछे की तरफ़ चले गए हैं. कर्नल सुल्तान अहमद ने तब अपने सैनिकों को तीन की लाइन में जमालपुर से जा रही सड़क पर मार्च कराना शुरू कर दिया.
पाकिस्तानी सैनिक फँसे
तत्कालीन ब्रिगेडियर क्लेर लिखते हैं, "रात को फ़ायरिंग की आवाज़ सुनकर मेरी आँख खुल गई. मैंने अपने इंटेलिजेंस अफ़सर बलबीर सिंह और अनुवादक ताहिर के साथ सड़क से मात्र 15 ग़ज़ की दूरी पर एक एमएमजी बंकर के पास पोज़ीशन ले ली. करीब 1 बजे हमने देखा कि अँधेरे में पाकिस्तानी सैनिकों का एक जत्था हमारे सामने से गुज़र रहा है. हम साँस रोके चुपचाप बैठे रहे. पाकिस्तान की पूरी बटालियन को किलिंग ज़ोन में आने दिया गया. तब मैंने एमएमजी गनर के कंधे को छू कर उसे फ़ायरिग करने का इशारा किया."
"हमारे फ़ायरिंग शुरू करते ही दूसरे सैनिकों ने भी फ़ायरिंग शुरू कर दी. मेरे सामने ही 10 से 15 पाकिस्तानी सैनिक धराशाई हो गए. तब जाकर कर्नल सुल्तान अहमद को महसूस हुआ कि उनको फंसा लिया गया है. उन्होंने अपने सैनिकों को फिर से संगठित कर सुरक्षित निकलने का रास्ता ढूंढने की कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. पाकिस्तानी सैनिकों के बहुत नज़दीक रहने के बावजूद फ़्रेंडली फ़ायर में भी हमारा कोई सैनिक हताहत नहीं हुआ."
234 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत
जब सुबह हुई तो भारतीय सैनिकों ने देखा कि उनके बंकर के 5 से 10 ग़ज़ की दूरी पर कई पाकिस्तानी सैनिकों के शव पड़े हुए थे. उसी सड़क पर 500 मीटर आगे कर्नल सुल्तान अहमद की जीप खड़ी हुई थी. इसके बाद ब्रिगेडियर क्लेर कर्नल बुलबुल बरार के साथ 31 बलूच रेजिमेंट के मुख्यालय गए. वहाँ मेजर फ़ज़्ले अकबर और लेफ़्टिनेंट ज़ैदी आठ जूनियर कमीशंड अफ़सरों के साथ हथियार डालने के लिए तैयार थे.
जब लड़ाई के इलाके का जाएज़ा लिया गया तो पाकिस्तान के 234 सैनिकों के शवों को गिना. कुल 376 पाकिस्तानी सैनिक घायल हुए जिनका भारतीय डाक्टरों ने इलाज किया. इसके अलावा 61 अन्य पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया. भारत की तरफ़ से 10 सैनिकों की जान गई जबकि आठ अन्य सैनिक घायल हुए.
ब्रिगेडियर क्लेर की जैकेट पर तीन गोलियाँ
अगले दिन सुबह 7 बजे जनरल नागरा ने जमालपुर में लैंड किया. उन्होंने उतरते ही ब्रिगेडियर क्लेर को गले लगाते हुए कहा, 'हैरी तुम ही ये काम अंजाम दे सकते थे.' वो अपने साथ चार विदेशी संवाददाताओं को भी लाए थे.
मेजर जनरल (रिटायर्ड) क्लेर लिखते हैं, "उनमें से एक ने मेरी पैरा जैकेट में गोलियों से हुए छेद की तरफ़ मेरा ध्यान आकृष्ट किया. मुझे पता नहीं था कि इतनी नज़दीक से मौत से मेरा साबका पड़ा था. तीन गोलियाँ मेरी जैकेट को पार कर गईं थीं जिसकी वजह से उसमें छह छेद बन गए थे. जब 31 बलूच के सभी सैनिकों की हाज़िरी ली गई तो हमने पाया कि लेफ़्टिनेंट कर्नल सुल्तान अहमद अपने करीब 200 सैनिकों के साथ वहाँ से बच निकले थे. जब हम जमालपुर शहर में घुसे तो भारी भीड़ ने हमारा स्वागत किया. उस इलाके के मुक्ति वाहिनी के प्रमुख कैप्टन ज़ैनुल आब्दीन ने हमारा नागरिक अभिनंदन कराया. वहाँ बाँगलादेश का झंडा फहराया गया और रबींद्रनाथ टैगोर का लिखा गीत 'आमार शोनार बाँगला' गाया गया जो बाद में बाँग्लादेश का राष्ट्रगान बना."
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दोनों कमाँडरों को देश का दूसरा सबसे बड़ा वीरता पदक
युद्ध के बाद ब्रिगेडियर मेजर जनरल हरदेव सिंह क्लेर और लेफ़्टिनेंट कर्नल सुल्तान अहमद को भारत और पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़े वीरता पुरस्कार महावीर चक्र और सितार ए जुर्रत दिया गया.
जब लड़ाई समाप्त हुई तो लेफ़्टिनेंट कर्नल केशव पुंतामबेकर ने युद्धबंदी कैंप में 31 बलूच रेजिमेंट के मुनीर अहमद बट्ट से संपर्क कर ब्रिगेडियर क्लेर द्वारा जमालपुर के कमाँडर के लिए लिखे गए पत्र की मूल प्रति हासिल की. उसकी तस्वीर खींचने के बाद उसको अपने यूनिट रिकॉर्ड में रखने के लिए वापस कर दिया गया.
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