जब एक 'पीर बाबा' ने बचपन में उसका 'रेप' किया..
"ये इतना दर्दनाक था कि मैं लगभग दो हफ़्ते तक ठीक से चल नहीं पा रहा था."
ये शब्द उस कश्मीरी शख़्स के हैं जो बचपन में यौन शोषण का शिकार हुए थे, अब वे 31 साल के हैं.
"ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था कि मेरे परिवार के सदस्य, रिश्तेदार, दोस्त या स्कूल के शिक्षक तक इस बात अंदाज़ा नहीं लगा पा रहे थे कि इस बच्चे के साथ कुछ ग़लत हुआ है."
"ये इतना दर्दनाक था कि मैं लगभग दो हफ़्ते तक ठीक से चल नहीं पा रहा था."
ये शब्द उस कश्मीरी शख़्स के हैं जो बचपन में यौन शोषण का शिकार हुए थे, अब वे 31 साल के हैं.
"ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था कि मेरे परिवार के सदस्य, रिश्तेदार, दोस्त या स्कूल के शिक्षक तक इस बात अंदाज़ा नहीं लगा पा रहे थे कि इस बच्चे के साथ कुछ ग़लत हुआ है."
बदनामी के डर से वे अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते हैं. जब वे 14 साल के साथ थे, एक बाबा ने कई बार उनका यौन शोषण किया.
उनके चाचा एक बाबा के पास आशीर्वाद लेने गए थे. उस समय वो उन्हें भी साथ ले गए थे.
'मेरी आत्मा मेरा शरीर छोड़ चुकी थी'
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "मेरे चाचा को बिज़नेस में भारी नुकसान हुआ था, इसलिए वो बाबा के पास मदद के लिए गए थे."
"बाबा ने चाचा से कहा कि उनके जिन (पवित्र आत्माएं) उनकी सभी समस्याओं का समाधान कर देंगे. लेकिन वो (आत्माएं) सिर्फ़ 10 से 14 साल के बच्चों से ही बात करते हैं."
"जिस दिन मैं बाबा से मिलने गया था, उन्होंने चाचा से कहा कि वो मुझे रात को वहीं छोड़ दें क्योंकि आत्माएं रात को ही बात करती हैं."
वो उस घटना का ज़िक्र करते हैं जब पहली बार उनका यौन शोषण किया गया था, "वो बहुत दर्दनाक था. ऐसा लगा था कि जैसे मेरी आत्मा मेरा शरीर छोड़ चुकी हो."
"मैं चीखना चाहता था, लेकिन उन्होंने अपने हाथों से मेरा मुंह दबा रखा था और कह रहे थे कि बस पांच मिनट और."
"जब उन्होंने मेरा बलात्कार कर लिया, उन्होंने मुझे धमकाया कि अगर मैं किसी से इस बारे में बताता हूं तो पवित्र आत्माएं मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर देंगी."
- मार न पड़े इसलिए वो रेप सहती रही और चुप रही
- नज़रिया: कठुआ रेप केस पर क्यों बंटा मीडिया
- भारत में बच्चों को रेप के बारे में कैसे बताएं?
शिकायत करने पर नपुंसक ठहरा देता है समाज
वो कहते हैं, "एक साल में मेरा तीन बार बलात्कार किया गया."
"इस बारे में मेरे परिवार वाले नहीं जानते थे और मैं इतना डरा हुआ था कि मैंने इस बारे में किसी से चर्चा नहीं की. मैं जानता था कि मैं फंस चुका हूं."
लड़कों के यौन दुर्व्यवहार के मामले बड़े पैमाने पर सामने नहीं आते हैं. इससे जुड़ा कलंक इसकी एक वजह है.
मनोवैज्ञानिक उफ़रा मीर कहती हैं, "समाज में पुरुषों के लिए नियम तय है, जिस तरह महिलाओं के लिए है. पुरुषों के साथ यौन दुर्व्यवहार के साथ भी कलंक जुड़ा है."
"अगर उनके साथ कुछ ग़लत होता है तो समाज उनकी मर्दानगी पर प्रश्न करता है और उसे नपुंसक ठहरा देता है."
केस लड़ रहे हैं...
यौन शोषण के शिकार वो शख़्स 14 सालों तक भीतर ही भीतर घुटते रहे.
उन्होंने कहा, "यह एहसास करने में मुझे 14 साल लग गए कि मेरी ग़लती थी ही नहीं और मुझे इस पर क्यों बात नहीं करनी चाहिए."
अब वे दूसरे पीड़ितों के साथ मिलकर बाबा के ख़िलाफ़ केस लड़ रहे हैं.
वो बताते हैं, "14 साल बाद, एक दिन मैंने एक पुलिस अधिकारी को टीवी पर कहते सुना कि अगर कोई बाबा के शोषण के शिकार हुआ है तो वो आगे आए."
"उस समय मुझे पता चला कि उस बाबा के ख़िलाफ़ दूसरे लोगों ने भी शिकायत दर्ज कराई है."
भारत में बच्चों के साथ यौन शोषण के मामले
अब वो बच्चों के लिए काम करन लगे हैं. वो उन बच्चों की मदद करते हैं जिनके साथ यौन शोषण हुआ है. वो उन्हें इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने को भी कहते हैं.
वो आशान्वित हैं कि बच्चों के यौन शोषण को रोकने के लिए एक दिन ठोस क़ानून बनाया जाएगा और इस बारे में लोगों को शिक्षित भी किया जाएगा.
विशेषज्ञ मानते हैं कि पुरुष यौन शोषण के मामले में पीड़ितों को मदद नहीं मिल पाती है. वो यह ज़ाहिर नहीं कर पाते हैं कि किस दर्द से गुजर रहे हैं. वो शोषण के बाद अंदर से टूट जाते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन ने साल 2002 में लड़कों और पुरुषों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा की एक समस्या के रूप में पहचान की जिसे काफ़ी हद तक उपेक्षित माना जाता रहा था.
एक आकलन के मुताबिक भारत में हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है. 2016 में बच्चों के साथ यौन शोषण के 36,022 मामले दर्ज किए गए थे.
कश्मीर यूनिवर्सिटी में क़ानून पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर हकीम यासिर अब्बास कहते हैं, "बच्चों के साथ यौन शोषण पर बात बहुत कम होती है अगर पीड़ित को लड़का हो तो और यही कारण है कि ऐसे मामले दर्ज ही नहीं किए जाते हैं."
पिछले महीने केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश प्रस्तावित किया था जिसमें 12 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ बलात्कार करने वाले को मौत की सज़ा देने की बात कही गई है.
कठुआ और उन्नाव मामले के बाद कैबिनेट ने यह प्रस्ताव पारित किया था.
मौजूदा क़ानून के मुताबिक अगर किसी लड़के साथ यौन शोषण होता है तो दोषी को 10 साल की सज़ा है, वहीं अगर लड़की के साथ ऐसा होता है तो यह सज़ा 20 साल की है.
रॉयटर्स के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अध्यादेश में लड़कों को लेकर किसी तरह की बात नहीं की गई है.
प्रोफ़ेसर हकीम यासिर अब्बास कहते हैं कि प्रस्तावित अध्यादेश में लड़कों के बारे में बात नहीं की गई है.
सामान्य फ़ौजदारी क़ानून के मुताबिक़ किसी मेल चाइल्ड के साथ किया गया यौन शोषण रेप के दायरे में नहीं आता है.