कोरोना: यूपी पंचायत चुनाव के बाद गांवों में दहशत, क्या है योगी सरकार की योजना
यूपी में पंचायत चुनाव के दौरान बड़ी तेज़ी से कोरोना के मामले बढ़े और इस कारण काफ़ी मौतें भी हो रही हैं. आख़िर सरकार की क्या योजना है?
गोरखपुर ज़िले में बड़हलगंज के रहने वाले गौरव दुबे दावा करते हैं कि यदि गांवों में ठीक से जांच हो जाए तो हर दूसरे-तीसरे घर में एक-दो लोग कोरोना पॉज़िटिव निकल जाएंगे.
गौरव दुबे जैसा दावा यूपी के लगभग सभी ज़िलों के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग करते हैं. उनके दावे के पीछे सबसे बड़ा कारण पंचायत चुनाव और उसकी वजह से बनी परिस्थितियां रहीं जिससे संक्रमित लोगों के संपर्क में बहुत से लोग आए.
गौरव दुबे कुछ उदाहरण देते हैं. वो कहते हैं, "हमारे गांव में एक सज्जन पंचायत चुनाव में वोट देने और अपने प्रत्याशी का प्रचार करने के लिए 13 अप्रैल को बेंगलुरु से यहां आए. 15 अप्रैल को मतदान के बाद उनकी तबीयत ख़राब हुई. दो दिन यहीं इलाज चला. फिर डॉक्टर ने कहा कि गोरखपुर ले जाइए और कोरोना की जांच कराइए. गोरखपुर ले जाया गया लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई."
गोरखपुर के ही एक बीजेपी नेता 14 अप्रैल को फ़ेसबुक पर पोस्ट डालते हैं कि "हम पूरे परिवार के साथ पॉज़िटिव हैं. मेरे संपर्क में जो लोग भी रहे हों, वो कृपया सतर्क हो जाएं."
14 अप्रैल के पहले उन्होंने जमकर प्रचार भी किया. ज़ाहिर है, कई और लोग भी संक्रमित हुए होंगे, लेकिन जांच न होने के कारण कुछ भी पता नहीं चला. नेताजी की 20 अप्रैल को मृत्यु हो गई.
दिल्ली से क़रीब 70 किमी दूर बुलंदशहर के परवाना गांव में पिछले दो हफ़्ते के भीतर 30 से ज़्यादा लोगों की मौत का दावा किया जा रहा है.
ग्रामीणों का दावा है कि मरने वाले हर उम्र के हैं लेकिन बुज़ुर्गों की संख्या ज़्यादा है. स्थानीय पत्रकार सौरभ शर्मा बताते हैं, "एक दिन में सात लोगों की मौत से गाँव की गलियां सुनसान हो चली हैं. मौत से भयभीत ग्रामीण घरों में क़ैद हो गए हैं. ग्रामीणों का दावा है कि पंचायत चुनाव में लोग दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद से वोट डालने के लिए गांव आए थे. यही कारण है कि गांव में संक्रमण फैल गया और लोग इसकी ज़द में आ गए. हालांकि मौत का कारण क्या है, इस बारे में गाँव वालों में कई मत हैं."
पंचायत चुनाव के बाद ख़राब होते हालात
दरअसल, उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव गांवों में कोरोना संक्रमण की प्रमुख वजह बन गया है. पहले तो पंचायत चुनाव में बिना किसी रोक-टोक के लोग देश के दूर-दराज़ इलाक़ों से अपने गांवों में वोट डालने और अपने प्रत्याशियों का प्रचार करने आए और दूसरी ओर, पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने वाले ज़्यादातर कर्मचारी और अध्यापक थे जिनमें से ज़्यादातर का संबंध किसी न किसी रूप में गांवों से है.
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मिर्ज़ापुर के रहने वाले दिनकर सिंह कहते हैं, "स्थिति यह है कि पिछले साल गांवों में न के बराबर दिखने वाला कोरोना संक्रमण अब उसे भी अपनी चपेट में ले चुका है. खांसी-बुख़ार के मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ग्रामीण स्तर पर ही लोग इलाज कर रहे हैं. हालत बिगड़ने पर अस्पताल ले जा रहे हैं लेकिन कई बार अस्पताल पहुंचते-पहुंचते देर हो जाती है और मरीज़ की मौत भी हो जा रही है."
चार चरणों में हुए पंचायत चुनाव में मतदान संपन्न कराने के लिए जो मतदानकर्मी ड्यूटी पर लगाए गए थे, बड़ी संख्या में उनके कोरोना संक्रमित होने और तमाम लोगों के संक्रमण की वजह से मौत होने की भी ख़बरें आई हैं.
बेसिक शिक्षक संघ ने तो चुनाव आयोग और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर चुनाव ड्यूटी में लगे 700 से ज़्यादा शिक्षकों की कोरोना संक्रमण से मौत के संबंध में पत्र भी लिखा था जिससे हड़कंप मच गया.
राज्य में इस समय कोरोना संक्रमण के कुल 2,72,568 सक्रिय मामले हैं और अब तक कुल 13,798 लोगों की मौत हो चुकी है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले कुछ दिनों से कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी ज़रूर आई है लेकिन मृतकों की संख्या कम नहीं हो रही है. मंगलवार को भी एक दिन में कोरोना संक्रमण की वजह से 352 लोगों की मौत हो गई.
सरकार का विशेष कोरोना जांच अभियान
राज्य के अपर मुख्य सचिव सूचना नवनीत सहगल कहते हैं कि संक्रमण के मामले में गांव और शहर के अलग-अलग आंकड़े नहीं हैं, सिर्फ़ ज़िलेवार आंकड़े ही जारी होते हैं. लेकिन गांवों में संक्रमण की जानकारी के लिए ही बुधवार से एक सप्ताह का विशेष कोरोना जांच अभियान चलाया जा रहा है.
बीबीसी से बातचीत में नवनीत सहगल ने बताया, "90 हज़ार राजस्व गांवों में इस अभियान को चलाया जाएगा. इसके लिए दस लाख एंटिजन किट और मेडिकल किट्स दिए गए हैं. एंटीजन टेस्ट में जो ग्रामीण कोरोना संक्रमित पाया जाएगा, उसका गांव में ही तत्काल इलाज शुरू किया जाएगा. संक्रमित व्यक्ति को उसके घर में आइसोलेट किया जाएगा और यदि घर में जगह नहीं हुई तो गांव के पंचायत घर में आइसोलेशन की व्यवस्था की जाएगी."
ग्रामीण क्षेत्रों में इस विशेष जांच अभियान के लिए छह हज़ार रैपिड रेस्पॉन्स टीम तैयार की गई हैं जो एक हफ़्ते में इन सभी गांवों में जांच का काम पूरा करेंगी. नवनीत सहगल कहते हैं कि ग्रामीण इलाक़ों में इसीलिए तेज़ी से जांच अभियान चलाया जा रहा है क्योंकि अभी गांवों में लोग टेस्ट कराने के लिए आगे नहीं आ रहे थे.
राज्य सरकार गांवों में निगरानी समितियों के माध्यम से विशेष जांच अभियान चलाने जा रही है लेकिन कोरोना संक्रमण के पहले चरण के दौरान बनीं निगरानी समितियाँ लगभग निष्क्रिय हो चुकी हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता राकेश सिंह कहते हैं कि निगरानी समितियां गांव में बाहर से आने-जाने वाले लोगों पर नज़र रखती थीं और प्रशासन को जानकारी देती थीं जिसके बाद ऐसो लोगों को क्वारंटीन कर दिया जाता था. लेकिन बाद में क्वारंटीन सेंटर भी बंद हो गए और निगरानी समितियां भी निष्क्रिय हो गईं.
उनके मुताबिक, "मुंबई-दिल्ली जैसी जगहों पर लॉकडाउन लगने और पंचायत चुनाव की वजह से बड़ी संख्या में बाहर से लोग आए और लोगों से ख़ूब घुले-मिले भी. ऐसे में जितना संक्रमण होना था हो चुका है. अब बहुत ज़्यादा प्रयास करने से कुछ नहीं होगा. हाँ, जाँच का फ़ायदा यह ज़रूर होगा कि जो संक्रमित लोग हैं और लक्षण नहीं दिख रहे हैं, उन्हें समय से इलाज मिल जाएगा."
गांवों में तीसरी लहर का कितना ख़तरा?
आशंकाएँ ऐसी भी हैं कि कहीं अब गांवों में संक्रमण की एक तीसरी लहर न पैदा हो जाए जो कि गांवों के ज़रिए बाद में शहरों तक पहुंचे. लेकिन लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में कोविड प्रबंधन के इंचार्ज डॉक्टर सूर्यकांत त्रिपाठी ऐसा नहीं मानते.
वो कहते हैं, "कोरोना संक्रमण सबसे ज़्यादा ख़तरनाक बंद जगह पर होता है. खुली जगह पर भीड़-भाड़ होने के बावजूद वो उतना ख़तरनाक नहीं होता जितना कि बंद जगह पर भीड़ में होता है. खुली जगह पर संक्रमण उतनी तेज़ी से नहीं होता. गाँवों के लिए यही बात अहम है."
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डॉक्टर सूर्यकांत त्रिपाठी कहते हैं कि यदि शहरों और गांवों के संपर्क को पहले ही कम कर दिया जाता तो गाँव में संक्रमण न के बराबर होता लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
उनके मुताबिक, "संक्रमण की पहली लहर में यानी 2020 में भी गांव और शहर में अंतर रहा और इस बार भी रहेगा. इसकी अन्य वजहों में ग्रामीण इलाक़ों में लोगों की प्रतिरोधक क्षमता का अपेक्षाकृत ज़्यादा होना भी है. लेकिन पंचायत चुनाव इत्यादि की वजह से इस बार स्थिति अलग ज़रूर है लेकिन शहरों और क़स्बों की तुलना में, गांवों में उतना असर नहीं होगा."
हालांकि गांवों की बात की जाए तो ऐसा नहीं है जैसा कि डॉक्टर सूर्यकांत त्रिपाठी कह रहे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले के रहने वाले किसान दुर्गेश चौधरी कहते हैं कि गाँवों में शायद ही ऐसा कोई घर हो जहां किसी को सर्दी, बुख़ार और गले में ख़राश जैसे लक्षण न हों.
उनके मुताबिक, "ऐसे लोगों में ज़्यादातर को महक (स्मेल) भी नहीं आ रही है लेकिन लोग इसे कोविड नहीं मान रहे हैं और न ही जाँच करा रहे हैं. जब हालत ख़राब हो रही है तब परेशान हो रहे हैं."
क्या है आगे की योजना?
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि गांवों में टेस्टिंग कराना एक अच्छी शुरुआत है लेकिन गंभीर मरीज़ों के बढ़ने की स्थिति में इलाज की सुविधाएं बिल्कुल नहीं हैं और यदि ऐसा होता है तो स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है.
उनके मुताबिक़, "स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में जब शहरों में ही बुनियादी ढांचा चरमरा गया तो गांव में मरीज़ बढ़ने की स्थिति में क्या होगा, यह समझा जा सकता है. गांवों में और क़स्बों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बेहद ख़राब है. ज़िला स्तर पर भी जो सरकारी हॉस्पिटल हैं, वहां वेंटिलेटर जैसी सुविधाएं नहीं हैं और ऑक्सीजन का हाल सब देख ही चुके हैं. ऐसे में यदि ग्रामीण इलाक़ों से भी गंभीर मरीज़ों की संख्या बढ़ने लगेगी तो स्थिति को सँभालना मुश्किल हो जाएगा."
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हालांकि जानकारों का कहना है कि कोविड संक्रमण के दौरान यदि मरीज़ होम आइसोलेन में कोविड प्रोटोकॉल का पालन करता रहे तो गंभीर स्थिति बहुत कम मामलों में ही आती है.
नवनीत सहगल के मुताबिक, "ऐसी स्थिति में सरकार के पास पूरी तैयारी है. ज़रूरत के हिसाब से कई अस्थाई अस्पताल बनाए गए हैं और यदि ज़रूरत पड़ी तो और बनाए जाएंगे. ऑक्सीजन का संकट लगभग हल हो चुका है और अब हमारे पास पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध है जिसे अस्पतालों तक पहुंचाया जा रहा है."
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