क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री : महाराष्ट्र में मोदी-शाह क्या हासिल करना चाहते हैं ?

एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री - महाराष्ट्र में बीजेपी की ये रणनीति है या मजबूरी?

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद से ही वहाँ की राजनीति में दो डायलॉग काफ़ी चर्चित रहे -

पहला : 'मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही होगा'

दूसरा : 'मैं समंदर हूँ लौट कर आऊंगा'

2022 आते-आते दोनों ही डायलॉग सच साबित हुए. लेकिन एक अपवाद के साथ.

फडणवीस सत्ता में वापस तो आए लेकिन 'डिमोशन' के साथ.

उनके इस 'डिमोशन' को महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषकों अलग अलग नज़रिए से देख रहे हैं.

कुछ इसे देवेंद्र फडणवीस की मजबूरी करार दे रहे हैं, कुछ इसे केंद्रीय बीजेपी की 2024 की तैयारी के तौर पर देख रहे हैं वहीं कुछ का मानना है कि शिंदे को बीजेपी खुली छूट नहीं देना चाहती थी.

कुछ विश्लेषक सवाल भी कर रहे हैं - यही करना था तो 2019 में ही बीजेपी उद्धव ठाकरे के साथ सरकार बना सकती थी. ढाई साल बाद उसी फॉर्मूले को स्वीकार करने की ज़रूरत बीजेपी को क्यों आन पड़ी.

आख़िर पूरी कवायद से बीजेपी महाराष्ट्र में क्या हासिल कर पाई?

ये भी पढ़ें : एकनाथ शिंदे सीएम और फडणवीस डिप्टी- पर्दे के पीछे की कहानी

मराठा आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र में दो साल पहले हुआ एक विशाल प्रदर्शन
BBC
मराठा आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र में दो साल पहले हुआ एक विशाल प्रदर्शन

सोशल इंजीनियरिंग का संदेश

बिहार के बाद महाराष्ट्र दूसरा राज्य हैं जहाँ ज़्यादा सीटों के बाद भी गठबंधन में बीजेपी 'छोटे भाई' की भूमिका में है.

महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार अभय देशपांडे मानते हैं कि बीजेपी ने एक साथ कई संदेश देने की कोशिश की है.

"पहला संदेश सोशल इंजीनियरिंग का है. महाराष्ट्र में मराठा 30 फ़ीसदी हैं. ब्राह्मण चेहरे के साथ पाँच साल बीजेपी ने काम चलाया, लेकिन मराठा आरक्षण के मुद्दे पर विपक्ष और ख़ास तौर पर शरद पवार की एनसीपी ने उन्हें हमेशा बैकफुट पर रखा. इस वजह से इस बार बीजेपी ने रणनीति के तहत मराठा चेहरे को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया है."

ऐसा नहीं कि बीजेपी के पास ख़ुद के मराठा चेहरे नहीं है, लेकिन शिवसेना के मराठा चेहरे को आगे कर बीजेपी ने एक तीर से कई शिकार किए हैं.

ये भी पढ़ें : शिवसेना: उद्धव ठाकरे अपने पिता की विरासत और पार्टी को बचा पाएँगे?

उद्धव ठाकरे को कमज़ोर करने की कोशिश

राज्य के दूसरे वरिष्ठ पत्रकार विजय चोरमोरे कहते हैं शिंदे को मुख्यमंत्री बना कर एक तरह से बीजेपी ने उद्धव की शिवसेना को और कमज़ोर करने का प्रयास है.

"केंद्रीय बीजेपी की हर राज्य में रणनीति रही है कि क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन करना और फिर अपना बेस तैयार करना और धीरे धीरे क्षेत्रीय पार्टी का बेस ख़त्म कर देना. उसी रणनीति के तहत पहले एकनाथ शिंदे को उन्होंने उद्धव की शिवसेना से अलग किया, और अब उनको मुख्यमंत्री बना कर बाक़ी शिवसेना कार्यकर्ताओं और शिवसैनिकों को उद्धव ठाकरे से तोड़ने की ये पूरी कोशिश की जा रही है.

शिंदे डिप्टी सीएम होते तो ऐसा करना थोड़ा मुश्किल होता. बीजेपी ने एक साथ शिंदे को सीएम बना कर - मराठा कार्ड भी खोला और उद्धव की शिवसेना को और कमज़ोर करने का कार्ड भी. बीजेपी जल्द होने वाले बीएमसी चुनाव में कमज़ोर शिवसेना का फ़ायदा पूरी तरह उठाना चाहती है, जो उनका तात्कालिक लक्ष्य है."

ये भी पढ़ें : उद्धव ठाकरे ने ढाई साल में क्या कमाया, क्या गँवाया

उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस
Getty Images
उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस

2024 का लक्ष्य

बीजेपी के दीर्घकालिक लक्ष्य की बात करें तो वो हैं 2024 का लोकसभा चुनाव.

महाराष्ट्र, भारत की आर्थिक राजधानी होने के साथ साथ लोकसभा में 48 सांसद भी भेजती है.

विजय चोरमोरे कहते हैं, " शिवसेना का सीएम बना कर एक संदेश 2024 के लिए भी बीजेपी बाक़ी शिवसैनिकों को देना चाहती है. बीजेपी जानती है कि शिवसेना और बीजेपी 2024 में साथ मिलकर चुनाव लड़े तो नतीज़े गठबंधन के पक्ष में हो सकते हैं. लेकिन बीजेपी 2024 में लोकसभा चुनाव अकेली लड़ी और शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ी तो नतीजे अलग हो सकते हैं. ये डर भी बीजेपी को सता रहा है.

इस वजह से भी बीजेपी उद्धव ठाकरे को निशाना बना रही है.

हालांकि शिवसेना किसकी - ये सवाल अभी भी बरक़रार है.

अभय देशपांडे विजय चोरमोरे की बात में जोड़ते हैं कि कर्नाटक और मध्य प्रदेश से महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति अलग थी. मध्यप्रदेश और कर्नाटक की तरह विधायकों का इस्तीफ़ा करवा कर दोबारा जीतवा पाना थोड़ा मुश्किल था. साथ ही

2024 में अगर शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस साथ मिल कर लड़ती है तो बीजेपी का वोट शेयर काफ़ी कम होने का ख़तरा भी है.

ये भी पढ़ें : उद्धव ठाकरे का नेतृत्व क्यों है सवालों के घेरे में?

शरद पवार के साथ उद्धव ठाकरे
Getty Images
शरद पवार के साथ उद्धव ठाकरे

2019 में शिवसेना से फिर दूरी क्यों?

कुछ विश्लेषक बीजेपी से ये भी सवाल कर रहे हैं जब शिवसेना को मुख्यमंत्री पद देना ही था तो 2019 के नतीजों के बाद ही दे देती. ढाई साल बाद मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी छोड़ना क्या बीजेपी की मजबूरी भी थी?

इस पर अभय देशपांडे कहते हैं, "बीजेपी उस समय की राजनीतिक परिस्थिति का आकलन सही से नहीं कर पाई थी. उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार बना लेगी और वो सरकार इतने साल चल भी जाएगी. बीजेपी को उस वक़्त लगा था कि उद्धव ठाकरे के तेवर जल्द ही नरम पड़ जाएंगे और ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री के फॉर्मूले की ज़िद छोड़ देंगे. इतना ही नहीं बीजेपी भी लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद अति उत्साहित थी.

लेकिन बाद में जब उद्धव ठाकरे गठबंधन सरकार चलाने में कामयाब होते दिखे तो बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली. बीजेपी नेता पहले तो उद्धव सरकार की इमेज को भ्रष्ट साबित करने में जुटे, फिर उनकी पार्टी में बाग़ियों की शिनाख़्त की और उन्हें बढ़ावा दिया ताकि दो तिहाई विधायकों के साथ पार्टी टूट जाए और फिर नई सरकार बनाई."

ये भी पढ़ें : महाराष्ट्र में बीजेपी की रणनीति और शिव सेना में बग़ावत की कहानी

उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे
Getty Images
उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे

सत्ता की भूखी नहीं है बीजेपी

बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद छोड़ कर और उपमुख्यमंत्री पद लेकर, चौथा संदेश ये देने की कोशिश की है कि बीजेपी सत्ता की भूखी नहीं है.

शिंदे ने गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में फडणवीस और बीजेपी की तारीफ़ में कहा, "फडणवीस ने अपना बड़ा दिल दिखाया है. बीजेपी ने बड़ी पार्टी होने के बावजूद उन्हें मौक़ा दिया है, यह बड़ी बात है."

जेपी नड्डा ने भी समाचार एजेंसी एएनआई को दिए बयान में कहा कि देवेंद्र फडणवीस ने बाहर से सरकार का समर्थन देने की बात कह कर साबित किया है कि बीजेपी सत्ता की भूखी नहीं है. लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया है कि देवेंद्र फडणवीस को सरकार में आना चाहिए इसलिए उनसे व्यक्तिगत अनुरोध किया और केंद्रीय नेतृत्व ने कहा है कि देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम के रूप में कार्यभार संभालें.

हालांकि पहले बाग़ी विधायकों का सूरत, फिर असम और फिर गोवा जाना ये बताता है कि उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने का पूरा ऑपरेशन किसके इशारे पर हो रहा था.

इसलिए जनता और कार्यकर्ताओं के बीच ये संदेश कितना और कैसे पहुँच पाएगा, ये देखने वाली बात होगी.

ये भी पढ़ें : एकनाथ शिंदे: जो कभी ऑटोरिक्शा चलाते थे अब मुख्यमंत्री हैं

एकनाथ शिंदे
Getty Images
एकनाथ शिंदे

शिंदे को खुली छूट नहीं

शिवसेना में बगावत की पटकथा जिसने भी लिखे, लीड रोल में एकनाथ शिंदे ही हैं.

लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि 39 बाग़ियों में से तकरीबन आधे विधायकों के ऊपर किसी ना किसी तरह का मुकदमा चल रहा है. फिर चाहे वो क्रिमिनल केस हो या भ्रष्टाचार का मामला.

उद्धव ठाकरे गुट का ये आरोप है कि उन्हीं मुकदमों की फाइल खोलने का डर दिखा कर बीजेपी इस बगावत को हवा देने में कामयाब रही.

मुख्यमंत्री पद शिंदे को देकर बीजेपी ये भी नहीं चाहती थी कि खुली छूट शिंदे गुट को दे दिया जाए.

आने वाले निगम चुनाव ख़ास तौर पर मुंबई नगर निगम चुनाव बहुत अहम हैं.

इस वजह से देवेंद्र फडणवीस को उन्होंने अपना भरोसेमंद नुमाइंदा बना कर सरकार में रखा, ताकि पार्टी में ये संदेश ना जाए कि पूरे घटनाक्रम में बीजेपी को क्या मिला? शिदे पर पूरी छूट ना मिले इसके लिए उन्हें देवेंद्र फडणवीस जैसे अनुभवी चेहरे की ज़रूरत भी थी.

ये भी पढ़ें : देवेंद्र फडणवीस: वो मुख्यमंत्री जो उप-मुख्यमंत्री बन गया..

देवेंद्र फडणवीस
Getty Images
देवेंद्र फडणवीस

देवेंद्र फडणवीस का कद

इस पूरी कवायद में एक संदेश देवेंद्र फडणवीस के लिए भी छुपा था. महाराष्ट्र बीजेपी में पिछले आठ सालों से उनका दबदबा लगातार बढ़ रहा था.

पार्टी ने उन्हें उप-मुख्यमंत्री पद स्वीकार करवा कर एक संदेश ये दिया कि पार्टी का अनुशासन सबको मानना ही होगा.

द हिंदू अख़बार में निस्तुला हेब्बार और आलोक देशपांडे के लेख के मुताबिक गुरुवार सुबह ही देवेंद्र फडणवीस को केंद्रीय नेतृत्व ने शिंदे को मुख्यमंत्री और उन्हें उपमुख्यमंत्री बनना, इसकी सूचना दे दी थी.

देवेंद्र फडणवीस को ही इसका एलान भी करने के लिए कहा गया. देवेंद्र फडणवीस शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए तो तैयार थे लेकिन ख़ुद उपमुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार नहीं थे.

उन्होंने इसकी घोषणा सार्वजनिक तौर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में की. ये सुनते ही केंद्रीय बीजेपी नेतृत्व तब हरकत में आई.

जेपी नड्डा और अमित शाह ने देवेंद्र फडणवीस से फोन पर बात की.

पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी सार्वजनिक तौर पर उन्हें उप-मुख्यमंत्री पद स्वीकार करने की गुज़ारिश की और केंद्रीय नेतृत्व का संदेश भी पहुँचाया. जिसके बाद फडणवीस को उप-मुख्यमंत्री पद स्वीकार करना पड़ा.

जानकारों की माने तो इस पूरे घटनाक्रम में एक संदेश ये भी छुपा था कि राज्य बीजेपी से ऊपर केंद्रीय बीजेपी नेतृत्व है, राज्य के नेता ये ना भूलें.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
What do Modi-Shah want to achieve in Maharashtra?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X