जयशंकर ने यूरोप में फिर से ऐसा क्या कहा कि हो रही है चर्चा
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूरोप में जाकर जो कुछ कहा है, उसकी चर्चा फिर से हो रही है. जयशंकर ने कहा कि वह पाकिस्तान को लेकर कुछ और कड़ा कह सकते थे लेकिन ऐसा नहीं किया.
विदेशी मंचों पर भारत का पक्ष ज़ोरदार तरीक़े रखने की पहचान बना चुके भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर फिर से सुर्खियों में हैं.
जयशंकर अपने तीन दिवसीय यूरोप दौरे के दौरान रूस-यूक्रेन युद्ध पर बात करते हुए एक बार फिर पश्चिमी देशों की नीतियों और नेताओं पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.
ऑस्ट्रियाई पब्लिक ब्रॉडकास्टर ओआरएफ़ से बात करते हुए एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों से लेकर, भारत-पाकिस्तान के बीच जंग की आशंकाओं और रूस के साथ भारत के गहरे रिश्तों से जुड़े सवालों पर जवाब दिए हैं.
इस इंटरव्यू पर आम लोगों के साथ-साथ वैश्विक राजनीति को समझने वालों की ओर से भी टिप्पणियां आ रही हैं.
लेकिन पहले जानते हैं कि एस जयशंकर ने अलग-अलग मुद्दों पर क्या कहा?
भारत - पाकिस्तान जंग पर क्या बोले जयशंकर
ऑस्ट्रियाई पत्रकार आर्मिन वुल्फ़ ने इस इंटरव्यू के दौरान एस जयशंकर से सवाल किया कि कुछ दिन पहले आपने पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र बताया था, क्या ये कूटनीतिक रूप से ठीक है?
इस पर जयशंकर ने कहा, "एक राजनयिक होने का मतलब ये नहीं है कि आप सच नहीं बोल सकते. मैं इपिसेंटर (आतंक के केंद्र) से ज़्यादा सख़्त शब्दों का इस्तेमाल कर सकता था. हमारे साथ जो कुछ हो रहा है, उसके हिसाब से इपिसेंटर एक बेहद कूटनीतिक शब्द है."
इसके बाद भारतीय विदेश मंत्री ने पिछले कुछ सालों में भारत पर हुए आतंकी हमलों का ज़िक्र किया.
उन्होंने कहा, "ये वो देश है जिसने कुछ साल पहले हमारी संसद पर हमला किया था. इस देश ने मुंबई शहर पर हमला किया था. होटलों के साथ-साथ विदेशी पर्यटकों को निशाना बनाया था और ये देश हर रोज़ सीमा पार आतंकी भेजता है."
इसके बाद एस जयंशकर ने ऑस्ट्रियाई पत्रकार से सवाल किया कि 'जब शहरों में दिन दहाड़े आतंकी कैंप चल रहे हैं, वहाँ आतंकियों के रिक्रूटमेंट से लेकर आर्थिक मदद पहुंच रही है तो क्या आप मुझसे कह सकते हैं कि पाकिस्तान सरकार को इसकी भनक नहीं है, वो भी तब जब इन आतंकियों को सैन्य स्तर की कॉम्बेट ट्रेनिंग मिल रही हो.'
इसके बाद एस जयशंकर से पूछा गया कि क्या दुनिया को भारत और पाकिस्तान के बीच एक और जंग को लेकर चिंतित होना चाहिए.
इस पर जयशंकर ने कहा, "मुझे लगता है कि दुनिया को आतंकवाद को लेकर चिंतित होना चाहिए. दुनिया को इस बात को लेकर परेशान होना चाहिए कि आतंकवाद पनप रहा है और वह मुँह फेरे बैठी है. दुनिया को अक्सर ऐसा लगता है कि अगर ये मेरे घर में नहीं हो रहा है तो ये किसी दूसरे व्यक्ति की समस्या है. ऐसे में मुझे लगता है कि दुनिया को इस बात के प्रति चिंतित होना चाहिए कि वह कितनी ईमानदारी और मज़बूती के साथ आतंकियों की चुनौती का सामना करती है."
इससे पहले सोमवार को भी एस जयशंकर ने ऑस्ट्रियाई विदेश मंत्री एलेक्ज़ेंडर शालेनबर्ग के साथ साझा प्रेस वार्ता में कहा था कि 'आतंकवाद को किसी एक क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं रखा जा सकता जब वे नशे और अवैध हथियारों के कारोबार समेत दूसरे तरह के अंतरराष्ट्रीय अपराधों को अंजाम दे रहे हों. चूंकि (आतंक का) केंद्र हमारे काफ़ी क़रीब है, ऐसे में हमारे अनुभव और समझ दुनिया के काम आ सकती है.'
भारत ने इससे पहले कई मौक़ों पर कहा है कि वह पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसी जैसे रिश्ता चाहता है, जिसमें आतंक, शत्रुता और हिंसा न हो.
इसके साथ ही जयशंकर समेत भारत के कई विदेश मंत्री और सरकारें लगातार ये कहती आई हैं कि आतंक और संवाद साथ-साथ नहीं चल सकते.
रूस के साथ भारत के क़रीबी रिश्तों पर क्या बोले जयशंकर
इस इंटरव्यू के दौरान भी पिछले तमाम इंटरव्यूज़ की तरह भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से रूस के साथ भारत के क़रीबी रिश्तों पर सवाल किया गया.
जयशंकर से पूछा गया कि क्या भारत अहम हथियारों और सैन्य उपकरणों के लिए रूस पर निर्भर रहने की वजह से यूक्रेन को लेकर उसकी आलोचना करने में हिचक रहा है.
इस पर जयशंकर ने कहा, "नहीं ऐसा नहीं है. हमारा रूस के साथ एक लंबा रिश्ता है. इस रिश्ते के इतिहास को देखना बहुत ज़रूरी है. ये रिश्ता उस दौर में बना था जब पश्चिमी लोकतांत्रिक देश सैन्य तानाशाही वाले देश पाकिस्तान को हथियारों से लैस कर रहे थे और भारत को अपनी सुरक्षा के लिए भी हथियार नहीं दे रहे थे. ऐसे में अगर हम सिद्धांतों की बात कर रहे हैं तो थोड़ा इतिहास के पन्ने पलटने चाहिए."
इसके बाद जयशंकर ने सवाल किया कि 'ये देखना होगा कि भारत और रूस के रिश्ते कैसे विकसित हुए और सोवियत संघ के साथ उसके रिश्ते बढ़े. पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों को किसी वजह से लगा कि हमारी दुनिया में उनका स्वाभाविक साझेदार एक सैन्य तानाशाही वाला देश होगा.'
हालांकि, ये कहते हुए जयशंकर ने इस बात का भी खंडन किया कि भारत रूस का सहयोगी था.
भारत की तटस्थता पर सवाल
रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध पर जयशंकर ने भारत का पक्ष रखते हुए कहा कि 'हमने बार-बार स्पष्ट किया है कि ये संघर्ष किसी के हित में नहीं है, रूस के हित में भी नहीं.'
इस इंटरव्यू के दौरान एस जयशंकर से पूछा गया कि क्या भारत एक ऐसे युद्ध में तटस्थ रह सकता है कि जिसमें युद्ध के लिए सिर्फ एक पक्ष ज़िम्मेदार हो.
इस पर उन्होंने कहा, "बिल्कुल, ये संभव है. मैं ऐसे कई उदाहरण दे सकता हूँ जब देशों ने दूसरे देशों की संप्रभुता पर हमला किया. अगर मैं यूरोप से सवाल करूं कि ऐसे मौक़ों पर वे कहां खड़े थे तो मुझे डर है कि मुझे एक लंबी चुप्पी का सामना करना होगा...आख़िरकार हम विदेश नीति के फ़ैसले अपने दीर्घकालिक हितों और वैश्विक हितों के आधार पर करते हैं."
अमेरिका और इराक़ के बीच हुए दूसरे खाड़ी युद्ध में अमेरिकी सरकार पर इराक़ी संप्रभुता पर हमला करने का आरोप लगा था.
इसके बावजूद कई यूरोपीय देशों ने इस जंग में अमेरिका का समर्थन किया था.
रूसी तेल के आयात पर सवाल
इस इंटरव्यू में भी एस जयशंकर से यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से बढ़ते रूसी तेल आयात पर सवाल किया गया.
इस सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि यूरोप ने भारत से छह गुना ज़्यादा तेल आयात किया है.
उन्होंने कहा, "यूरोप ने रूस से अपनी ऊर्जा आपूर्ति को धीमे-धीमे कम किया है. जब आप अपनी जनता, जिसकी प्रतिव्यक्ति आय 60 हज़ार यूरो है, को लेकर इतने संवेदनशील हैं तो हमारी जनता की प्रतिव्यक्ति आय दो हज़ार अमेरिकी डॉलर है. मुझे भी ऊर्जा की ज़रूरत है. मैं इस स्थिति में नहीं हूँ कि तेल के लिए भारी क़ीमत दे सकूं."
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यूरोपीय नेता जब अपनी जनता पर इस युद्ध का कम से कम असर पड़ने देना चाहते हैं तो उन्हें दूसरे देशों को भी ऐसा करने देना चाहिए.
लेकिन ये कहते हुए भी जयशंकर ने यूरोपीय नेताओं को निशाने पर लेते हुए कहा कि अगर बात सिद्धांत की थी तो रूसी तेल लेना युद्ध होते ही बंद कर देना चाहिए था.
उन्होंने कहा, "अगर मसला सिद्धांत का है तो यूरोप ने 25 फरवरी को ही रूस ऊर्जा के आयात को बंद क्यों नहीं किया था."
रूस और यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत सरकार का रूस से तेल आयात काफ़ी बढ़ गया है.
बीते दो महीनों से रूस लगातार भारत का सबसे बड़ा तेल निर्यातक बना हुआ है. इससे पहले सऊदी अरब और इराक़ जैसे मुल्क भारत को सबसे ज़्यादा तेल निर्यात किया करते थे.
संयुक्त राष्ट्र में सुधार के मुद्दे पर जयशंकर क्या बोले
इस इंटरव्यू के दौरान एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की गति धीमी होने को लेकर भी पश्चिमी देशों को निशाने पर लिया.
जयशंकर ने कहा, "आपके सामने एक ऐसी स्थिति होगी जब दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं होगा. ये संयुक्त राष्ट्र संघ के बारे में क्या बताता है."
इसके साथ ही उन्होंने कहा, "आज जो लोग स्थायी सदस्यता का लाभ उठा रहे हैं, स्पष्ट रूप से सुधारों को लेकर जल्दबाज़ी में नहीं है. मुझे लगता है कि ये काफ़ी शॉर्ट साइटेड नज़रिया है. आख़िरकार संयुक्त राष्ट्र की साख, उनके अपने हित और प्रभाव दांव पर है."
"ऐसे में मुझे लगता है कि सुधारों में थोड़ा वक़्त लगेगा. लेकिन उम्मीद करता हूँ कि इसमें ज़्यादा वक़्त न लगे. मैं संयुक्त राष्ट्र के दूसरे सदस्य देशों की ओर से भी सुधार की मांग उठते देख रहा हूं. सिर्फ़ हम ही इस बारे में बात नहीं कर रहे हैं."
इस समय रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, और अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं जो अहम प्रस्तावों पर अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं.
जयशंकर ने कहा, "इसमें पूरे अफ़्रीका और लातिन अमेरिकी देशों छूट गए हैं. और विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व काफ़ी कम है. ये संस्था 1945 में बनाई गयी थी. और ये 2023 है."
पिछले 27 वर्षों में भारत की ओर से यह पहली विदेश मंत्री स्तर की ऑस्ट्रिया यात्रा थी. और यह यात्रा साल 2023 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के 75 वर्ष पूरे होने की पृष्ठभूमि में हुई है.
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