नरेंद्र मोदी के बजट में क्या सपने ज़्यादा सच कम हैं- नज़रिया
खाने की चीजों के दामों में तेज़ी से बढ़त का नतीजा विशाल कृषि संकट के रूप में देखने को मिला. इसका प्रमाण है देश के हर हिस्से में लगातार होने वाले किसानों के विरोध प्रदर्शन.
इन सबके बावजूद सरकार ये मानने को तैयार नहीं है कि देश में नौकरियों की कमी है.
अपने पूरे भाषण में पीयूष गोयल अस्पष्ट रूप से ये भरोसा दिलाते रहे कि देश में पर्याप्त नौकरियां हैं. अब सवाल ये है कि जब तक आप किसी समस्या को स्वीकार नहीं करेंगे, उसका हल कैसे ढूंढा जा सकता है?
अपने तक़रीबन एक घंटे 45 मिनट के बजट भाषण में कार्यकारी वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने बॉलीवुड फ़िल्म 'उड़ी: द सर्जिकल स्ट्राइक' का ज़िक्र किया और बताया कि वो सिनेमा हॉल में दर्शकों का 'जोश' देखकर प्रभावित हुए.
ये फ़िल्म कुछ साल पहले भारतीय सेना की ओर से की गई सर्जिकल स्ट्राइक की पृष्ठभूमि पर आधारित है. फ़िल्म ने काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया. इस फ़िल्म में अंध-राष्ट्रवाद (जिंगोइज़म) दिखाया गया है, जो लोगों को सिनेमा हॉल तक खींच पाने में सफल रहा.
अगर बजट पेश होने से पहले इस बारे में थोड़ा बहुत संदेह भी था कि क्या मोदी सरकार चुनावी बजट पेश कर रही है, तो ये उसी वक़्त ख़त्म हो गया जैसे ही पीयूष गोयल ने 'उरी' का ज़िक्र किया.
ये मोदी सरकार का अंतरिम बजट था. यानी सीधे शब्दों में कहा जाए तो इसमें अगली सरकार चुने जाने तक के ख़र्च की योजना और लेखा-जोखा था. लोकसभा चुनाव इस साल अप्रैल-मई में होने वाले हैं और उम्मीद है कि मई 2019 तक नई सरकार आ जाएगी.
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को अपने गढ़े माहौल को काबू में रखना पसंद है. इसलिए ज़ाहिर है उनकी सरकार ने अंतरिम बजट जैसे बेशक़ीमती मौके़ को अपने हाथ से जाने नहीं दिया.
बजट में बड़ी घोषणाएं
इस बजट में अब तक का सबसे बड़ा ऐलान है- छोटे किसानों के लिए आर्थिक मदद योजना.
इस योजना के तहत उन किसानों के बैंक खाते में हर साल छह हज़ार रुपए सीधे भेजे जाएंगे जिनके पास दो हेक्टेयर तक की खेती वाली ज़मीन है. किसानों को ये धनराशि साल में तीन बराबर किश्तों में दी जाएंगी.
पीयूष गोयल के मुताबिक़, इस योजना का फ़ायदा देश के तक़रीबन 12 करोड़ छोटे और ग़रीब किसान परिवारों को मिलेगा.
आम तौर पर एक भारतीय परिवार में औसतन पांच सदस्य होते हैं. इस हिसाब से देखा जाए तो इस स्कीम से तक़रीबन 60 करोड़ लोगों को लाभ मिलेगा.
60 करोड़ लोग यानी वोट देने वाली आबादी का एक बड़ा हिस्सा. सैद्धांतिक तौर पर देखें तो ये मतदाताओं की कुल संख्या के आधे से थोड़ा ही कम है.
इन सारी चीज़ों को मिलाकर देखा जाए तो शुरू होने के बाद ये योजना दुनिया की सबसे बड़ी इनकम सपोर्ट स्कीम होगी.
दिलचस्प बात ये है कि यह स्कीम एक दिसंबर, 2018 यानी पिछले साल की तारीख़ से लागू मानी जाएगी और इसके तहत मिलने वाले पैसों की पहली किश्त किसानों को 31 मार्च, 2019 से पहले दे दी जाएगी.
सरकार ने इस साल स्कीम के लिए 20 हज़ार करोड़ (200 अरब) रुपए का बजट तय किया है. अगले साल यह बजट बढ़ाकर 750 अरब कर दिया जाएगा.
इस स्कीम के ज़रिए सरकार देश के बड़े हिस्से में उपजे कृषि संकट से निबटने की कोशिश कर रही है. ये बात और है कि वो कभी ये बात मानेगी नहीं.
एक और दिलचस्प बात ये है कि इसी हफ़्ते देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने सत्ता में आने पर सबके लिए एक न्यूनतम आय गारंटी स्कीम लाने का वादा किया था.
दूसरी तरफ़ मोदी सरकार की स्कीम में सबसे ज़्यादा मुश्किल है ये पता लगाना कि किसे स्कीम का फ़ायदा मिलना चाहिए और किसे नहीं.
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राजनीतिक तौर पर बढ़िया स्कीम
भारत के ज़्यादातर हिस्सों में ज़मीन का लेखा-जोखा बहुत ज़्यादा विश्वसनीय नहीं है. इसके अलावा दूसरा बड़ा सवाल वही है जो हमेशा कायम रहता है- इतने सारे पैसे आएंगे कहां से?
अर्थशास्त्र मानता है कि कोई भी चीज़ मुफ़्त में नहीं मिलती. अगर किसानों को ये पैसे दिए जाएंगे तो किसी न किसी को इसे ज़्यादा टैक्स के रूप में चुकाना ही होगा.
ज़ाहिर है ये चुकाने वाला होगा भारत का छोटा मिडिल क्लास.
इसके अलावा पीयूष गोयल ने देश के बड़े असंगठित क्षेत्र के लिए एक पेंशन स्कीम की घोषणा भी की. वित्त मंत्री ने अपने भाषण में असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे लोगों की संख्या 42 करोड़ बताई.
इस योजना में असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए 60 साल की उम्र के बाद हर महीने तीन हज़ार रुपये पेंशन का प्रस्ताव दिया गया है. ये स्कीम उन्हीं लोगों के लिए होगी, जिनकी मासिक आय 15 हज़ार रुपये या इससे कम है.
हालांकि इस स्कीम का फ़ायदा उठाने के लिए लाभार्थी को अपने भी कुछ पैसे लगाने होंगे. असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले एक 18 साल के शख्स को हर महीने 55 रुपये जमा करने होंगे.
सरकार भी उतनी ही रक़म अपनी तरफ़ से डालेगी, तभी वो 60 साल की उम्र के बाद इस पेंशन का हक़दार होगा.
अब एक बार फिर इस स्कीम को लागू करने में कई बड़ी दिक्क़तों का सामना करना पड़ेगा.
असंगठित क्षेत्र मे काम करने वाले एक बड़े तबके को कैश में भुगतान किया जाता है. इसके अलावा उन्हें मिलने वाले पैसों में भी बहुत असमानता है.
ऐसी स्थिति में सरकार कैसे पता लगाएगी कि किसे इस पेंशन स्कीम के दायरे में रखा जाना चाहिए और किसे नहीं.
राजनीतिक तौर पर भले ही ये एक बढ़िया स्कीम लगती हो लेकिन अर्थशास्त्र के नज़रिए से देखें तो इसे लागू करना मुश्किल होगा.
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मिशन 2030
वित्त मंत्री ने अंतरिम बजट की परंपरा तोड़ते हुए भारतीय करदाताओं यानी मिडिल क्लास को बड़ा तोहफ़ा दिया.
अगले साल से पांच लाख रुपए तक की वार्षिक आय वाले व्यक्ति को कोई टैक्स नहीं देना होगा.
टैक्स छूट की वर्तमान सीमा ढाई लाख रुपए है. एक अच्छा बदलाव जिस पर सरकार काम कर रही है, वो है इनकम टैक्स रिटर्न को 24 घंटे के भीतर प्रोसेस करना और इसका रिफ़ंड भी 24 घंटे में ही शुरू कर देना.
इसमें कोई शक़ नहीं कि अंतरिम बजट के इन प्रस्तावों को लागू करने के लिए मई 2019 के आख़िर में आने वाली अगली सरकार को अपने पूर्ण बजट में इसे मंजूरी देनी होगी.
पीयूष गोयल अपने पूरे भाषण में इस बात का ध्यान रखा कि वो लगातार प्रधानमंत्री मोदी को शुक्रिया कहते रहें. इतना ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी के सांसद भी पूरे भाषण के दौरान 'मोदी, मोदी, मोदी…' चिल्लाते रहे.
गोयल ने अपनी पार्टी की उपलब्धियों की एक लंबी सूची भी पेश की और आख़िर में विज़न-2030 के नाम से 10 बिंदुओं की एक लिस्ट सामने रखी.
इस लिस्ट में साल 2022 तक अंतरिक्ष में एक भारतीय को पहुंचाने, भारत को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने (जोकि भारत लगभग पहले से ही है), भारत को प्रदूषण मुक्त बनाने, भारतीय अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र को डिजिटल बनाने और सभी भारतीयों को पीने का साफ़ पानी दिलाने जैसी तमाम बातें शामिल थीं.
साल 2014 के आम चुनाव से पहले पीएम मोदी का चुनावी अभियान एक बेहतर भारत की उम्मीद के धागों से बुना गया था.
उनका चुनावी नारा था- 'अच्छे दिन आने वाले हैं.' इसके अलावा मोदी ने नौकरियां और रोज़गार पैदा करने का वादा किया था. उन्होंने 'मिनिमम गवर्मेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस' के फ़ॉर्मूले पर चलने का वादा भी किया था.
पांच साल बाद पता चला कि 'अच्छे दिन' भी किसी आम चुनावी नारे जैसा ही था. लीक हुई एक सरकारी रिपोर्ट से पता चला है कि नोटबंदी जैसी नाकामयाब और बेढंगे तरीके से जीएसटी लागू करने के बाद भारत में बेरोज़गारी का स्तर पिछले 46 सालों में सबसे ऊपर पहुंच गया.
हालांकि अधिकारियों ने बाद में कहा कि ये एक खाका भर है, आखिरी रिपोर्ट नहीं.
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नौकरियों के सवाल से सरकार बचना क्यों चाहती?
युवाओं की बेरोज़गारी का आंकड़ा 13-27% के बीच है. इससे हर साल काम में लगने वाले युवाओं की संख्या (1-1.2 करोड़) तेज़ी से नीचे गिरी है.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी नाम की एक निजी संस्था का कहना है कि साल 2018 में 1 करोड़ से ज़्यादा भारतीयों ने अपनी नौकरियां खोईं.
खाने की चीजों के दामों में तेज़ी से बढ़त का नतीजा विशाल कृषि संकट के रूप में देखने को मिला. इसका प्रमाण है देश के हर हिस्से में लगातार होने वाले किसानों के विरोध प्रदर्शन.
इन सबके बावजूद सरकार ये मानने को तैयार नहीं है कि देश में नौकरियों की कमी है.
अपने पूरे भाषण में पीयूष गोयल अस्पष्ट रूप से ये भरोसा दिलाते रहे कि देश में पर्याप्त नौकरियां हैं. अब सवाल ये है कि जब तक आप किसी समस्या को स्वीकार नहीं करेंगे, उसका हल कैसे ढूंढा जा सकता है?
गोयल के भाषण के ज़रिए मोदी सरकार ने एक बार फिर 2014 की तरह उम्मीदें बेचने की कोशिश की है. अब देखना ये होगा कि क्या भारत के लोग एक बार फिर उस पर भरोसा करेंगे. यही असली सवाल है.