नज़रिया: गुजरात से मिटाई जा रही हैं मुसलमानों की निशानियां
इसके साथ ही बीजेपी की इस्लामी विरासत को लेकर रणनीति पर दोहरे रवैये को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. विश्व विरासत शहर में शामिल करने और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए वह उन स्मारकों पर भरोसा करती है जो गुजरात के सल्तनत काल में बनाए गए थे.
वहीं, राजनीतिक उद्देश्य के लिए वह संदिग्ध इतिहास का समर्थन करती है. इस पूरी रणनीति का एक ही मक़सद है कि 2019 के आम चुनावों से पहले इतिहास से मुसलमानों को मिटाकर कैसे राज्य का वातावरण ख़राब किया जाए.
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी और उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने हाल में बयान दिया कि गुजरात सरकार अहमदाबाद का नाम बदलकर कर्णावती रखने पर विचार कर रही है. इस बयान में एक मुस्लिम विरोधी झलक दिखी.
इस पर संशय बरकरार है कि अहमदाबाद से पहले इस शहर का नाम कर्णावती हुआ करता था.
अहमद शाह ने 1,411 में इस शहर का निर्माण किया था और इसकी चारदीवारी के बाहर एक छोटा सा शहर हुआ करता था.
यह पेचीदा इतिहास सरकार के लिए कोई महत्व नहीं रखता है जो मुसलमानों को राक्षस जैसा दिखाने पर तुली हुई है. हिंदुत्व आंदोलन की योजना का यह मुख्य बिंदु रहा है.
इसके ज़रिए केवल गुजरात के इतिहास में रहे मुसलमानों के प्रभाव और महत्व को कम करने की कोशिश है. वहीं, गुजराती मुसलमानों के साथ हुई सांप्रदायिक हिंसा, भेदभाव, सामाजिक-आर्थिक अंतर, घर न ख़रीद पाने जैसी कहानियां कभी भी लिपिबद्ध नहीं हुई हैं.
अतीत को नकारना
हिंदू-मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक हिंसा में मुख्य तत्व धार्मिक स्मारकों का विध्वंस रहा है. इन कार्रवाईयों का मक़सद हमेशा अलग रहा है. इनमें हत्या से लेकर व्यवसायों को नुकसान पहुंचाया जाता रहा है.
उदाहरण के लिए गुजरात में 1969 दंगों की जांच के लिए गठित किए गए जस्टिस जगनमोहन रेड्डी आयोग ने कहा था कि दंगों में मस्जिदों, क़ब्रिस्तानों, दरगाहों समेत मुसलमानों के तक़रीबन 100 धार्मिक स्थलों को नष्ट किया गया था.
1980 और 1992 के दंगों के दौरान भी ये कार्रवाइयां हुईं और 2002 दंगे के दौरान यह शीर्ष पर थी जहां मुसलमानों से जुड़े 500 से अधिक धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया गया या उन्हें नष्ट कर दिया गया.
2007 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया जिसके तहत नष्ट की गई धार्मिक संपत्तियों को गुजरात सरकार द्वारा केवल 50 हज़ार रुपये तक सहायता राशि ही दी जानी थी.
इस मामले में वली मुहम्मद वली के मक़बरे को नष्ट करने का भी ज़िक्र था. 2002 में हुए दंगे में इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया गया और इसे ठीक करने की जगह अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने रात ही रात में इस मक़बरे के ऊपर पक्की सड़क बना दी.
यह मक़बरा अहमदाबाद के शाहीबाग इलाक़े में स्थित पुलिस कमिश्नर के दफ़्तर से ज़्यादा दूर भी नहीं था.
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मोदी ने कहा मक़बरे के सबूत नहीं
वली मुहम्मद वली को वली गुजराती के नाम से जाना जाता है. वह न केवल उर्दू शायरी का बड़ा नाम थे बल्कि ऐसे पहले विचारक थे जिन्होंने गुजरात को पहचान दी. गुजरात को लेकर उनकी भावनाएं उनकी ग़ज़ल दार-फ़िराक-ए-गुजरात में भी दिखती हैं जब वह गुजरात छोड़ते समय उदासी में डूब जाते हैं.
वर्तमान में एमनेस्टी इंडिया के कार्यकारी निदेशक आकार पटेल ने जब गुजरात के तात्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से वली गुजराती के मक़बरे का पुनः निर्माण की बात की थी तो मोदी ने पटेल से कहा था कि इसके कोई पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि वहां किसी वली का मक़बरा था.
कई और दफ़े इस्लामी विरासत के इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिशें की जाती हैं. जैसे कंकड़िया झील (पूर्व में हौज़-ए-क़ुत्ब) के बारे में सुनने को मिलता रहा है कि पहले यह कर्णासागर झील थी जो चालुक्य वंश के शासक कर्णदेव सोलंकी ने बनवाई थी.
हालांकि, इस झील को लेकर पर्याप्त सबूत नहीं मिले हैं जो इसकी पुष्टि करें. हालांकि, एक स्रोत के अनुसार वास्तव में उत्तरी गुजरात के पाटन ज़िले के चणास्मा तालुका में कर्णासागर झील थी.
इतिहास को नकारने के साथ-साथ वर्तमान में मौजूद इस्लामी विरासत को नज़रअंदाज़ करने की कोशिशें जारी रहती हैं. उदाहरण के लिए अहमदाबाद के मकरबा के बाहरी हिस्से में मौजूद सरखेज रोज़ा को सही तरह से संरक्षित नहीं किया गया.
अहमदाबाद का दुर्ग कहे जाने वाली इस इमारत से जुड़ी झील हर साल खाली रहती है और इसके पड़ोस में रहने वाले लोग इस पर क्रिकेट खेलते हैं.
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बीजेपी की दोहरी नीति
यह राजनीतिक नेतृत्व में मुसलमानों की कमी को साफ़ दिखाता है. साथ ही बीजेपी द्वारा लगातार मुसलमानों को नज़रअंदाज़ करना भी दिखाता है. आरंभ से ही इस पार्टी से एक भी मुसलमान विधानसभा में नहीं पहुंचा है.
वास्तव में कांग्रेस पार्टी ने भी हिंदुत्व का 'सॉफ़्ट ब्रैंड' अपना लिया है. 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने मुस्लिम धार्मिक स्थल जाने से इनकार कर दिया था. यह घाव पर नमक छिड़कने जैसा था.
कर्णावती के सटीक स्थान के ऐतिहासिक सबूतों के बिना अहमदाबाद का नाम बदलना असंभव है. हालांकि, सरकार अगर यूनेस्को की विश्व विरासत शहर की सूची में शामिल इस शहर का नाम बदलना चाहती है तो उसे यूनेस्को से भी मंज़ूरी लेनी होगी.
इसके साथ ही बीजेपी की इस्लामी विरासत को लेकर रणनीति पर दोहरे रवैये को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. विश्व विरासत शहर में शामिल करने और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए वह उन स्मारकों पर भरोसा करती है जो गुजरात के सल्तनत काल में बनाए गए थे.
वहीं, राजनीतिक उद्देश्य के लिए वह संदिग्ध इतिहास का समर्थन करती है. इस पूरी रणनीति का एक ही मक़सद है कि 2019 के आम चुनावों से पहले इतिहास से मुसलमानों को मिटाकर कैसे राज्य का वातावरण ख़राब किया जाए.
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं. इसमें शामिल तथ्य और विचार बीबीसी के नहीं हैं और बीबीसी इसकी कोई ज़िम्मेदारी या जवाबदेही नहीं लेती है.)
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