उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017: बीजेपी ही नहीं अपनों से भी लड़ रहे हैं मुख्यमंत्री हरीश रावत
प्रदेश की सत्ता संभाल रहे हरीश रावत को इन चुनावों में तीन मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इसमें एक ओर जहां उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी बीजेपी है, वहीं दूसरी ओर पार्टी संगठन।
नई दिल्ली। चुनाव तारीखों के ऐलान के साथ ही उत्तराखंड में भी सियासी रणभूमि सज चुकी है। सभी सियासी दलों ने चुनावी बिसात पर अपनी चालें चलनी शुरू कर दी हैं। आमतौर पर देखा जाए तो प्रदेश में मुख्य टक्कर बीजेपी और कांग्रेस में ही नजर आती है। उत्तराखंड की सत्ता को लेकर इन्हीं दोनों पार्टियों सीधा मुकाबला होता रहा है, लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी में ही जंग देखने को मिल रही है।
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हरीश
रावत
के
सामने
एक
नहीं
तीन
मुश्किलें
प्रदेश
कांग्रेस
कमेटी
और
उत्तराखंड
के
मुख्यमंत्री
हरीश
रावत
के
बीच
सबकुछ
ठीक
नहीं
चल
रहा
है।
जैसे
हालात
अभी
नजर
आ
रहे
हैं
उसके
मद्देनजर
प्रदेश
की
सत्ता
संभाल
रहे
हरीश
रावत
को
इन
चुनावों
में
तीन
मोर्चों
पर
लड़ाई
लड़नी
पड़
रही
है।
इसमें
एक
ओर
जहां
उनकी
मुख्य
प्रतिद्वंद्वी
बीजेपी
है,
वहीं
दूसरी
ओर
पार्टी
संगठन
और
प्रदेश
कांग्रेस
कमेटी
के
अध्यक्ष
किशोर
उपाध्याय
हैं।
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की
पार्टी
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में
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ज्यादा
सवर्ण
और
मुस्लिम
उम्मीदवारों
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टिकट
अपनों से लड़ने को मजबूर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री
पार्टी में मतभेद का पता शनिवार को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख किशोर उपाध्याय के उस बयान से चल जाता है जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रदेश कांग्रेस दो ध्रुवों से चल रहा है। किशोर उपाध्याय के इस बयान के बाद रविवार को जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत से इस मामले पर सवाल किया गया कि क्या पार्टी बंटी हुई है, इसके दो कैंप हो गए हैं? इस सवाल पर मुख्यमंत्री हरीश रावत हंसते हुए कहते हैं कि आप कोई भी विश्लेषण कर सकते हैं। इस बयान से साफ हो जाता है कि उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी में जंग के हालात हैं। इस विवाद के कई अहम कारण भी हैं...
हरीश रावत की चाहत, पार्टी गठबंधन के साथ चुनाव में उतरे
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट से गठबंधन करना चाहते हैं लेकिन प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ऐसा नहीं चाहते हैं। प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के चयन के दौरान हरीश रावत लगातार कह रहे हैं कि पार्टी 63 सीटों पर लड़ेगी और बाकी बची सीटें सहयोगी उम्मीदवारों के लिए छोड़ दी जाएंगी। लेकिन किशोर उपाध्याय का कहना है कि कांग्रेस, प्रदेश के सभी 70 सीटों पर अपने चुनाव चिन्ह से ही चुनाव में उतरेगी। इसको लेकर कोई दूसरा मत नहीं है। भले ही किशोर उपाध्याय के नेतृत्व वाली पीसीसी गठबंधन का विरोध करे लेकिन हरीश रावत लगातार अपने मंत्रीमंडल में चार पीडीएफ कोटे के मंत्रियों को शामिल किए हुए हैं। इनके साथ-साथ तीन निर्दलीय विधायक और एक उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक को भी अपने मंत्रिमंडल में जगह दी है। उनकी योजना है कि अगर विधानसभा चुनाव में रणनीतिक तौर पर बहुमत में कमी नजर आई तो गठबंधन के जरिए सत्ता की चाबी हासिल की जा सकती है। ऐसे ही हालात 2012 में भी सामने आए थे।
निर्दलीय विधायकों को साधना चाहते हैं हरीश रावत
2012 में दिनेश धनाई ने टिहरी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीता, उन्होंने उपाध्याय को हराया। जब हरीश रावत 2014 में मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने दिनेश धनाई को कैबिनेट में शामिल किया। उन्हें सात विभाग भी दिए, इनमें सबसे खास पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय भी शामिल थे। दिनेश धनाई ने पहले ही कह दिया है कि वो टिहरी से फिर चुनाव मैदान में उतरेंगे। उनका ये फैसला कहीं न कहीं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया किशोर उपाध्याय के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है। ऐसे ही कई और निर्दलीय विधायक हैं जो हरीश रावत के सम्पर्क में है। हरीश रावत ने पहले ही ऐलान किया है कि लालकुआ से निर्दलीय विधायक हरीश चंद्र दुर्गापाल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। हालांकि किशोर उपाध्याय ने उनकी एंट्री में रोड़े अटकाए तो हरीश रावत ने उन्हें सरकार में जगह दे दी। उनके पास सात विभाग हैं।
रिश्तेदारों को टिकट दिलाने की कवायद
हरीश रावत और उनकी कैबिनेट में शामिल कई करीबियों के बारे कहा जा रहा है कि वो अपने रिश्तेदारों को टिकट देने की कोशिश में जुटे हुए हैं। रावत कैंप की ओर से मिल रही जानकारी के मुताबिक हरीश रावत अपनी बेटी को हरिद्वार ग्रामीण से उतारने की योजना बना रहे हैं। उनकी कैबिनेट में शामिल यशपाल आर्य अपने बेटे को बाजपुर सीट से टिकट दिलाना चाहते हैं। वित्त मंत्री इंदिरा हृदयेश के गृह क्षेत्र से उनके बेटे चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे हालात को देखते हुए किशोर उपाध्याय ने कहा है कि एक परिवार से एक ही टिकट दिया जाएगा।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी और हरीश रावत में दो साल से चल रहा विवाद
बता दें कि मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस कमेटी में पिछले दो साल विवाद चल रहा है। फिलहाल कई और मुद्दे शामिल हैं जिसकी वजह से कांग्रेस में घमासान दिखाई दे रहा है। इसमें सबसे खास है कि कांग्रेस पार्टी के 2012 में जारी किए गए घोषणापत्र में नया जिला बनाने का ऐलान था। प्रदेश कांग्रेस कमेटी लगातार उत्तराखंड सरकार से इसे पूरा करने की मांग करती रही है। उत्तराखंड में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। ऐसे माहौल में जिस तरह से प्रदेश कांग्रेस कमेटी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के बीच घमासान चल रहा है इसका क्या नतीजा होगा तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा? फिलहाल प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत को चुनाव में बीजेपी के साथ-साथ अपनी ही पार्टी से भी लड़ना होगा।