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राम मंदिर के मुद्दे का यूपी की 80 सीटों पर कितना असरः नज़रिया

मायावती देखेंगी उनके वोट बीजेपी से कहां कहां कटे थे. उनका राजनीति करने का तरीका बिल्कुल अलग है. उनकी वापसी होगी इसमें कोई संदेह नहीं.

तमिलनाडु में भी लोग क्षेत्रीय पार्टी को समर्थन दिया. 2004 में उत्तर प्रदेश के लोगों ने भी क्षेत्रीय पार्टी को बीजेपी और कांग्रेस पर तरजीह दी थी. तब सपा को लोगों का समर्थन मिला था.


By BBC News हिन्दी
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राम मंदिर
Getty Images
राम मंदिर

राम मंदिर की वजह से एक वर्ग उनका समर्थक रहा है. पिछले एक दो साल से राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा बहुत जोर शोर से उठाया गया. लगातार यह कहा जाता रहा कि इसका निर्माण शुरू होने ही वाला है.

अमित शाह और नरेंद्र मोदी भी इस मुद्दे पर बोले. जय श्री राम के नारे भी वापस लगे. फिर अचानक उन्होंने यह निर्णय लिया.

चार महीने का मतलब है कि तब दूसरी सरकार का गठन हो जाएगा. यानी तब तक इस निर्णय को टाला गया.

इसके पीछे वजह है कि चुनाव के बाद यदि बीजेपी को गठबंधन की सरकार बनाने की ज़रूरत पड़ी तो उन्हें ओडिशा और तेलंगाना की ओर देखना होगा.

गठबंधन की आवश्यकता पड़ने पर उन्हें यहां से चुनाव बाद समर्थन मिलने की संभावनाएं हैं.

भागवत
EPA
भागवत

लेकिन राम मंदिर के मुद्दे पर वो धर्म निरपेक्ष चेहरा रखना चाहेंगे, इसलिए बीजेपी को ये लगा कि इसे टाला जाना चाहिए.

इसमें किसका फ़ायदा?

चुनाव के दौरान जब हिंदुत्व की बात होगी तो कांग्रेस और सपा-बसपा की बात की जाएगी लेकिन उसका जनता पर कोई असर नहीं होगा.

उधर कांग्रेस यदि राम मंदिर के मसले को उठाएगी तो उन्हें भी इसका फ़ायदा नहीं मिलेगा.

मंदिर का मुद्दा ख़त्म होने के बाद उत्तर प्रदेश में चुनाव जाति के आधार पर ही होगा.

Rahul Gandhi
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Rahul Gandhi

बेहतर करेगी कांग्रेस

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के बीच चुनावी गठबंधन हुआ और कांग्रेस के लिए रायबरेली और अमेठी की सीटें छोड़ी गईं.

विश्लेषण तो यहां तक किया गया कि कांग्रेस को राज्य में अपने पैर जमाने में भी मुश्किल होगी. लेकिन ऐसा नहीं है.

2014 के चुनाव में मोदी लहर थी. ठीक वैसे ही जब इंदिरा गांधी तक हार गई थीं. जब ऐसी लहर होती है तो नतीजे बिल्कुल अलग होते हैं.

लेकिन 2019 में कांग्रेस को 20 सीटें आ जाएंगी ये सोचना भी ग़लत लगता है. लेकिन 2014 से उनका प्रदर्शन बेहतर होगा.

अयोध्या
BBC
अयोध्या

बीजेपी को किससे ख़तरा?

उत्तर प्रदेश में यदि बीजेपी को कोई परेशान कर रहा है तो वो है सपा-बसपा गठबंधन.

यदि राम मंदिर बनता तो कुछ यादव चले जाते. कुछ यादव धार्मिक वजहों से बीजेपी का साथ देते लेकिन अब ऐसा नहीं लगता है.

प्रियंका गांधी के सामने दलित, मुसलमान और ब्राह्मणों से वोट पाने की चुनौती होगी.

मायावती
PTI
मायावती

क्या मायावती की होगी वापसी?

मायावती की पार्टी बसपा को निश्चित रूप से 2014 में कोई सीट नहीं मिला लेकिन यूपी में 19.60% वोट मिले थे और समूचे देश में उनकी पार्टी को 12 फ़ीसदी वोट मिले. वोट पाने के लिहाज से वो देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी.

तृणमूल कांग्रेस जैसी क्षेत्रीय पार्टी को भी 34 सीटें मिली थीं. जबकि वोट केवल 3.84 फ़ीसदी ही मिले थे.

मायावती देखेंगी उनके वोट बीजेपी से कहां कहां कटे थे. उनका राजनीति करने का तरीका बिल्कुल अलग है. उनकी वापसी होगी इसमें कोई संदेह नहीं.

तमिलनाडु में भी लोग क्षेत्रीय पार्टी को समर्थन दिया. 2004 में उत्तर प्रदेश के लोगों ने भी क्षेत्रीय पार्टी को बीजेपी और कांग्रेस पर तरजीह दी थी. तब सपा को लोगों का समर्थन मिला था.

मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश से 35 सीटें मिली थीं. तब उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 10 और कांग्रेस को 9 सीटें मिली थीं. जबकि मायावती की बसपा को 19 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी.

कुल मिलाकर यह कहना ग़लत नहीं होगा कि राष्ट्रीय चुनाव में जनता केवल बीजेपी या कांग्रेस में से चयन करती है, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है.

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English summary
The impact of Ram temple issue on the 80 seats of UP Attitude
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