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योगी की ठाकुरवादी राजनीति ने ऐसे बिगाड़ा बुआ-बबुआ का खेल

उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव की दसवीं सीट की लड़ाई में भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को हरा दिया.

लेकिन प्रतिष्ठा की इस लड़ाई में असली जीत राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हुई. उन्होंने इस चुनाव के दौरान ये दिखाया है कि अपनी बिरादारी के नेताओं पर उनका कितना प्रभाव है. उनके इस प्रभाव के चलते ही बीजेपी के 

By BBC News हिन्दी
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योगी आदित्यनाथ
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योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव की दसवीं सीट की लड़ाई में भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को हरा दिया.

लेकिन प्रतिष्ठा की इस लड़ाई में असली जीत राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हुई. उन्होंने इस चुनाव के दौरान ये दिखाया है कि अपनी बिरादारी के नेताओं पर उनका कितना प्रभाव है. उनके इस प्रभाव के चलते ही बीजेपी के उम्मीदवार को कांटे के मुक़ाबले में जीत मिली.

योगी आदित्यनाथ के नज़दीकी सलाहकार ने बताया, "नौवें उम्मीदवार को जीत दिलाने के लिए हमारे पास पर्याप्त विधायक नहीं थे, ऐसे में हमारी योजना विपक्षी उम्मीदवार को 36 विधायकों के मत हासिल करने से रोकने की थी, क्योंकि इसके बाद दूसरी वरीयता से नतीजा होना था, जो हमारे पक्ष में होना ही था."

भारतीय जनता पार्टी अपनी इस रणनीति में कामयाब रही. उसने सपा समर्थित बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर को महज 32 विधायकों के मत तक सीमित कर दिया.

भीमराव आंबेडकर को बहुजन समाज पार्टी के 17, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के 7-7 और सोहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के एक उम्मीदवार का वोट मिला.

आंबेडकर की उम्मीदों को एक झटका तब भी लगा जब उनकी अपनी ही पार्टी के अनिल सिंह का वोट भारतीय जनता पार्टी को चला गया और इसके बाद राष्ट्रीय लोकदल का एक वोट अयोग्य क़रार दिया गया.

समाजवादी पार्टी के एमएलसी उदयवीर सिंह ने बताया, "हम लोगों ने बीएसपी के उम्मीदवार को जिताने के लिए पूरी कोशिश की. लेकिन हमारे पास पर्याप्त संख्या में विधायक नहीं थे. समाजवादी पार्टी ने अपने विधायकों के वोट ईमानदारी से बीएसपी के उम्मीदवार को दिए थे."

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राजा भैया का वोट किसे मिला?

इस चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले गठबंधन के एक दल के नेता ने बताया, "गठबंधन के उम्मीदवार को जितने वोट मिले हैं, उससे साफ़ होता है कि राजा भैया का वोट गठबंधन को नहीं मिला है. योगी आदित्यनाथ ठाकुरवादी राजनीति के नाम पर उन्हें अपने साथ करने में कामयाब रहे."

योगी आदित्यनाथ के एक सलाहकार के मुताबिक़, "राजा भैया लगातार हम लोगों के संपर्क में थे, वे अखिलेश यादव की डिनर पार्टी में भले शामिल हुए थे लेकिन वे उस दिन भी योगी आदित्यनाथ से मिले थे और वोट डालने के बाद भी मुलाकात करने आए थे."

राजा भैया
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राजा भैया

राजा भैया और विनोद सरोज का वोट समाजवादी पार्टी को नहीं मिला है, इस पर भरोसा करने की वजह बीजेपी उम्मीदवारों को मिले विधायकों के वोटों का अंक गणित भी है. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को कुल 328 वोट मिले हैं.

बीजेपी के आठ उम्मीदवारों को 39-39 विधायकों का मत मिला है. इसके अलावा 16 विधायकों का वोट नौवें उम्मीदवार अनिल अग्रवाल को मिला. जबकि उसके पास सहयोगी दलों को मिलाकर कुल 324 विधायकों का समर्थन था. लेकिन बाद में उसे अमनमणि त्रिपाठी, विजय मिश्रा, नितिन अग्रवाल और अनिल सिंह (बीएसपी के उम्मीदवार का क्रास वोट) का मत भी मिला तो उसके खेमे में कुल 328 विधायक हो गए.

लेकिन भारतीय समाज पार्टी के एक विधायक ने क्रॉस वोटिंग की और भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक का वोट रद्द हो गया. तो इस लिहाज से उनके खेमे में 326 वोट ही रह गए लेकिन उन्हें कुल वोट 328 मिले. लिहाजा गठबंधन खेमे के कई विधायकों का मानना है कि राजा भैया और विनोद सरोज का वोट आख़िर में बीजेपी के खेमे में ही चला गया.

राजा भैया को लेकर पूरे दिन सस्पेंस बना रहा था, उन्होंने ऑन द रिकॉर्ड समाजवादी पार्टी को वोट देने की बात भी कही, लेकिन दिन भर ये कयास लगाए जाते रहे कि उन्होंने किसे वोट किया.

समाजवादी पार्टी के अपने विधायकों के कुल वोटिंग से भी इस बात की आशंका को बल मिलता है कि राजा भैया ने समाजवादी पार्टी का साथ नहीं दिया. हरिओम यादव के चुनाव में हिस्सा नहीं लेने की वजह से, समाजवादी पार्टी के खेमे में कुल 45 विधायक ही रह गए थे. जया बच्चन को 38 वोट मिले और बाक़ी के सात वोट बहुजन समाज पार्टी के भीमराव आंबेडकर को मिले.

बीजेपी पर आरोप

कांग्रेस विधानमंडल के नेता अजय कुमार लल्लू ने बताया, "गठबंधन ने अपना पूरा ज़ोर लगाया लेकिन बीजेपी निर्दलीय उम्मीदवारों को अपने पक्ष में करने में कामयाब हो गई, क्योंकि हर तरह के प्रलोभन दिए गए हैं. इसके बाद भी कांग्रेस के सात विधायक एकजुट बने रहे."

बहरहाल, राज्यसभा की नौवीं सीट पर जीत दिलाकर योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर उपचुनाव में मिली हार से अपनी छवि को हुए नुकसान को काफी हद तक कम कर लिया है. लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इस चुनाव को जीतने के लिए राज्य सरकार ने अपनी मशीनरी का जमकर दुरुपयोग किया है.

समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य उदयवीर सिंह कहते हैं, "ताक़त और पैसों का जितना दुरुपयोग सत्तारूढ़ दल ने किया है, उसमें कुछ भी संभव है. आप ये भी देखिए कि गठबंधन के दो विधायकों को जेल में रोका गया, उन्हें वोट नहीं डालने दिया गया."

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बहुजन समाज पार्टी के मुख्तार अंसारी और समाजवादी पार्टी के फिरोज़ाबाद से आने वाले हरिओम यादव को मतदान में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं दी. हालांकि झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के विधायक को जेल में होने के बाद भी राज्य सभा चुनाव में हिस्सा लेने की मंजूरी मिली.

अगर ये दोनों अपना अपना वोट डालने आते, तो शायद भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को जीत नहीं मिलती. क्योंकि अनिल अग्रवाल को भी कुल मिलाकर 32 वोट मिले, लेकिन दूसरी वरीयता के आधार पर उन्हें विजेता घोषित किया गया.

वरिष्ठ पत्रकार अंबिकानंद सहाय के मुताबिक, "गोरखपुर और फूलपुर में जीत हासिल करने के बाद सपा-बसपा गठबंधन ने राज्य सभा चुनाव में भी दमदार चुनौती पेश की है, मुझे नहीं लगता है कि इस नतीजे से गठबंधन की संभावनाओं को धक्का पहुंचा है."

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English summary
The elitist politics of the Yogi plays such a spoiled buahabua
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