#ICUdiary : कोरोना ICU वॉर्ड में ड्यूटी करने वाली डॉक्टर की आपबीती
मरीज़ों को इस दुनिया से उस दुनिया में जाने से रोकने की कोशिश करने वाले डॉक्टर और अनुभव...
कोरोना से जंग में लाखों लोगों ने अपनी जान गँवाई है. कोरोना से सीधी जंग में मरीज़ों के बाद कोई रहा है तो वो हैं डॉक्टर्स.
दूसरों की मौत से जंग लड़ने का काम डॉक्टरों के लिए कितना चुनौतीपूर्ण रहा?
किस तरह के अनुभव रहे और कैसे अंजान लोगों की ज़िंदगी या मौत एक डॉक्टर को प्रभावित करती है?
ये समझने के लिए बीबीसी आपके लिए पेश करता है नई सिरीज़- ICU DIARY
#ICUdiary में आप एक से पांच जून तक पढ़ेंगे- कोविड आईसीयू वॉर्ड में ड्यूटी करने वाली डॉ दीपशिखा घोष के लिखे अनुभव.
इन अनुभवों में आपको बेटा भी मिलेगा, बेटी भी. पिता भी और पति पत्नी भी. अंजान चेहरे वाले मरीज़ भी और मास्क लगाए डॉक्टरों का दुख भी.
#ICUdiary 1: तुमी तो आमार मां...
हम लगातार एक जंग लड़ रहे हैं. जंग न सिर्फ़ कई रूप वाले वायरस से है बल्कि कई दूसरी मुश्किलों से भी है.
हमारे अस्पताल में एक महिला भर्ती हुई, जो ख़ुद एक डॉक्टर हैं. उनका ऑक्सीजन लेवल काफ़ी कम था. फिर भी वो ज़्यादा इलाज या वेंटिलेटर पर जाने से इंकार करती हैं.
ऑक्सीजन पर होने के बावजूद वो एक पूरा वाक्य बोलने में लड़खड़ा जातीं. वो एक सांस में कुछ ही शब्द बोल पातीं. बीते कुछ हफ़्तों में मैंने उनके मिजाज़ को तेज़ी से बदलते देखा है. शुरू में मुझसे और नर्सों के लिए जो बेरुखी थी, वो अब प्यार में बदल गई थी.
अब वो मेरा हाथ पकड़कर अक्सर नींद आने वाली दवा मांगतीं.
वो बंगाली में कहतीं- तुमी तो आमार मां...
यानी तुम ही तो मेरी मां हो.
ये बातें उन नौजवानों के मन में जाकर ठहर रही थीं, जो बेहद कम उम्र के हैं और अचानक मौत से लड़ते लोगों का ख़याल रखने के रोल में आ गए हैं.
उनके पति भी कोरोना मरीज़ हैं और बेहतर तबीयत होने की वजह से इसी अस्पताल के दूसरे वार्ड में भर्ती हैं. अक्सर वो अपनी पत्नी से कहते- कम से कम प्रोन वेंटिलेशन तो कर लो.
प्रोन वेंटिलेशन में मरीज़ को पेट के बल लेटने को कहा जाता है, इससे सांस लेने की दिक्कत दूर होने की संभावना रहती है.
लेकिन उनका वज़न ज़्यादा है, इसलिए प्रोन वेंटिलेशन तकलीफों से भरा हो सकता है. वो ये जानती हैं कि उनके पति भी ये बात समझते हैं.
फिर भी वो अपना हाथ उठाती हैं और पति को इशारे से समझाती हैं कि वो पूरी कोशिश कर रही हैं. उनके पति हमसे गुज़ारिश करते हैं कि चाहे जैसे भी हो, हम उनकी पत्नी से इलाज करवाने के लिए कहें.
मैं दिलासा देती हूं कि हर संभव कोशिश करूंगी.
हाथ जोड़े और आंखों में खूब सारी उदासी लिए वो शख्स अपने बेड तक चले जाते हैं. एक ऐसी उम्मीद लिए जो पूरी होनी मुश्किल है.
कुछ रोज़ बाद वो शख्स अस्पताल से घर चला जाता है. लेकिन अकेला...
'तुमी तो आमार मां....' ये बात बिना किसी लड़खड़ाहट के कानों में गूंजती रहती है.
(सिरीज़ प्रोड्यूसर: विकास त्रिवेदी/इलस्ट्रेशन: पुनीत बरनाला)
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