
पंजाब से मिले 165 साल पुराने कंकाल, देश के किन हिस्सों के सैनिकों के थे ? DNA जांच से हुई पहचान
नई दिल्ली, 28 अप्रैल: पंजाब के अजनाला शहर में 2014 में एक कुएं से बड़ी संख्या में मानव कंकाल बरामद किए गए थे। तब कई इतिहासकों में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई थी कि वे किनके कंकाल थे। बाद में पता चला था कि वे कंकाल देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाले भारत के वीर जवानों के थे, जिनकी अंग्रेजों ने हत्या कर दी थी। लेकिन, इस बात को लेकर बहस कभी खत्म नहीं हो रही थी कि वे सैनिक भारत के किन इलाकों के थे। दावा किया जा रहा था कि वे भारतीय सैनिक या तो स्थानीय थे या मौजूदा पाकिस्तान के इलाकों के थे। लेकिन, गुरुवार को डीएनए स्टडी एक जर्नल में प्रकाशित हुई है, जिससे साबित हो गया है कि वे कंकाल असल में गंगा के मैदानी इलाकों में यूपी से लेकर ओडिशा तक के जवानों के थे।

गंगा के मैदानी इलाकों के सैनिकों के हैं कंकाल
2014 में पंजाब से एक कुएं की खुदाई में मानव कंकाल मिले थे। अब डीएनए स्टडी से यह बात सामने आई है कि 165 साल पुराने मानव कंकाल उन भारतीय सैनिकों के हैं, जो गंगा के मैदानी इलाकों के रहने वाले थे। ये सैनिक 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान ब्रिटिश आर्मी से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए थे। गौरतलब है कि पंजाब के अजनाला शहर से बड़ी संख्या में मानव कंकाल पाए गए थे और तब इसको लेकर कुछ इतिहासकारों का मानना था कि यह कंकाल उन लोगों के हो सकते हैं, जो 1947 में भारत के विभाजन के दौरान भड़के दंगों में मारे गए होंगे।

बंगाल, ओडिशा, बिहार और उत्तर प्रदेश के सैनिक थे
लेकिन, तब विभिन्न ऐतिहासिक सूत्रों और मान्यताओं के आधार पर यह पाया गया था कि ये सैनिक 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश सैनिकों के साथ लड़ते हुए शहीद हुए थे। हालांकि, वैज्ञानिक साक्ष्यों की कमी के चलते इन जवानों की पहचान और वह देश के किन हिस्सों के थे, यह बहस का मुद्दा बना ही रह गया था। गुरुवार को जो ताजा स्टडी जर्नल फ्रंटियर्स इन जेनेटिक्स में प्रकाशित हुई है, उसके मुताबिक सैनिकों के ये कंकाल गंगा के मैदानी इलाकों के हैं। इन सैनिकों में बंगाल, ओडिशा, बिहार और उत्तर प्रदेश के सैनिक थे।
'वे पहले स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक थे'
यूपी के वाराणसी स्थित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर ग्यानेश्वर चौबे ने कहा कि यह अध्ययन 'भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों' के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनके मुताबिक, 'यह शोध दो चीजों की पुष्टि करता है: पहला ये कि 1857 के विद्रोह के दौरान भारतीय सैनिकों की हत्याएं हुई थीं और दूसरा कि वे गंगा के मैदानी इलाकों के थे, न कि पंजाब के।' चौबे की इस शोध में अहम भूमिका रही है।

पंजाब और पाकिस्तान को लेकर भी हो रही थी बहस
प्रोफेसर चौबे के मुताबिक, 'उनकी उत्पत्ति को लेकर एक बहस चल रही थी। कई ने कहा कि वे भारत-पाकिस्तान के विभाजन के दौरान मारे गए थे। 1857 की थ्योरी को लेकर भी दो समूह थे। एक उन्हें स्थानीय (पंजाबी) सैनिक मान रहे थे और दूसरा समूह उन्हें 26वीं लाहौर स्थित मियां मीर की छावनी में तैनात नैटिव इंफैंट्री रेजिमेंट का मानते थे।' लीड रिसर्चर और प्राचीन डीएनए के एक्सपर्ट नीरज राय ने कहा है कि टीम ने जो वैज्ञानिक शोध किया है, उससे इतिहास को साक्ष्य के आधार पर देखने में सहायता मिलेगी।
दो मूल आधार पर की गई स्टडी
पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के मानव विज्ञानी जेएस शेहरावत, जो कि इस स्टडी के पहले ऑथर भी हैं, उन्होंने कहा है, 'इस शोध के परिणाम ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुरूप हैं कि 26वीं नैटिव बंगाल इंफैंट्री बटालियन के थे, जिसमें बंगाल के पूर्वी हिस्से, ओडिशा, बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग शामिल थे।' शोधकर्ताओं ने डीएनए विश्लेषण के लिए 50 सैंपल और आइसोटॉप विश्लेषण के लिए 85 नमूनों का इस्तेमाल किया है। सीसीएमबी के चीफ साइंटिस्ट और टीम के वरिष्ठ सदस्य के थंगराज ने कहा है, 'डीएनए विश्लेषण से लोगों के वंश को समझने में सहायता मिलती है और आइसोटॉप विश्लेषण से भोजन की आदतों पर प्रकाश पड़ता है।'

थंगराज के मुताबिक, 'शोध के दोनों तरीकों ने इस बात का समर्थन किया है कि जो मानव कंकाल कुएं में पाए गए थे, वे पंजाब या पाकिस्तान में रहने वाले लोगों के नहीं थे। बल्कि, डीएनए सीक्वेंस यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों से मेल खा गए हैं।' (तस्वीरें- सांकेतिक)