टकसाल: जिंदगी को सफल बनाने के जद्दोजहद में फंसे शख्स की ट्रैजिक कहानी
टकसाल - डायरेक्टर- प्रसून प्रभाकर
कास्ट- ज्ञानेंद्र त्रिपाठी, घनश्याम लालसा, सान्या बंसल, पवन सिंह, इखलाक़ खान
ये कहानी है शादीशुदा संदीप की। एक ऐसे युवा की जिसकी जबान में लड़खड़ाहट है। वो कोशिश करता है कि ठीक से बोल सके, खुद को साबित कर सके, लेकिन उसकी दुनिया में एक साथ कई विलेन हैं। चाहे संदीप का बॉस हो या फिर उसकी कमजोरी का फायदा उठाने वाला उसके दफ्तर का एक चपरासी। संदीप के पिता पैरालाइज्ड हैं। वो सारी परेशानी उनके साथ ही शेयर करता है। पत्नी नौकरी करती है लेकिन संदीप के साथ उसकी दूरी साफ साफ दिखती है। एक छत के नीचे रहकर भी ऐसा लगता है कि पति और पत्नी दो अलग-अलग जिंदगी गुजार रहे हैं। वजह है पत्नी की अपनी महत्वकांक्षा।
वो दोस्त के साथ एक स्टार्टअप शुरू करना चाहती है। इसके लिए वो संदीप की राय लेना भी जरूरी नहीं समझती। ऑफिस में संदीप को बॉस बेकार समझते हैं। बात बात पर उसे बेइज्जत करते हैं। हकलाने की वजह से उसका मखौल उड़ाते हैं। घर में ही नहीं ऑफिस में संदीप अकेले पड़ जाता है। आखिर में अपने दफ्तर के पूर्व चपरासी के कहने पर वो एक बिजनेस में पैसा लगा बैठता है। फिर वहां भी उसे धोखा मिलता है। गुस्से में संदीप चपरासी को मार देता है। फिल्म खत्म हो जाती है। यहां एक पोएट्री है जिसके जरिए फिल्म की पूरी फिलॉसफी साफ होती है। पोएट कहती है कि वो नज्म इसलिए नहीं लिखती कि वो कुछ कहना चाहती है, बल्कि इसलिए लिखती कि कुछ कह नहीं पाती हैं।
टकसाल शुरू होती है मुंबई के आइकॉनिक नरिमन पॉइंट के एक स्टिल विजुअल से। मैक्सिमम सिटी की वर्चुअल रियल्टी के अगले ही पल कैमरा, ट्रैफिक की जलती बुझती बत्ती, लोकल ट्रेन और लाइफलेस स्काईस्क्रैपर की ओर चला जाता है। एक इसके बाद डायरेक्टर प्रसून प्रभाकर एक-एक करके मुंबई में बाहर से आए जिंदगी को सफल बनाने के जद्दोजहद में फंसे संदीप की ट्रैजिक कहानी को पिरोते हैं। निजी, पारिवारिक और ऑफिस की जिंदगी जहां हर कुछ बेमेल है। इस फिल्म में संदीप का अपने पैरालाइज्ड पिता के साथ बात करने को डायरेक्टर ने शानदार तरीके से पेश किया है। संदीप के किरदार में ज्ञानेंद्र त्रिपाठी का अभिनय शानदार है।