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#SwachhDigitalIndia : फ़ेक न्यूज़ की पोल खोलने के 8 तरीक़े

बीबीसी हिंदी और 'द क्विंट' की साझा पहल #SwachhDigitalIndia की दूसरी कड़ी.

By तरुणी कुमार - द क्विंट
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भीड़, हिंसा
AFP/Getty Images
भीड़, हिंसा

नहीं, 2000 रुपये के नए नोटों में कोई जीपीएस चिप नहीं लगी है. नहीं, यूनेस्को ने हमारे राष्ट्रगान को दुनिया का सबसे अच्छा राष्ट्रगान घोषित नहीं किया है.

यूनेस्को एक संस्था के रूप में ऐसा करती भी नहीं है! नहीं, भारत में 2016 में नमक की कोई किल्लत भी नहीं थी.

अगर आपको ऐसा लगता है कि इन बेतुकी बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, तो आपको बता दें कि जब अंतिम अफ़वाह फैली थी तो इस अफ़रा-तफ़री में कानपुर में एक महिला की मौत हो गई थी.

ये सभी झूठी खबरें (फ़ेक न्यूज़) थीं जो फ़ेसबुक, ट्विटर और व्हॉट्सऐप पर वायरल हुए, ऐसी अफ़वाहों की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है.

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इंटरनेट का माहौल

कभी अपनी इमेज चमकाने के लिए, कभी अपने विरोधी की इमेज ख़राब करने के लिए, कभी नफ़रत फैलाने के लिए तो कभी भ्रम पैदा करने के लिए ऐसे मैसेज फैलाए जाते हैं.

इन मैसेजों के झांसे में आने वाले न सिर्फ़ बेवकूफ़ बनते हैं बल्कि अनजाने में शातिर लोगों के हाथों इस्तेमाल भी होते हैं, कई बार लोग किसी ख़ास सोच से प्रभावित होकर जानते हुए भी झूठ फैलाते हैं.

इंटरनेट का माहौल ठीक रखने की ज़िम्मेदारी हर उस व्यक्ति की है जो उसे इस्तेमाल करता है. अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो इतना कचरा बढ़ जाएगा कि मोबाइल/इंटरनेट पर मिलने वाली किसी भी जानकारी को भरोसेमंद नहीं माना जाएगा.

सिर्फ़ सच पढ़िए और सच ही शेयर करिए, ऐसा करना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन ज़रूरी है, और आप कर सकते हैं.

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1. व्हॉट्सऐप इस्तेमाल कर रहे हैं? तो अपना ब्राउज़र भी इस्तेमाल करें.

अगर आपकी फ़ेमिली और स्कूल के व्हॉट्सऐप ग्रुप में कोई मैसेज आता है तो क्या आप जानते हैं कि ये कितना सच या झूठ है?

आप व्हॉट्सऐप इस्तेमाल कर रहे हैं तो आप वाई-फ़ाई या मोबाइल इंटरनेट भी इस्तेमाल कर रहे होंगे.

इसका मतलब है कि आप गूगल सर्च करके चेक कर सकते हैं कि बात सच है या झूठ.

किसी मैसेज को दूसरों को फ़ॉरवर्ड करने से पहले उसकी हकीकत जांच लें ताकि आप भी झूठी ख़बर फैलाने वालों के शिकार न बनें और उनके हाथों इस्तेमाल न हों.

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2. फ़ैक्ट चेक करना ज़्यादा मुश्किल नहीं है

जब आपको सोशल मीडिया के ज़रिये कोई जानकारी मिलती है तो ये ज़रूर चेक करना चाहिए कि अगर बात सच है तो देश-विदेश की दस-बीस भरोसेमंद साइटों में से किसी पर ज़रूर होगी.

अगर आप पाते हैं कि ये मैसेज या जानकारी कहीं और नहीं है तो उसका भरोसा मत कीजिए.

आप लेखक का नाम या जानकारी देने वाली साइट को भी सर्च कर सकते हैं ताकि पता चल सके कि उसने और क्या-क्या किया है.

इससे आपको पता चल जाएगा वे इसी तरह की दूसरी अफ़वाहें भी फैला रहे होंगे.

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3. सोर्स और यूआरएल पता करें

जब आप कुछ भी ऑनलाइन पढ़ते हैं तो देखें कि इसे किसने पब्लिश किया है.

क्या वो कुछ समय से स्थापित न्यूज पब्लिशर हैं और क्या उनका नाम चर्चित है जिस पर भरोसा किया जा सकता है.

लेकिन अगर आपने पब्लिशर के बारे में कभी नहीं सुना है तो चौकन्ने हो जाएँ. सिर्फ़ पब्लिशर पर भी भरोसा ना करें.

कोई भी पेशेवर संस्था ये ज़रूर बताती है कि उसकी जानकारी का स्रोत क्या है. बिना स्रोत बताए जानकारी देने वालों से सावधान रहें. वेबसाइट का यूआरएल भी देखें.

आपको लग सकता है कि आप बीबीसी, द क्विंट, द गार्डियन या टाइम्स ऑफ इंडिया की साइट देख रहे हैं, लेकिन 'डॉट कॉम,' के अंत में 'डॉट को' या 'डॉट इन' का मामूली-सा बदलाव साइट के पेज को पूरी तरह बदल देता है.

मिसाल के तौर पर www.bbchindi.in बीबीसी हिंदी वेबसाइट नहीं है.

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4. तारीख चेक करें!

कोई चीज़ एक बार वर्ल्ड वाइड वेब में आ जाए तो फिर ये हमेशा वहाँ रहती है. ये बात समाचारों के लिए भी लागू होती है.

शुक्र मनाइए कि सभी विश्वसनीय समाचारों में सोर्स के साथ उनके पब्लिश होने की तारीख़ भी दी जाती है. कोई भी चीज़ शेयर करने से पहले इसे ज़रूर जांचें.

पुराने लेख, खासकर आतंकवाद से लड़ाई या आर्थिक विकास जैसी लगातार बदलने वाली ख़बर की कुछ समय बाद कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाती है.

5. पक्का कर लें कि ये मज़ाक तो नहीं

फ़ेकिंग न्यूज़ और ओनियन जैसी वेबसाइटों पर छपने वाले लेख घोषित रूप से मज़ाक उड़ाने वाले होते हैं.

ये वास्तविक तथ्यों पर आधारित नहीं होते और संभव है कि ये किसी ताज़ा घटना पर केंद्रित हों. हमेशा ध्यान रखें कि आपके समाचार का ज़रिया कोई व्यंग्य वाली वेबसाइट तो नहीं.

भारतीय मीडिया
SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images
भारतीय मीडिया

6. साइट का 'अबाउट' पेज देखें

हर विश्वसनीय पब्लिशर का ख़ुद के बारे में बताने वाला 'अबाउट' पेज होता है. इसे पढ़ें.

पब्लिशर की विश्वसनीयता के बारे में बताने के साथ ही यह ये बताएगा कि संस्था को कौन चलाता है. एक बार ये पता चल जाने पर उसका झुकाव समझ पाना आसान होगा.

7. समाचार पर आपकी प्रतिक्रिया

ख़बर झूठी है या नहीं ये जानने का एक तरीका है कि इसके असर को खुद पर परखें. देखें कि समाचार पर आपकी कैसी प्रतिक्रिया है.

क्या इसे पढ़ने से आप गुस्से, गर्व या दुख से भर उठे हैं. अगर ऐसा होता है तो इसके तथ्यों को जांचने के लिए गूगल में सर्च करें.

झूठी ख़बरें बनाई ही इस तरह जाती हैं कि उन्हें पढ़ कर भावनाएँ भड़कें जिससे कि इसका फैलाव अधिक हो.

आखिर आप इसे तभी शेयर करेंगे जब आपकी भावनाएं इससे गहराई से जुड़ेंगी.

भीड़, हिंसा
Chandan Khanna/AFP/Getty Images
भीड़, हिंसा

8. हेडलाइन के परे भी देखें

अगर आप पाएं कि भाषा और वर्तनी की ढेरों गलतियां हैं और फ़ोटो भी घटिया क्वॉलिटी की हैं तो तथ्यों की जरूर जांच करें.

झूठी ख़बरें फैलाने वाली साइटें ये काम गूगल के ऐड से पैसा बनाने के लिए करती हैं, इसलिए वो साइट की क्वॉलिटी सुधारने पर ध्यान नहीं देतीं.

सारी बातों के अंत में, डिजिटल वर्ल्ड में सारी ख़बरें उसके दर्शक-पाठक पर निर्भर करती हैं कि आप इसे अपने सोशल मीडिया अकाउंट या चैट में शेयर करते हैं या नहीं.

लेकिन अगर आप जान-बूझकर झूठ या नफ़रत शेयर करते हैं तो इसके नतीजे भी भुगतने पड़ सकते हैं, आपके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई भी हो सकती है. इसलिए शेयर करें मगर ज़िम्मेदारी से.

BBC Hindi
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English summary
8 ways to open a poll of Fake News
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