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सुषमा स्वराज कभी चंद्रशेखर को अपना राजनीतिक गुरु मानती थीं

चंद्रशेखर मानते थे कि वे (सुषमा स्वराज) ग़लत पार्टी (भाजपा) में सही नेता हैं. बक़ौल चंद्रशेखर, सुषमा स्वराज की राजनीतिक पृष्ठभूमि भाजपा या आरएसएस के विचारधारा की नहीं रही थी. हालांकि, वे संघ की विचारधारा पर चलने वाले छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रही थीं. इसके बावजूद सुषमा स्वराज और चंद्रशेखर के संबंध काफ़ी मधुर बने रहे. 

By रवि प्रकाश
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सुषमा स्वराज
Getty Images
सुषमा स्वराज

कहानी बहुत पुरानी नहीं. साल 2001 के जनवरी महीने की किसी तारीख़ को मैं पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के साथ केरल में था. वहां उनका भारत यात्रा केंद्र है. तब वहां चंद्रशेखर की उस भारत यात्रा के सहयात्रियों की बैठक होने वाली थी, जो उनके साथ साल 1983 में पैदल चले थे.

मैं उन्हीं सब बातों को देखने और चंद्रशेखर के भारत यात्रा केंद्रों की ताजा स्थिति पर लिखने के लिए उनके साथ घूम रहा था. तब के मेरे संपादक हरिवंश (संप्रति- उपसभापति, राज्यसभा) ने मुझे उस असाइनमेंट पर लगाया था. बातें एक किताब में छपने वाली थीं. सो, मैंने अपना पांच महीना उनके साथ गुज़ारा.

उस दौरान जो बातें भारत यात्रा के संदर्भ में हुईं, वे उस किताब में छप चुकी हैं. कुछ बातें, जो भारत की सियासत और यहां के राजनेताओं और इतिहास की हुईं, वे मेरे निजी संस्मरणों के तौर पर डायरी के पन्नों और दिमाग़ में क़ैद हैं. गाहे-बगाहे इन्हें लिखा भी है और इसकी चर्चाएं भी हुई हैं.

ऐसा ही एक संस्मरण सुषमा स्वराज का है.

चंद्रशेखर मानते थे कि वे (सुषमा स्वराज) ग़लत पार्टी (भाजपा) में सही नेता हैं. बक़ौल चंद्रशेखर, सुषमा स्वराज की राजनीतिक पृष्ठभूमि भाजपा या आरएसएस के विचारधारा की नहीं रही थी. हालांकि, वे संघ की विचारधारा पर चलने वाले छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रही थीं. इसके बावजूद सुषमा स्वराज और चंद्रशेखर के संबंध काफ़ी मधुर बने रहे. दोनों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ रहते हुए भी कभी अपनी मर्यादा नहीं लांघी. इसके कई उदाहरण हैं.

CHANDRASHEKHAR FAMILY

साल 1996 में लोकसभा में तत्कालीन सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव पर बोलते हुए सुषमा स्वराज ने चंद्रशेखर को भीष्म पितामह कह कर संबोधित किया था. इसी तरह साल 2004 में सोनिया गांधी को लेकर दिए गए एक बयान को लेकर चंद्रशेखर ने सुषमा स्वराज की राज्यसभा की सदस्यता बर्ख़ास्त करने तक की मांग की. लेकिन, दोनो तरफ़ से कभी कोई अमर्यादित टिप्पणी नहीं की गई.

उन्हें जानने वाले लोग बताते हैं कि सुषमा स्वराज किसी वक़्त चंद्रशेखर को अपना मेंटोर मानती थीं. हालांकि, बाद के दिनों में वे लाल कृष्ण आडवाणी के क़रीब आ गईं और फिर भारतीय जनता पार्टी में उनका क़द काफ़ी ऊंचा होता चला गया. एक वक़्त यह भी आया कि कार्यकर्ताओं और पार्टी नेताओं का एक वर्ग उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानने लगा.

यह अलग बात है कि लाल कृष्ण आडवाणी की ही तरह, वे भी भारत की प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं. साल 2019 के चुनावों में तो उन्होंने अपनी उम्मीदवारी भी छोड़ दी और घर पर स्वास्थ्य लाभ करने का निर्णय ले लिया. वे भारत की दूसरी महिला विदेश मंत्री रहीं और दूसरे मंत्रालयों में काम करते हुए भी उन्होंने अपनी विशेष छाप छोड़ी.

लेकिन, उनकी सियासी एंट्री इतनी आसान नहीं थी.

बक़ौल चंद्रशेखर, आपातकाल के बाद देश में तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार के प्रति भारी नाराज़गी थी. साल 1977 की सर्दियों में हुए आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह हार चुकी थी और जनता पार्टी का राजनीतिक अभ्युदय हुआ था. मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन चुके थे. इसके कुछ ही महीने बाद हरियाणा में विधानसभा के चुनाव हुए. चंद्रशेखर जनता पार्टी के सांगठनिक कर्ता-धर्ता थे.

जब पहली बार मंत्री बनीं सुषमा स्वराज

तब जनता पार्टी ने अंबाला कैंट सीट से सुषमा स्वराज को टिकट दिया और महज़ 25 साल की उम्र में चुनाव जीतकर वे पहली बार विधायक बन गईं. उनकी पार्टी के 75 विधायक चुनाव जीते. मंत्री पद की लाॉबिंग होने लगी. तब मुख्यमंत्री बने देवीलाल ने अपने मंत्रिमंडल में सिर्फ़ नौ मंत्रियों को शामिल किया. चंद्रशेखर की क़रीबी होने के कारण सुषमा स्वराज को उन नौ लोगों में स्थान मिला और वे हरियाणा सरकार की मंत्री बना दी गईं. वह उनकी पहली बड़ी राजनीतिक उपलब्धि थी.

वे जनता पार्टी की हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष भी रहीं.

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उनकी प्रतिबद्धता के क़ायल थे चंद्रशेखर

महज़ तीन साल बाद जनता पार्टी में बड़ी टूट हुई. भजनलाल ने 40 विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली. तब जनता पार्टी के सिर्फ़ चार विधायकों ने पार्टी नहीं छोड़ी. सुषमा स्वराज उनमें से एक थीं. उनके अलावा स्वामी अग्निवेश (पुंडारी), शंकर लाल (सिरसा) व बलदेव तायल (हिसार) जैसे विधायक जनता पार्टी में बने रहे.

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इसकी चर्चा करते हुए मुझसे कहा था कि ऐसी घटनाओं ने सुषमा स्वराज का राजनीतिक क़द और ऊंचा किया. वह उनकी शुरुआत थी, जो इतनी मज़बूत हुई कि बाद के दिनों में उन्होंने सफलता के कई मुक़ाम हासिल किए. इसके बाद का उनका राजनीतिक करियर सबको मालूम है.

BBC Hindi
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English summary
Sushma Swaraj once considered Chandrasekhar as her political mentor
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