नाबालिग मुस्लिम लड़की को शादी की इजाजत देने के इस HC के फैसले को मिसाल के तौर पर न लें- सुप्रीम कोर्ट
नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी को पर्सनल लॉ के तहत पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा जायज ठहराने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस फैसले को मिसाल के तौर पर इस्तेमाल ना किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा है कि 'पर्सनल लॉ के तहत 15 साल की मुस्लिम लड़की की शादी कानूनी तौर पर वैध' है, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के इस फैसले को दूसरे मामलों में मिसाल के तौर पर नहीं लिया जाएगा। पंजाब और हरियाणा ने जावेद बनाम हरियाणा राज्य बनाम अन्य के मामले में यह फैसला सुनाया था, जिसको लेकर विवाद हो रहा है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करते हुए नोटिस जारी किया है।
NCPCR
ने
दी
है
पंजाब
और
हरियाणा
हाई
कोर्ट
के
फैसले
को
चुनौती
दरअसल
पंजाब
और
हरियाणा
हाई
कोर्ट
की
ओर
से
एक
नाबालिक
मुस्लिम
लड़की
को
शादी
की
अनुमति
देने
के
फैसले
को
नेशनल
कमीशन
फॉर
द
प्रोटेक्शन
ऑफ
चाइल्ड
राइट्स
(NCPCR)
की
ओर
से
सुप्रीम
कोर्ट
में
स्पेशल
लीव
पिटिशन
दायर
करके
चुनौती
दी
गई
है।
इसमें
कहा
गया
है
कि
प्रोटेक्शन
ऑफ
चिल्ड्रेन
फ्रॉम
सेक्सुअल
ऑफेंसेज
ऐक्ट
(POCSO)
के
तहत
यौन
सहमति
देने
के
लिए
18
साल
की
उम्र
निर्धारित
है।
'क्या
एक
अपराध
के
बचाव
में
पर्सनल
लॉ
की
दलील
दे
सकते
हैं?'
लाइव
लॉ
के
मुताबिक
इस
मामले
में
NCPCR
की
ओर
से
पेश
होते
हुए
सॉलिसिटर
जनरल
ऑफ
इंडिया
तुषार
मेहता
ने
POCSO
के
तहत
अपराध
को
पर्सनल
लॉ
के
नाम
पर
बचाने
को
की
कोशिश
पर
गहरी
चिंता
जताई
गई
है।
उन्होंने
कहा,
'लड़कियां
जो
14,15,16
साल
की
हैं,
उनकी
शादी
हो
रही
है।
क्या
पर्सनल
लॉ
के
नाम
पर
बचाया
जा
सकता
है?
क्या
एक
अपराध
के
बचाव
में
आप
रिवाज
या
पर्सनल
लॉ
की
दलील
दे
सकते
हैं?'
'क्या
शादी
मौजूदा
क्रिमिनल
लॉ
और
POCSO
ऐक्ट
के
सामने
वैध
होगी'
केंद्र
सरकार
के
लॉ
ऑफिसर
ने
कहा
कि
'हमारे
सामने
यह
प्रश्न
है
कि
क्या
शादी
मौजूदा
क्रिमिनल
लॉ
और
POCSO
ऐक्ट
के
सामने
वैध
होगी।'
सीजेआई
चंद्रचूड़
इस
मामले
में
नोटिस
जारी
करने
और
अन्य
हाई
कोर्ट
के
इसी
तरह
के
फैसलों
के
खिलाफ
NCPCR
की
ओर
से
दायर
ऐसी
ही
याचिकाओं
को
साथ
टैग
करने
को
राजी
हो
गए।
सॉलिसिटर
जनरल
ने
बेंच
से
अनुरोध
किया
कि
तबतक
के
लिए
फैसले
पर
रोक
लगा
दी
जाए।
'माता-पिता
चाहते
थे
कि
वह
मामा
के
साथ
शादी
कर
ले'
इसपर
चीफ
जस्टिस
चंद्रचूड़
ने
कहा
कि
अगर
फैसले
पर
रोक
लगा
दी
जाती
है
तो
लड़की
को
उसकी
इच्छा
के
बिना
उसके
माता-पिता
के
पास
भेजा
जा
सकता
है।
जबकि,
'जबकि
उसके
माता-पिता
चाहते
थे
कि
वह
अपने
मामा
के
साथ
शादी
कर
ले।'
'क्या
होगा
कि
जैसे
ही
हम
रोक
लगाएंगे,
उसे
अपने
माता-पिता
के
पास
भेज
दिया
जाएगा,
जो
कि
वह
नहीं
चाहती
है।'
फैसले
को
मिसाल
के
तौर
पर
नहीं
लिया
जाएगा-
सुप्रीम
कोर्ट
चीफ
जस्टिस
ने
आगे
कहा
कि
'हम
कानून
के
आधार
पर
फैसला
करने
के
लिए
नोटिस
जारी
करेंगे
और
कहेंगे
कि
फैसले
को
मिसाल
के
तौर
पर
इस्तेमाल
नहीं
किया
जा
सकता
है।'
मेहता
की
ओर
से
यह
इशारा
किए
जाने
पर
कि
कई
अन्य
मामलों
में
हाई
कोर्ट
के
द्वारा
ऐसे
ही
फैसले
दिए
जा
रहे
हैं
तो
बेंच
ने
NCPCR
की
याचिका
में
नोटिस
जारी
करते
हुए
अपने
आदेश
में
कहा
कि
'आगे
के
आदेश
लंबित
रहने
पर
विवादित
फैसले
को
मिसाल
के
तौर
पर
नहीं
लिया
जाएगा।'
इसे भी पढ़ें- 'FIR के लिए 5 महीने क्यों?', SC ने हेट स्पीच मामले में दिल्ली पुलिस से किया सवाल
केरल
हाई
कोर्ट
ने
खींच
दी
है
लकीर
यहां
ये
बताना
जरूरी
है
कि
केरल
हाई
कोर्ट
ने
हाल
ही
में
एक
फैसला
दिया
है
कि
मुस्लिम
पर्सनल
लॉ
POCSO
ऐक्ट
के
दायरे
से
बाहर
नहीं
है
और
अगर
दोनों
पक्षों
में
से
एक
नाबालिग
है
तो
POCSO
के
तहत
अपराध
माना
जाएगा,
चाहे
वह
पर्सनल
लॉ
के
तहत
वैध
क्यों
ना
माना
जाए।
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