Supreme Court Cinema hall को निजी संपत्ति बताते हुए बोला, बाहर का खाना, पेय पदार्थ पर रोक लगा सकते हैं मालिक
सिनेमा देखते समय पेटपूजा करने पर अब जेब और ढीली करनी पड़ेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि देश की सबसे बड़ी अदालत Supreme Court Cinema hall को निजी संपत्ति मानती है। अदालत ने कहा, मालिकों को बाहरी खान-पान पर रोक लगाने का अधिकार है।
सिनेमा हॉल जाकर फिल्मों का मजा लेने वाले दर्शकों के लिए बुरी खबर है। बुरी इसलिए क्योंकि अब आपकी जेब और ढीली होने वाली है। Supreme Court Cinema hall को निजी संपत्ति मानती है। अदालत ने कहा, मालिकों को बाहरी खान-पान पर रोक लगाने का अधिकार है। ऐसे में बाहरी चीजों पर रोक के कारण लोगों को स्नैक्स और कोल्ड ड्रिंक जैसी चीजों के लिए एक्स्ट्रा पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं।
सिनेमा हॉल निजी संपत्ति
मंगलवार को अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिनेमा हॉल निजी संपत्ति है ऐसे में उस परिसर में सिनेमा हॉल के मालिक फिल्म देखने वालों को बाहरी खाना या पेय पदार्थ ले जाने से रोक सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि सिनेमा हॉल का मालिक खाने-पीने की चीजों की बिक्री के लिए नियम और शर्तें तय करने का हकदार है।
शिशुओं के भोजन पर ऐतराज नहीं
अदालत ने खाने-पीने की चीजों को रेगुलेट करने के मुद्दे पर कहा कि हॉल परिसर के अंदर, मालिकों को बाहरी खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध लगाने का पूरा अधिकार है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "एक फिल्म देखने वाले के पास इसका सेवन न करने का विकल्प भी होता है।" पीठ ने स्पष्ट किया कि सिनेमाघरों को माता-पिता द्वारा अपने शिशुओं के लिए लाए जाने वाले भोजन पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
कैसे आपत्ति कर सकते हैं सिनेमा हॉल मालिक
सुनवाई के दौरान, CJI ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, "सिनेमा निजी संपत्ति हैं। मालिक निषेध के अधिकारों पर निर्णय ले सकता है। यदि कोई सिनेमा हॉल के अंदर जलेबी (एक मीठा पकवान) ले जाना चाहता है, तो मालिक को उस पर आपत्ति करने का अधिकार है। मालिक आपत्ति करते समय यह कह सकता है कि जलेबी खाने के बाद वह व्यक्ति कुर्सी से हाथ पोंछ सकता है और बैठने की जगह बेवजह बर्बाद कर सकता है।"
सुप्रीम कोर्ट ने JK हाईकोर्ट का आदेश निरस्त किया
CJI ने आगे कहा, "सभी के लिए स्वच्छ पेयजल मुफ्त में उपलब्ध है और शिशुओं के लिए भोजन की भी अनुमति है, लेकिन परिसर के अंदर हर तरह के भोजन की अनुमति नहीं दी जा सकती है।" अदालत ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के एक निर्देश को रद्द कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने मल्टीप्लेक्स और मूवी थिएटरों को सिनेमा हॉल जाने वाले लोगों को खुद के भोजन और पेय पदार्थों को ले जाने से नहीं रोकने का आदेश दिया था।
सिनेमा हॉल मालिकों को व्यापार का मौलिक अधिकार
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, "उच्च न्यायालय ने इस तरह के आदेश को पारित करने में अपने अधिकार क्षेत्र को पार कर लिया। इस बात पर जोर देने की जरूरत नहीं है कि राज्य के पास नियम बनाने की शक्ति है लेकिन सिनेमा हॉल मालिकों को व्यापार का मौलिक अधिकार है और नियम इसके अनुरूप होने चाहिए।
सिनेमा देखने वालों ने कहा- भोजन पर रोक नहीं लगा सकते
बता दें कि देश की सबसे बड़ी अदालत जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के 2018 के फैसले को चुनौती देने वाले थिएटर मालिकों और मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा दायर अपीलों के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान, उच्च न्यायालय के समक्ष मामले में मूल याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से कहा, "कुछ एकरूपता होनी चाहिए। फिल्म देखने वाले टिकट खरीदते ही सिनेमा के साथ एक अनुबंध में प्रवेश करते हैं। निषेधाज्ञा छपने के अभाव में बाहरी भोजन वर्जित नहीं किया जा सकता।"
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सिनेमा हॉल में प्रवेश पर मालिकों का आरक्षण
हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता केवी विश्वनाथन ने इस दलील का विरोध किया। सिनेमा हॉल मालिकों की ओर से पेश हो रहे एडवोकेट विश्वनाथन ने कहा, सिनेमा हॉल के अहाते सार्वजनिक संपत्ति नहीं हैं और ऐसे हॉल में प्रवेश सिनेमा हॉल मालिकों द्वारा आरक्षित है।