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मराठा आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द, बताया समानता के अधिकार की अवहेलना

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मराठा कोटा 50% से अधिक नहीं हो सकता।

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नई दिल्ली, 5 मई। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मराठा कोटा 50% से अधिक नहीं हो सकता। ऐसा किए जाने पर समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और एस जस्टिस रवींद्र भट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले पर फैसला सुनाया। बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि, 'हमें इंदिरा साहनी के फैसले पर दोबारा विचार करने का कारण नहीं मिला।'

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Supreme Court

बता दें कि कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 15 मार्च को शुरू की थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 फीसदी आरक्षण उचित नहीं है और रोजगार में आरक्षण 12 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए और नामांकन में यह 13 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। वहीं, हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब किसी भी व्यक्ति को मराठा आरक्षण के आधार पर कोई नौकरी या कॉलेज सीट नहीं दी जा सकेगी।

यह भी पढ़ें: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था की बहाली के लिए सशस्त्र बलों की तैनाती की मांग की

सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित नहीं किया जा सकता है और सरकार का यह फैसला 2018 महाराष्ट्र राज्य कानून समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार के इस फैसले से पीजी मेडिकल पाठ्यक्रम में पहले से दिए गए दाखिले बने रहेंगे और किसी को फैसले के आधार पर मिली नौकरी भी बरकार रहेगी।कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता। आरक्षण केवल पिछड़े वर्ग के लिए है और मराठा पिछड़े नहीं हैं।

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English summary
Supreme Court Canceled decision to give more than 50% reservation to Marathas
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