नोटबंदी, NRC को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब तेज होगी सुनवाई, SC ने उठाया बड़ा कदम
नई दिल्ली, 25 अगस्त। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों से जुड़े मामलों, नोटबंदी को चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई को तेज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 25 ऐसे केस पर सुनवाई का फैसला लिया है, इसके लिए पांच जजों की संवैधानिक बेंच का गठन किया गया है जोकि अगले हफ्ते से इन मामलों की सुनवाई करेगी। जस्टिस यूयू ललित 29 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की कमान संभालेंगे। बता दें कि मौजूदा सीजेआई एनवी रमन 26 अगस्त को रिटायर हो रहे हैं।
प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया है जिसमे कहा गया है कि इस बात का संज्ञान लिया जाए कि पांच जजों की बेंच 29 अगस्त 2022 से लिस्टेड मामलों की सुनवाई करेगी, जिसमे केसों को एकजुट करके सुना जाएगा। इसके बाद इन केस को कोर्ट के निर्देश के अनुसार लिस्ट किया जाएगा, जिसके बाद इसकी सुनवाई होगी। जस्टिस ललित ने कहा था कि अहम केस को लिस्ट करना हमारी प्राथमिकता है। इन मामलों की देरी पर उन्होंने कहा कि हम उन मामलों का समाधान ढूंढ़ने की कोशिश करेंगे जो अहम हैं और लंबित हैं। इनके लिए संवैधानिक बेंच पूरे साल बैठेगी।
पूरे साल सुनवाई करेगी पांच जजों की बेंच
पांच जजों की संवैधानिक बेंच अब पूरे साल मामलों की सुनवाई करेगी। दरअसल अहम केस की या तो सुनवाई नहीं होती या फिर उन्हें लिस्ट नहीं किया जाता है, जिसकी वजह से वह लंबित रहते हैं। इसमे असम का नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजेंस से जुड़ा मामला है, सीबीआई को चुनौती देने वाले केस, नोटबंदी को चुनौती देने वाले मामले, ये सभी 2016 से लंबित हैं।
धार्मिक मामलों पर भी सुनवाई लंबित
इसके अलावा धर्म से जुड़े मामले भी लंबित हैं जिसपर सुनवाई लंबे समय से नहीं हुई है। इसमे सिखों से जुड़ा मामला है, क्या सिख पंजाब में अल्पसंख्यक हैं, यह मामला 2010 से लंबित है। निकाह, हलाला और बहुविवाह को 2018 में चुनौती दी गई थी। 2006 से आंध्र प्रदेश में मुस्लिमों को अल्पसंख्यक माने जाने का केस लंबित है। इन सभी मामलों की सुनवाई यह संवैधानिक बेंच कर सकती है।
बड़ी बेंच के मामले
1 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो यह बात सामने आती है कि कुल 342 पांच जजों की बेंच के केस हैं, 15 सात जजों की बेंच के केस हैं, जबकि 1359 जजों की बेंच के केस हैं, जोकि सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। बहरहाल देखने वाली बात यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कई सालों से लंबित चले आ रहे केस की सुनवाई में तेजी आती है?