बदलते मौसम की मार, जल्द ही देश से विलुप्त हो जाएगा ये फल

नई दिल्ली। दक्षिण भारत में खास पसंद किया जाने वाला फल कोकम आने वाले कुछ सालों में विलुप्ति की कगार पर पहुंच सकता है। टोक्यो यूनीवर्सिटी, जेएनयू और जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इंवार्मेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के एक अध्ययन में ये खुलासा किया गया है। ये अध्ययन दक्षिण महाराष्ट्र, गोआ और कर्नाटक के 1,71,223 वर्ग किलोमीटर में फैले समुद्री तट पर की गई है।

खाने में खूब होता है कोकम का इस्तेमाल
कोकम, जिसका साइंटिफिक नाम गारसीनिया इंडिका है, मैंगोस्टीन फल के परिवार का हिस्सा है। साउथ-इस्ट एशिया में मैंगोस्टीन को काफी पसंद किया जाता है। भारत में कोकम खासतौर पर शरबत और करी बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। ये स्वाद में खट्टा होता है। आयुर्वेद में कोकम का उपयोग खराब गला ठीक करने, संक्रमण रोकने, पाचन को सुधारने, दस्त और कब्ज को कम करने और पेट के अल्सर को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है।

विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुका है ये फल
अध्ययन में कहा गया है कि इस क्षेत्र की 82.6 प्रतिशत भूमि कोकम की खेती के लिए अनुपयुक्त हो जाएगी। बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने पहले ही इस पेड़ को लुप्त होती प्रजातियों में रखा है। जेएनयू के पीएचडी विद्वान और प्रमुख लेखक, मलय कुमार प्रमानिक ने कोकम की विलुप्ति पर कहा, 'हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन एक बड़ा खतरा बन गया है। इस पेपर के माध्यम से, हम इस पौधे की प्रजातियों के अस्तित्व के लिए संभावित परिदृश्यों की भविष्यवाणी करने में सक्षम थे, और परिणामस्वरूप उनके वितरण में भारी कमी दिखाई दी है।'

विलुप्त हुआ तो राजस्व पर पड़ेगा सीधा असर
महाराष्ट्र के अधिकारियों ने कहा कि ये अध्ययन काफी उपयोगी है। राज्य पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, सतिश गवई ने कहा कि ये फल कोंकण के समुद्री तट के लिए खासतौर पर महत्वपूर्ण है। इससे अच्छी कमाई होती है और अगर ये विलुप्त हुई तो इसका सीधा असर राजस्व पर पड़ेगा। अगर कोकम के पेड़ों को बचाने की कोशिश नहीं की गई, तो जल्द ही ये आपके खाने से गायब हो जाएगा।
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