राज्यसभा में वेल में घुसने वाले सांसदों पर सख्ती की तलवार, छिन सकता है ये अधिकार
नई दिल्ली- पिछले कुछ वर्षों से राज्यसभा सियासत का सबसे बड़ा अखाड़ा बनता दिखा है। लोकसभा में तो सदन की कार्यवाही आसानी से चलती रहती है, लेकिन राज्यसभा में आए दिन किसी न के किसी विषय पर जबर्दस्त बवाल मच जाता है। राज्यसभा के सभापति के पास सदन के नियमों का उल्लंघन करने वालों सांसदों पर कार्रवाई करने के उस तरह के अधिकारों की भी कमी है, जो लोकसभा के स्पीकर के पास मौजूद है। दूसरी बात की सदन के संचालन के नियम भी काफी पुराने पड़ गए हैं, जिसमें समय के साथ बदलाव नहीं हो पाया है। इसी पर सुझाव देने के लिए दो एक्सपर्ट का एक पैनल बनाया गया था, जिसने 50 से ज्यादा बैठकों के बाद सदन के संचालन से संबंधित नियमों में कुछ बदलाव और कुछ नियमों को जोड़ने की सिफारिश की है। उन्हीं सुझावों में से एक सुझाव ये भी है कि जो सांसद हंगामा करते हुए और आसन के निर्देशों को नजरअंदाज करते हुए वेल में घुस आते हैं, उन्हें सदन में वोटिंग के अधिकार से कुछ समय के लिए वंचित कर दिया जाए।
वेल में घुसकर बवाल करने वाले सांसदो पर होगी सख्ती ?
राज्यसभा की कार्यवाही में आए दिन पड़ने वाली बाधाओं से निपटने के लिए सदन के नियमों की समीक्षा के लिए बने एक पैनल ने जो सुझाव दिए हैं, अगर उसे मंजूर किया जाता है तो बवाल काटते हुए वेल तक पहुंच जाने वाले सांसदों और उनकी पार्टियों के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। सदन के नियमों में बदलाव के सुझाव देने के लिए बने पैनल ने ऐसे लॉमेकर्स के सदन में वोटिंग अधिकार छीनने की सलाह दी है। ये रिपोर्ट पैनल के दोनों सदस्यों राज्यसभा के पूर्व महासचिव वीके अग्निहोत्री और कानून मंत्रालय के पूर्व अतिरिक्त सचिव दिनेश भारद्वाज ने तैयार किए हैं, जिसे मंगलवार को उच्च सदन के जनरल पर्पज कमिटी को सौंपी गई है। सदन की कार्यवाही के सुचारू तौर पर संचालन के लंबे वक्त से लंबित पड़े सुधारों के संबंध में यह पहली रिपोर्ट है। इस से सदन के रूल बुक में संशोधन का रास्ता खुलने की उम्मीद है, जिससे सदन की कार्यवाही ज्यादा बेहतर ढंग से चलाई जा सकती है और उसकी उत्पादकता भी बढ़ सकती है।
नियमों में विसंगति दूर करने की पहल
बता दें कि राज्यसभा में सांसदों के हंगामें और उनके वेल में पहुंचने की अक्सर होने वाली घटनाएं सदन की उत्पादकता के लिए गंभीर चिंता की वजह बन चुकी हैं और इसे रोकने के लिए की जाने वाली बैठकों और कई प्रस्तावों से भी ऐसे सांसदों के आचरण पर कोई असर नहीं पड़ा है। जबकि, लोकसभा में कई बार ऐसे सांसदों को निलंबित भी किया गया है, क्योंकि वहां आसन को सदन की कार्यवाही को बाधित करने वाले सांसदों को निलंबित करने का अधिकार है। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने दोनों सदनों के बीच मौजूद इसी विसंगति को महसूस करने के बाद मई 2018 में नियमों के रिव्यू के लिए दो सदस्यीय पैनल का गठन किया था। मूल बात यही थी कि लोकसभा स्पीकर की तरह बाधा उत्पन्न करने वाले सांसदों को स्वत: निलंबित करने का अधिकार राज्यसभा के सभापति को क्यों नहीं है।
सबकी सहमति के बाद ही होगा अंतिम फैसला
वैसे अग्निहोत्री-भारद्वाज पैनल की ओर से वेल में बवाल करने वाले सांसदों पर लगाम लगाने के लिए जो फॉर्मूला सुझाया गया है, उसे लागू करने पर राज्यसभा में इसके व्यापक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। क्योंकि, विधेयकों पर कोई भी फैसला मुख्यतौर पर वोटिंग के जरिए ही लिया जाता है। मतलब कि 245 सदस्यों वाले सदन में हर एक वोट सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए मायने रखता है। हालांकि, इन सुझावों पर विपक्ष फिलहाल चुप ही रहना पसंद कर रहा है। विपक्ष के एक नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि, 'हम तब कोई फैसला लेंगे जब नियमों में संभावित बदलावों को लेकर कोई गंभीर चर्चा शुरू होगी।'
नियमों में व्यापक बदलाव के सुझाव
बता दें कि हाल के वर्षों में लोकसभा की तुलना में किसी भी विषय पर राज्यसभा में ज्यादा गतिरोध देखने को मिलता है, जहां निचले सदन की तुलना में विपक्ष ज्यादा मजबूत है। कई मौकों पर सभापति ने सदन की कार्रवाई सुचारू रूप से चलाने और उत्पादकता बनाए रखने की भरपूर कोशिश की है, लेकिन नागरिकता संशोधन कानून जैसे मसलों पर उनकी अपील का भी कोई असर विपक्ष पर नहीं दिखा। दो सदस्यीय पैनल ने 51 बैठकों के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार की है। इसने मौजूदा नियमों में 77 संशोधनों और 124 नए नियमों को विचार के लिए सामने रखा है। नायडू के मुताबिक ये सारे महज सुझाव हैं, जिसपर आगे बातचीत की जाएगी। बुधवार को उन्होंने जनरल पर्पज कमिटी की बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें 23 दलों के नेता शामिल हुए।
पैनल के सुझावों पर असहमति भी
इस बीच संसदीय मामलों के मंत्रालय के पूर्व सचिव अफजल अमानुल्लाह के मुताबिक वेल में घुसने वाले सांसदों को वोटिंग अधिकारों से वंचित करना न सिर्फ अव्यवहारिक है, बल्कि यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ भी है। उधर कुछ विपक्षी दल जनरल पर्पज कमिटी की संरचना पर भी सवाल उठा रहा है। इनकी दलील है कि 3 सांसदों वाली आम आदमी पार्टी और 4 सांसदों वाली एनसीपी उसमें शामिल नहीं है, जबकि वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के दोनों सांसदों को उसमें जगह दी गई है। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने कई विधेयकों में सत्ताधारी भाजपा का समर्थन किया है।