साइकिल की हवा निकलते ही हाथी हुआ फुर्र, अब आगे क्या होगा?
नई दिल्ली। साइकिल और हाथी जब करीब 24 साल बाद राजनीति में हमसफर बने तभी तय हो गया था कि यह मतलब और मौके का साथ है। अगर नतीजे मन माफिक नहीं हुए तो हाथी भड़क जायेगा और साइकिल अपना वजूद बचाने के लिए सुरक्षित दूरी बनाते हुए दूसरी राह पकड़ लेगी । 23 मई को नतीजे आते ही मायावती प्रेस से मुखातिब हुई और बीजेपी को जीत की बधाई देने के बजाय नतीजों पर निराशा व्यक्त करते हुए हार के लिए ईवीएम को जिम्मेदार बताया। हालांकि तब मायावती ने साथ देने के लिए अखिलेश यादव का आभार जताया था। लेकिन तभी साफ़ हो गया था कि मायावती खिन्न हैं और यह खिन्नता कुछ नया गुल जरूर खिलाएगी। 3 जून को मायावती ने दिल्ली में बसपा पदाधिकारियों के साथ दिन भर बैठक की और उसके बाद ही साफ़ हो गया की अब सपा -बसपा का साथ छूट गया है। बसपा से 3 जून को ही स्पष्ट कर दिया था कि उत्तर प्रदेश में छह माह के भीतर होने वाले उपचुनावों में सभी सीटों पर बसपा अकेले चुनाव लड़ेगी। गेस्ट हाउस कांड के ठीक 24 वर्ष 2 दिन बाद 4 जून को मायावती फिर प्रेस के सामने आईं और प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने की दो टूक बात कही। आपसी गठबंधन को फिलहाल 'होल्ड' पर रखने के बसपा प्रमुख मायावती के एलान के बाद सही मायने में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव बोल्ड हो गये हैं। अब उनके पास नई राजनीतिक पिच पर खेलने के आलावा कोई विकल्प नहीं है।
बसपा जीरो से दस हो गई और सपा पांच की पांच
मायावती ने ऐसा करने की वजह सपा के वोट बसपा के प्रत्याशियों के पक्ष में ट्रान्सफर न होना बताया। मायावती इतने पर ही नहीं रुकीं बल्कि डिम्पल यादव और अक्षय यादव की हार की वजह भी यादव मतदाताओं का वोट न मिलना बताया। हालांकि, उन्होंने गठबंधन तोड़ने की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की है लेकिन गठबंधन जारी रखने के लिए शर्तें जोड़ दी हैं। यानी आगे के चुनाओं में समाजवादी पार्टी बसपा के साथ सहयोग करे और अगर नतीजे बसपा के अनुकूल रहे तो भविष्य में मायावती फिर बसपा के साथ आने की सोच सकती हैं। मायावती ने यह भी कहा कि भविष्य में अखिलेश परिवार के साथ मधुर पारिवारिक सम्बन्ध जारी रहेंगे। मायावती जीरो से दस हो गई हैं और सपा पांच की पांच रह गई उसमें भी तीन घर से घट गये। अब मायावती यह बताने की कोशिश में हैं कि बसपा के कैडर यानी एससी - एसटी के वोट से उनकी पार्टी को दस सीटें मिलीं जबकि सपा के यादव वोट अखिलेश की पार्टी को पूरी तरह से नहीं मिले जिसके चलते उनकी पार्टी की सीटें नहीं बढ़ सकीं। मतलब मायावती गठबंधन की हार के लिए सिर्फ सपा जिम्मेदार। साफ़ है कि मायावती अपने लोगों को संदेश देना चाहती हैं कि हार की वजह उनके वोटर नहीं बल्कि सपा के वोटर हैं।
मायावती परस्पर विरोधी बातें करने में माहिर
इस कहते राजनीतिक जलेबी बनाना। अब मायावती के पास कौन सा स्रोत है जिससे उन्होंने पता लगा कि ओबीसी खासकर यादव वोटर सपा और बसपा दोनों से छिटक गये। जबकि आंकड़े बता रहे कि एससी-एसटी और ओबीसी मतदाताओं के वोट बीजेपी को इस बार मिले हैं। मायावती परस्पर विरोधी बातें करने में माहिर हैं। एक तरफ वो कह रहीं कि ईवीएम में गड़बड़ी के कारण गठबंधन की हार हुई दूसरी तरफ मायावती ने कहा कि लोकसभा चुनाव में सपा का वोट बसपा में ट्रांसफर नहीं हुआ। यही कारण है कि यादव परिवार के डिंपल, धर्मेंद्र व अक्षय भी चुनाव हार गए। उन्होंने कहा कि बसपा एक मिशनरी, अनुशासित व कैडर आधारित पार्टी है जबकि सपा में अभी काफी सुधार की जरूरत है। मायावती ने कहा कि अखिलेश अपने कार्यकर्ताओं को मिशनरी बनाएं। मायावती ने बता दिया कि बसपा कहना चाहती हैं कि उनका कैडर उनकी बात मानता लेकिन सपा कार्यकर्ता बेकाबू और अराजक हैं। अखिलेश अगर अपने कार्यकर्ताओं को साध लेते हैं तो ही बात बनेगी। अब मायावती के पास इसका क्या उत्तर या प्रमाण है कि बसपा कैडर का वोट सपा प्रत्याशियों को पूरा का पूरा मिला। दरअसल मायावती अभी भी दो दशक पुराने राजनीतिक फार्मूले पर ही चल रहीं हैं। जिसमे हार जीत का आकलन दलित, ओबीसी और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या के जोड़-घटाने पर आधारित होता है। मायावती को समझना होगा की अब बड़ी संख्या ऐसे मतदाताओं की है जिनकी गाड़ी गणित के फार्मूले से नहीं बल्कि केमिस्ट्री से चलती है। बीजेपी इस बदलाव को समझ गई है और इसे ध्यान में रख कर रणनीति बनाती है।
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राजनीतिक रिश्ते ख़त्म
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मायावती के फैसले पर फिलहाल सधी प्रतिक्रिया दी है। आजमगढ़ से सांसद अखिलेश यादव ने कहा कि 2022 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी। साथ ही उन्होंने यूपी में होने वाले उपचुनावों में भी अकेले लड़ने के लिए कहा है। अखिलेश यादव ने भी अभी गठबंधन को लेकर कोई दो टूक बयान नहीं दिया है लेकिन जमीन पर रहकर पार्टी को मजबूत बनाने की बात कही है। सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो.रामगोपाल यादव ने भी कहा है कि अगर बसपा अकेले उपचुनाव लड़ेगी तो सपा भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेगी। हो सकता है कि कुछ दिन तक गठबंधन तोड़ने का कोई ऐलान न हो लेकिन मायावती ने अपनी मंशा साफ़ कर दी है। अखिलेश को भी समझ आ गया है कि गठबन्धन करते समय पार्टी के अनुभवी नेता क्यों इसका विरोध कर रहे थे। अखिलेश भी अब समझ गये कि दोनों पार्टियों के कैडर के बेस में फर्क है और इनके वोट एक-दूसरे को ट्रान्सफर नहीं होंगे। ऐसे में कांशीराम- मुलायम की दोस्ती के दौर के बाद मायावती-अखिलेश दोस्ती का दौर भी ख़त्म हुआ मान लेना चाहिए। यानी राजनीतिक रिश्ते ख़त्म। अब देखना है मायावती पारिवारिक रिश्ता कब तक निभातीं हैं । क्योंकि हार का ठीकरा सपा की खोपड़ी पर तोड़ने के बाद भी मायावती ने कहा है कि अखिलेश यादव व डिंपल यादव ने मुझे बहुत सम्मान दिया और मैंने भी देश व समाज हित में पुराने मतभेद भूलकर उनका आदर किया। हमारे रिश्ते राजनीतिक नहीं हैं और हमेशा बने रहेंगे।
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