आरएसएस की महिला शाखा ने मेट्रो शहरों में लगाया विस्तार पर जोर, 5 प्वाइंट में समझिए मतलब
आरएसएस की महिला शाखा राष्ट्रीय सेविका समिति ने कामकाजी महिलाओं और पढ़ी-लिखी युवतियों को अपने साथ जोड़ने की पहल तेज कर दी है। अब यह संगठन जेएनयू तक पहुंच चुका है, जहां शाखाएं लग रही हैं।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की एक महिला शाखा भी है, जिसका गठन संघ की स्थापना के 11 साल बाद ही हो गया था। राष्ट्रीय सेविका समिति नाम के इस संगठन ने अब बड़े शहरों की कामकाजी और स्कूल-कॉलेजों में पढ़ने वाली छात्राओं के बीच अपना विस्तार शुरू किया है। यह संगठन महिलाओं से जुड़ी हर समस्याओं पर गौर कर रहा है और महिलाओं से उसी हिसाब से चर्चा भी कर रहा है। अब इसकी शाखाएं दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी लगनी शुरू हो गई हैं और इसमें बड़ी संख्या में यूनिवर्सिटी की युवतियों ने भाग भी लेना शुरू कर दिया है। हाल के दिनों में मेट्रो शहरों में महिलाओं के खिलाफ जिस तरह की कुछ बर्बर घटनाएं हुई हैं और जिस तरह से चुनावी राजनीति में महिलाओं का प्रभाव बढ़ा है, उससे राष्ट्रीय सेविका समिति की सक्रियता के मायने अहम हो गए हैं।
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मेट्रो शहरों में आरएसएस की महिला शाखा के विस्तार पर जोर
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की महिला शाखा राष्ट्रीय सेविका समिति ने शहरी महिलाओं, प्रोफेशनलों या होम मेकरों को अपने संगठन के साथ जोड़ने के लिए खास पहल शुरू की है। राष्ट्रीय सेविका समिति (RSS)संघ का ऐसा संगठन है, जो महिलाओं द्वारा और महिलाओं के लिए ही चलाया जाता है। द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय सेविका समिति की मौजूदा प्रमुख वेंकटरमैया शांता कुमारी ने कहा है कि उनके संगठन ने डॉक्टरों, टीचरों, इंजीनियरों, चार्टर्ड अकाउंटेंट और एमएनसी में काम करने वाली महिलाओं को साथ लेने की चुनौती स्वीकार की है। संघ की इस संस्था का गठन 1936 में लक्ष्मीबाई केल्कर ने किया था। राष्ट्रीय सेवा समिति की शाखाओं में शारीरिक प्रशिक्षणों और खेलों के अलावा 'प्रबुद्ध' वर्ग की बैठकें आयोजित की जा रही है, जिसमें आज की दौर की महिलाएं जिन चुनौतियों का सामना करती हैं, उसपर चर्चाएं होती हैं। यह उनके घरों से लेकर उनकी जॉब से संबंधित समस्याओं पर भी हो सकती है। संघ ने बड़े शहरों की महिलाओं को शाखा में लाने की जो कोशिश शुरू की है, उसका दूरगामी लक्ष्य हो सकता है, जिसे 5 प्वाइंट में समझा जा सकता है।
चुनावी राजनीति में बढ़ रही है महिलाओं की अहमियत
पिछले कुछ वर्षों से देखने को मिल रहा है कि देश के कुछ राज्यों महिला वोटरों ने सरकारों के गठन में बड़ी भूमिका निभाई है। महिलाएं अपने घरों के पुरुष सदस्यों के कहने पर ही मतदान करेंगी, यह वाली परंपरा देश में जागरूकता बढ़ने के साथ धीरे-धीरे खत्म हो रही है। ओडिशा में नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, बिहार में नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) और पूरे देश में बीजेपी ने महिलाओं का बड़ा समर्थन पाकर आधी आबादी में अपनी पकड़ मजबूत की है। ऐसे में किसी खास विचारधारा का महिला वर्ग से जुड़ने का महत्त्व बढ़ जाता है।
महिलाओं के खिलाफ हुई हालिया घटनाओं से भी बढ़ा महत्त्व
संघ ने इस बात को समझा है कि महिलाओं की चिंताओं को समझने के लिए उसकी महिला शाखा की अहमियत आज की तारीख में बहुत बढ़ गई है। खासकर मेट्रो शहरों में पति-पत्नी दोनों के काम पर जाने की वजह से कई विशेष तरह की परिस्थितियां देखने को मिलती हैं। यह उनके मातृत्व से जुड़ी जिम्मेदारियां हो सकती हैं, घर और काम में तालमेल बिठाना हो सकता है। आजकल लिव-इन-रिलेशनशिप भी एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। दिल्ली की एक महिला शाखा में योगा और खेल-कूद के बाद यह सब चर्चा के विषय थे। वहां 10 साल से लेकर 60 साल की महिलाएं जुटी थीं। सेविका समिति के स्वयंसेवकिओं ने इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की कि लिव-इन-रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चे को पिता की पैतृक संपत्ति में कोई कानूनी हक नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि 'बाकी फैसला आपको करना है।' एक और स्वयंसेविका का कहना था कि 'अपने माता-पिता के खिलाफ जाना कई बार आपको परेशानी में डाल सकता है। श्रद्धा केस को देखिए।'
इस तरह के आयोजनों से संघ को पहले मिल चुकी है सफलता
राष्ट्रीय सेविका समिति की एक प्रचारिका ने नाम नहीं जाहिर होने देने की इच्छा जाहिर कर कहा कि 'हमारा ध्येय राष्ट्र निर्माण है। यह दबाव डालकर कभी नहीं होगा। हम सिर्फ उन विषयों पर चर्चा करते हैं, बाकी वह खुद ही उसपर फैसला ले सकती हैं।....' उन्होंने कहा, 'हम वैज्ञानिक कारण बताते हैं कि बच्चा होना क्यों महत्वपूर्ण है। बाकी, उन्हें निर्णय करना है। कुछ हमसे सहमत हो सकती हैं, कुछ नहीं। सबका स्वागत है।' आरएसएस की यह पहल सफल हो रही है। अकेले दिल्ली में हर उम्र की 3,500 महिलाएं शाखाओं में नियमित शामिल हो रही हैं। हजारों महिलाएं, जिनमें से ज्यादातर वर्किंग हैं, वह विशेष सत्रों, सेमिनारों, वर्कशॉप और अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा ले रही हैं। कुल मिलाकर मेट्रो में आयोजित हो रही महिला शाखा कुछ उसी तरह से है जो इस सदी की शुरुआत में आईटी फिल्ड के लोगों को ध्यान में रखकर संघ ने आयोजित करना शुरू किया था। इसे ऑफिस जाने वालों के समय के हिसाब से रखा जाता था।
नारी शक्ति, भारतीय संस्कृति जैसे विचारों पर जोर
संघ की महिला शाखा नारी शक्ति को सशक्त बनाने के इरादे से संघर्ष में जुटी है, जो कि भारतीय जनता पार्टी की भी राजनीतिक लाइन रही है। पूरे देश में समिति की ऐसी 2,700 शाखाएं चलती हैं। राष्ट्रीय सेविका समिति में लगभग 6,000 प्रचारिकाएं, सेविकाएं और विस्तारिकाएं हैं। सुश्री शांताकुमारी का कहना है कि सेविका समितियों की प्रचारिकाएं महिलाओं की बहनों और माओं की तरह मदद करती हैं और उन्हें परिवार और मातृत्व का महत्त्व समझाती हैं। उनके मुताबिक, 'हमारी स्वयंसेविकाएं उनके ऑफिस के कार्यों में और यहां तक कि उनके बच्चों को रखने में भी सहायता करती हैं। हम जानते हैं कि मेट्रो में महिलाएं जॉब नहीं छोड़ सकतीं, क्योंकि परिवार चलाने के लिए पुरुष और महिला दोनों सदस्यों को कमाना होता है। करुणा के साथ-साथ सहानुभूति से हम उन्हें समझाते हैं कि अपनी संस्कृति को महत्त्व देना और अपनी जड़ों से जुड़े रहना जरूरी है।'
जेएनयू तक में भी दिख रहा है बदलाव
रविवार को दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेविका समिति की ओर से मणिकर्णिका, रन फॉर यूनिटी का आयोजन किया गया, जहां बड़ी संख्या में युवतियों ने भाग लिया। उन्हें रानी लक्ष्मी बाई के अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया गया। जेएनयू में इस तरह के आयोजन का संघ और उसकी महिला शाखा ने काफी प्रचार भी किया है। संघ के एक संगठन प्रज्ञाप्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंदकुार ने इसी कार्यक्रम का एक वीडियो ट्वीट करके लिखा, 'जेएनयू बदल रहा है........जेएनयू की नई दौर की झांसी की रानियों को शुभकामनाएं....'। ऐसा माना जा रहा है कि वामपंथी विचारधारा के नारीवाद और संघ की नारी शक्ति के बीच एक स्पष्ट रेखा खींची जा रही है।