ढाई साल में आरबीआई ने बैंको पर लगाया 73 करोड़ का जुर्माना
इस साल 5 अगस्त को रिजर्व बैंक ने एक बैंक पर 32 लाख रुपये का जुर्माना लगाया, लेकिन कोई विस्तृत वजह नहीं दी. पढ़ें आज के अख़ाबर की सुर्खियां
अंग्रेजी अख़बार इंडिडन एक्सप्रेस में छपी एक खास रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय रिज़र्व बैंक, अन्य बैंकों पर जुर्माना तो लगाता है लेकिन इसके बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध नहीं करवाता.
रिपोर्ट कहती है, इस साल 5 अगस्त को रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक पर कुछ नियमों का पालन न करने पर 32 लाख रुपये का जुर्माना लगाया.
लेकिन रिज़र्व बैंक ने इस बात की विस्तार से जानकारी नहीं दी है कि बैंक ने किस तरह नियमों का उल्लंघन किया.
अख़बार लिखता है कि जनवरी 2020 से केंद्रीय बैंक ने सार्वजनिक, निजी और विदेशी बैंकों से जुड़े 48 मामलों में 73.06 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है, जिसमें बेहद कम या बिना कोई जानकारी दिए प्रावधानों के उल्लंघन या कुछ निर्देशों के उल्लंघन को कारण बताया गया है.
आरबीआई के बिना विवरण दिए जुर्माना लगाने के क़दम की कई हलकों में आलोचना हुई है, कुछ पर्यवेक्षकों ने केंद्रीय बैंक के फैसलों को चुनौती देने के लिए सिक्योरिटीज़ अपेलेट ट्राइब्यूनल (सैट) जैसी अपीलीय अदालत के गठन की भी मांग की है.
जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाले वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी) ने पहले ही आरबीआई सहित सभी वित्तीय नियामकों के लिए एक सिक्योरिटीज़ एपेलेट ट्राइब्यूनल बनाने की सिफ़ारिश की थी.
लगभग इन सभी आदेशों में, आरबीआई ने कहा कि बैंक के खिलाफ 'आरबीआई की ओर से जारी निर्देशों के कुछ प्रावधानों का पालन न करने' के लिए कार्रवाई की गई.
इसकी तुलना में, दो अन्य नियामकों – सेबी, बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने जो पेनाल्टी आदेश जारी किए उसमें ना सिर्फ नियमों के उल्लंघन की विस्तृत जानकारी दी गई बल्कि उनकी कार्यप्रणाली के विवरण भी दिए गए.
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सितंबर में आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने नीतियों को लेकर मीडिया से बात करते हुए कहा था, “हम विनियमित संस्था को अपने विस्तृत आदेश की जानकारी देते है."
"हालाँकि, हम प्रेस रिलीज़ में उस आदेश की महत्वपूर्ण बातों का ही उल्लेख करते हैं, जो सार्वजनिक डोमेन में सभी के लिए उपलब्ध है, लेकिन तर्कसंगत विवरण के साथ आदेश विनियमित संस्थाओं को बताए जाते हैं. जिनमें उनका जवाब भी शामिल होता है. हमारे उस आदेश में विनियमित संस्था के जवाब का विस्तृत विश्लेषण, समझौतों के बिंदु और असहमति के बिंदु शामिल होते हैं. ”
वित्त और आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने अख़बार से कहा, “आरबीआई एक पुरानी नियामक संस्था है. इसने पिछले 80-85 सालों के अस्तित्व में उसने कुछ तरीके गढ लिए हैं. वे न केवल आदेशों में कोई कारण और विस्तृत स्पष्टीकरण नहीं देते हैं, बल्कि कई बार पार्टी को भी नहीं सुनते हैं. "
वहीं दूसरी ओर सेबी जो आरबीआई के कई सालों बाद अस्तित्व में आई वहां लंबे विस्तृत कारण, विश्लेषण के साथ सभी पहलूओं पर जानकारी देते हुए आदेश दिए जाते हैं.
आरबीआई के बोर्ड के सदस्य रह चुके गर्ग कहते हैं कि ज्यादातर मामलों में, सेबी कार्रवाई करने से पहले संबंधित पक्ष को सुनता है या कम से कम उन्हें स्पष्टीकरण देने का कुछ मौका देता है. संतुष्ट नहीं होने पर पार्टी सेबी के फैसले को सैट में भी चुनौती दे सकती हैं.
उनका मानना है कि इस तरह की व्यवस्था आरबीआई के आदेश को चुनौती देने के लिए भी होनी चाहिए.
महिलाओं को सेना में प्रमोशन देने पर भेदभाव क्यों- सुप्रीम कोर्ट
अंग्रेज़ी दैनिक अख़बार द टाइम्स ऑफ़ इँडिया के मुख्य पन्ने पर छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पुरुष अधिकारियों को कर्नल रैंक पर प्रमोशन करने के लिए चयन बोर्ड आयोजित करने और महिला लेफ्टिनेंट कर्नल के लिए इस व्यवस्था पर रोक लगाने के लिए सेना के अधिकारियों पर नाराज़गी जताई है.
कोर्ट ने केंद्र को दो सप्ताह का वक्त देते हुए पूछा है कि महिला अधिकारियों के लिए प्रमोशन के रास्ते खोलने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं वो बताए जाए.
वरिष्ठ अधिवक्ता वी मोहना के माध्यम से सेना की कम से कम 34 महिला अधिकारियों ने आरोप लगाया कि उनसे जूनियर पुरुष अधिकारी सेना में मौजूद घोर भेदभाव के कारण उनसे रैंक में आगे बढ़ गए. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद महिलाओं के लिए स्थायी कमीशन नहीं दिए गए.
वी मोहना ने चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के साल 2020 और 2021 में दिए गए उस फ़ैसले को कोर्ट के सामने फिर रखा जिसमें कहा गया कि महिलाओं के लिए स्थाई कमीशन बनाया जाए.
इस आदेश में कहा गया था, “सेना में महिला अधिकारियों को ग़लत तरीके से पढ़ाई के लिए छुट्टी और डेप्यूटेशन से वंचित रखा जाता है..उन्हें अभी भी व्यवस्थित, अप्रत्यक्ष और लैंगिक भेदभाव का शिकार बनाया जा रहा है. ”
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इंटरनेशनल यात्रियों को अब नहीं दिखानी होगी कोविड रिपोर्ट
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत आने वाले अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को अब कोविड-19 से जुड़ी स्क्रीनिंग के लिए सेल्फ़ डिक्लेयरेशन फॉर्म यानी एयर सुविधा फॉर्म भरने की ज़रूरत नहीं होगी. न ही यात्रियों को एक कोविड-19 की नेगेटिव RT-PCR रिपोर्ट दिखानी होगी.
सोमवार को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के आगमन के लिए संशोधित दिशानिर्देशों जारी किए और कहा कि ये नए नियम 22 नवंबर से लागू हो रहे हैं.
दिशा-निर्देशों के अनुसार, "सभी यात्रियों को अपने देश में कोविड-19 के टीकाकरण का सर्टिफिकेट होना चाहिए. आने वाले यात्रियों को पूरी तरह से टीका लगाया गया हो ये ज़रूरी है. "
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