अवमानना मामले में प्रशांत भूषण ने दाखिल किया जवाब, सिर्फ इस एक बात के लिए मांगी माफी
नई दिल्ली। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ अपने एक ट्वीट को लेकर अवमानना के मामले का सामना कर रहे सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने नोटिस का जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपना एफिडेविट दाखिल किया है। अपने खिलाफ क्रिमिनल कंटेम्प्ट के इस केस में भूषण ने 134 पन्नों का जवाब दाखिल किया है। इसमें उन्होंने एक बार माफी मांगी है। ये माफी उन्होंने सीजेआई के हेलमेट ना लगाने को लेकर की गई टिप्पणी पर मांगी है। उन्होंने इसके लिए माफी मांगते हुए कहा है कि मैंने ध्यान नहीं दिया कि बाइक स्टैंड पर है और स्टैंड पर खड़ी बाइक पर हेलमेट लगाना जरूरी नहीं होता, ऐसे में वो इस बात के लिए माफी मांगते हैं कि उन्होंने हेलमेट को लेकर सीजेआई से सवाल किया। बाकी किसी बात पर उन्होंने खेद नहीं जताया है।
Recommended Video
हेलमेट के अलावा किसी बात के लिए खेद नहीं
अवमानना के नोटिस का जवाब देते हुए प्रशांत भूषण ने 134 पन्नों के इस जवाब में हेलमेट को लेकर उन्होंने जरूर माफी मांगी है लेकिन इसके अलावा अपनी ओर से कही किसी बात के लिए वो पीछे नहीं हटे हैं। उन्होंने अपने जवाब में इसके अलावा एक बार भी माफी या खेद प्रकट नहीं किया है।
ट्वीट को लेकर हुआ है केस
प्रशांत भूषण ने बाइक पर बैठे मुख्य न्यायाधीश एसएस बोबडे की एक तस्वीर ट्वीटर पर शेयर की थी। इसमें उन्होंने उनके बिना मास्क और हेलमेट होने को लेकर सवाल किए थे। एक और ट्वीट में प्रशांत भूषण ने कहा था कि पिछले छह सालों में देश में लोकतंत्र को बर्बाद करने में चार प्रधान न्यायाधीशों की भूमिका रही है। इन दो ट्वीट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्वंत: संज्ञान लिया था और भूषण के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज किया था। सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को एडवोकेट प्रशांत भूषण को नोटिस जारी किया था, जिसमें पूछा गया कि वे कारण बताएं कि न्यायपालिका पर उनके ट्वीट पर अदालत की अवमानना के लिए उनके खिलाफ एक्शन क्यों न लिया जाए।
प्रशांत भूषण ने कानून की वैधता को दी है चुनौती
प्रशांत भूषण ने अपने अवमानना मामले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केस को वापस लेने की मांग की है। याचिका में कोर्ट की अवमानना कानून में सेक्शन 2(c)(i) की वैधता को चुनौती दी गई है। यह प्रावधान उस विषय-वस्तु के प्रकाशन को अपराध घोषित करता है, जो कोर्ट की निंदा करता है या कोर्ट के अधिकार को कम करता है। याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मिले 'बोलने की स्वतंत्रता' के अधिकार का उल्लंघन करता है और जनता के महत्व के मुद्दों पर बहस को प्रभावी तरीके से रोकता है।
ये
भी
पढ़िए-
अवमानना
मामले
में
प्रशांत
भूषण
को
SC
का
नोटिस,
5
अगस्त
को
होगी
अगली
सुनवाई