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पीएन हक्सर जिसने इंदिरा गांधी को शिखर तक पहुंचाया

उनके बारे में कहा जाता था कि आधुनिक भारत के इतिहास के एक नाज़ुक मोड़ पर वो न सिर्फ़ यहाँ के सबसे ताकतवर नौकरशाह थे, बल्कि इंदिरा गांधी के बाद भारत के दूसरे सबसे ताकतवार इंसान भी थे... और उनकी ताकत का स्रोत इंदिरा गांधी नहीं थीं.

जेआरडी टाटा ने एक बार उनको पत्र लिख कर कहा था, "आप को मालूम है, मेरे मन में आप के लिए बहुत श्रद्धा और सम्मान है. आप को ये भी मालूम है कि इंदिरा गांधी की बहुत-सी नीतियों से मैं सहमत नहीं हूँ

By BBC News हिन्दी
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पीएन हक्सर
Courtesy: Interwined Lives/Jairam Ramesh
पीएन हक्सर

उनके बारे में कहा जाता था कि आधुनिक भारत के इतिहास के एक नाज़ुक मोड़ पर वो न सिर्फ़ यहाँ के सबसे ताकतवर नौकरशाह थे, बल्कि इंदिरा गांधी के बाद भारत के दूसरे सबसे ताकतवार इंसान भी थे... और उनकी ताकत का स्रोत इंदिरा गांधी नहीं थीं.

जेआरडी टाटा ने एक बार उनको पत्र लिख कर कहा था, "आप को मालूम है, मेरे मन में आप के लिए बहुत श्रद्धा और सम्मान है. आप को ये भी मालूम है कि इंदिरा गांधी की बहुत-सी नीतियों से मैं सहमत नहीं हूँ, जिनके निर्धारण में आपकी भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता."

ये शख़्स थे परमेश्वर नारायण हक्सर. साल 1967 में जब वो ब्रिटेन में भारत के उपउच्चायुक्त थे, इंदिरा गाँधी ने उन्हें अपना प्रधान सचिव नियुक्त किया था. इंदिरा गांधी उन्हें कभी हक्सर साहब तो कभी बब्बू भाई कह कर पुकारती थीं.

अपने सहयोगियों के बीच वो पीएनएच के नाम से मशहूर थे.

बहुचर्चित किताब 'इंटरट्वाइंड लाइव्स पीएन हक्सर एंड इंदिरा गाँधी' लिखने वाले जयराम रमेश बताते हैं, "इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से डिग्री लेने के बाद वो तीस के दशक में इंग्लैंड गए थे जहाँ उन्होंने मशहूर एंथ्रोपॉलोजिस्ट ब्रोनिसलॉ मेलीनोस्की की देखरेख में एंथ्रोपॉलोजी की पढ़ाई की थी."

"इसके बाद उन्होंने वकालत भी पढ़ी और इंदिरा के पति फ़िरोज़ के पहले दोस्त और फिर हैम्पस्टेड में उनके पड़ोसी भी बन गए. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब हिटलर के विमान लंदन पर बम गिरा रहे होते थे तो हक्सर इंदिरा और फ़िरोज़ के लिए स्वादिष्ट कश्मीरी खाना बना रहे होते थे."

पीएन हक्सर
Courtesy: Interwined Lives/Jairam Ramesh
पीएन हक्सर

सचिव बनाने से पहले इंदिरा हक्सर को अमरीका ले गईं

लंदन से वापस आ कर हक्सर ने इलाहाबाद में सर तेज बहादुर सप्रू और कैलाशनाथ काटजू की देखरेख में वकालत शुरू की. आज़ादी के बाद नेहरू ने उन्हें भारतीय विदेश सेवा में शामिल होने की पेशकश की.

हक्सर की पहली पोस्टिंग लंदन में थी जहाँ कृष्ण मेनन भारत के उच्चायुक्त हुआ करते थे. इसके बाद उन्हें नाइजीरिया में भारत का पहला राजदूत बनाया गया. फिर वो ऑस्ट्रिया में भी भारत के राजदूत बने.

साठ के दशक में जब वो भारत के उपउच्चायुक्त थे तो इंदिरा गाँधी ने उन्हें अपना सचिव या कहें अपना दाहिना हाथ बनाने के लिए तलब किया. इससे पहले वो ब्रिटेन में उपउच्चायुक्त के पद पर रहते इंदिरा के साथ अमरीका की यात्रा पर गए थे.

उस समय की एक बहुत दिलचस्प घटना का ज़िक्र प्रणय गुप्ते ने अपनी किताब मदर इंडिया में किया है.

प्रणय लिखते हैं, "अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन इंदिरा गाँधी से इतने प्रभावित थे कि जब भारतीय राजदूत बीके नेहरू ने उपराष्ट्रपति ह्यूबर्ट हंफ़्री के सम्मान में अपने घर भोज दिया तो जॉन्सन भोज से एक घंटे पहले बिना बताए और बिना किसी पूर्व सूचना के, सारे प्रोटोकॉल तोड़ते हुए वहाँ आ पहुंचे."

पीएन हक्सर
Courtesy: Interwined Lives/Jairam Ramesh
पीएन हक्सर

हक्सर ने अपनी कुर्सी जॉन्सन को ऑफ़र की

प्रणय गुप्ते आगे लिखते हैं, "बीके नेहरू की पत्नी फ़ौरी ने तकल्लुफ़न उनसे पूछा, 'मिस्टर प्रेसिडेंट आप खाने तक तो रुकेंगे ना?''

जॉन्सन का जवाब था, ''माई डियर लेडी आप क्या समझती हैं, मैं यहाँ आया किस लिए हूँ.''

उपराष्ट्रपति हंफ़्री ने मज़ाक किया, ''मुझे मालूम था कि राष्ट्रपति महोदय मुझे उन सुंदर महिलाओं के बग़ल में नहीं बैठने देंगे.''

"आनन-फ़ानन में सारे 'सीटिंग अरेंजमेंट' को बदला गया, लेकिन दिक्कत ये थी कि भारतीय राजदूत की डायनिंग टेबल पर अमरीकी राष्ट्रपति के लिए कोई अतिरिक्त कुर्सी मौजूद नहीं थी."

"हक्सर ने उनकी मुश्किल दूर करते हुए ख़ुद ही पेशकश की कि मैं भोज से हट जाता हूँ. अंतत: हक्सर की कुर्सी जॉन्सन को दी गई और अमरीकी राष्टपति ने इंदिरा गाँधी के साथ खाना खाया.''

इंदिरा के हर कदम के पीछे हक्सर का हाथ

इंदिरा के सचिव बनने के कुछ दिनों के अंदर हक्सर सरकार के सबसे प्रमुख नीति निर्धारक बन गए. साल 1969 से लेकर 1972 तक हक्सर ने जो भी महत्वपूर्ण कदम उठाए उनके पीछे हक्सर का हाथ था.

जयराम रमेश बताते हैं, "हक्सर वामपंथी विचारधारा के थे. उन्होंने बैंकों के राष्ट्रीयकरण और राजाओं के प्रिवीपर्स समाप्त करने के लिए इंदिरा गाँधी को तैयार किया."

"साल 1969 में कांग्रेस विभाजन के समय उनकी सलाह पर ही इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई से ये बहाना करते हुए वित्त मंत्रालय ले लिया कि वो बैंक राष्ट्रीयकरण का विरोध कर रहे थे."

"चार दिनों के बाद इंदिरा गाँधी ने राष्ट्रपति अध्याधेश के ज़रिए बैंको का राष्ट्रीयकरण किया हालांकि कुछ दिनों बाद ही संसद का अधिवेशन शुरू होने वाला था. हक्सर की राय थी कि अध्यादेश के ज़रिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण से ये संदेश जाएगा कि ये इंदिरा गाँधी का निजी फ़ैसला है."

पीएन हक्सर
Courtesy: Interwined Lives/Jairam Ramesh
पीएन हक्सर

इंदिरा-हक्सर की जुगलबंदी

जयराम रमेश आगे बताते हैं, "इंदिरा गांधी 1972 तक हक्सर साहब पर बहुत निर्भर करती थीं. 1971 की लड़ाई, रूस के साथ संधि, शिमला समझौता और भारत के पहले परमाणु परीक्षण में पीएन हक्सर की बहुत बड़ी भूमिका थी."

"साढ़े पाँच सालों तक इंदिरा गाँधी ने कोई क़दम ऐसा नहीं उठाया जिसमें हक्सर साहब की परछाई न हो."

"इंदिरा और हक्सर की ज़बरदस्त जुगलबंदी के कारण ही इंदिरा गाँधी 1971 में अपने करियर के माउंट एवरेस्ट पर जा पहुंची. पहले उन्होंने चुनाव जीता और फिर दिसंबर में पाकिस्तान को युद्ध में हराया. इन सब के पीछे हक्सर का हाथ था."

इंदिरा से असहमत होने की हिम्मत

हक्सर एक चुंबकीय व्यक्तित्व के मालिक थे. पढ़े-लिखे थे. मज़ाकिया थे और उनमें बातचीत करने का ग़ज़ब का सलीका था.

'मेनस्ट्रीम' के संपादक निखिल चक्रवर्ती उनके सबसे प्रिय दोस्त थे.

हक्सर की बेटी नंदिता हक्सर ने एक दिलचस्प बात मुझे बताई कि मेनस्ट्रीम के कई संपादकीय पीएन हक्सर लिखा करते थे, लेकिन उनका नाम कभी पत्रिका में नहीं छपा.

हक्सर का ही बूता था कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय को कैबिनेट सचिव के कार्यालय से भी अधिक महत्वपूर्ण बना दिया था.

हक्सर के समय प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव रहे बिशन टंडन बताते हैं, "वो इतने सहज स्वभाव के थे कि पीएम के कमरे से लौटते हुए वो अक्सर मेरे कमरे में रुक जाया करते थे और कहते थे बिशन कॉफ़ी पी जाए. हर चीज़ पर वो आप की मदद करने को तैयार रहते थे."

"आपकी ग़लती हो तो आपको बता देते थे कि ग़लती है. अगर वो आपसे सहमत होते थे तो कहते थे तुम इसी पर डटे रहो. एक बार इंदिराजी ने मुझसे कहा कि आप मंत्रिमंडल फेरबदल का एक प्रस्ताव बनाइए. दो चार चीज़ें उन्होंने मुझे पहले से बता दीं. मैं एक विस्तृत नोट बना कर उनके सामने ले गया."

"नोट पढ़ने के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मैं नाम नहीं लूंगा... आपने इनको तो रखा ही नहीं इस सूची में. मैंने पूछा आप इन साहब को मंत्री बनाएंगी? वो कहने लगीं कि इसके राजनीतिक पहलू भी हैं. वो थोड़ी गर्म हो गईं. तभी दरवाज़े पर हक्सर साहब दिखाई दिए."

"उनका ख़्याल था कि इस मामले में हक्सर साहब उनका समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा देखिए टंडनजी इन साहब को, मंत्री बनाने के लिए तैयार नहीं हैं."

हक्सर साहब ने छूटते ही कहा, ''अफ़कोर्स ही इज़ राइट. अगर आप इन्हें ही मंत्री बनाना चाहती हैं तो मंत्रिमंडल फेरबदल के बारे में भूल जाइए.' 'हक्सर साहब में इतनी हिम्मत थी कि वो इंदिरा गाँधी से भी असहमत हो सकते थे."

हेनरी किसिंजर
BBC
हेनरी किसिंजर

हक्सर किसिंजर पर भारी पड़े

साल 1971 के युद्ध के दौरान कूटनीति के मैदान में पीएन हक्सर का मुक़ाबला अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर से था और इसमें कोई संदेह नहीं कि हक्सर किसिंजर पर भारी पड़े थे.

जयराम रमेश बताते हैं, "साल 1986 में जब अमरीका में रूस के राजदूत रहे अनाटोली डोब्रिनिन के पीएन हक्सर से मिलवाया गया तो उनके पहले शब्द थे - ग्लैड टू मीट द पर्सन हू आउटविटेड हेनरी किसिंजर.''

इस पर हक्सर का जवाब था, ''क्या मैं इसे अपनी तारीफ़ के रूप में लूँ या बुराई के रूप में? साल 1971 में भारत के प्रति रिचर्ड निक्सन और हेनरी किसिंजर की भूमिका बहुत ही नकारात्मक थी."

"मैं कह सकता हूँ कि किसिंजर के पूरे राजनीतिक करियर में अगर किसी एक शख़्स ने उन्हें बुद्धू बनाया, तो वो थे परमेश्वर नारायण हक्सर. वो उनकी धमकी में नहीं आए. जो किसिंजर चाहते थे, उसे उन्होंने बहुत धीरज से सुना, लेकिन किया अपनी मर्ज़ी से."

"साल 1971 में सब लोग निक्सन और किसिंजर के कारनामों की दाद देते हैं, जिस तरह उन्होंने पहले चीन और फिर रूस से अपने संबंध बेहतर किए, लेकिन भारत से वो मात खा गए. अगर एक व्यक्ति इसके लिए ज़िम्मेदार था, वो था पीएन हक्सर."

पीएन हक्सर
Courtesy: Interwined Lives/Jairam Ramesh
पीएन हक्सर

हक्सर ने शिमला समझौते का अनुमोदन मंत्रिमंडल से करवाया

साल 1972 में शिमला समझौता बातचीत के दौरान जब डीपी धर को दिल का दौरा पड़ गया तो हक्सर को भारतीय प्रतिनिधिमंडल का प्रमुख बनाया गया.

जब शिमला समझौते की मंत्रिमंडल से स्वीकृति की बात आई तो इंदिरा गाँधी ने इसकी ज़िम्मेदारी पीएन हक्सर को दी.

इंदिरा गाँधी के मीडिया सलाहकार रहे एचवाई शारदा प्रसाद लिखते हैं, "मुझे अच्छी तरह याद है जब मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति के सामने पाकिस्तान से जीती हुई ज़मीन और 93,000 युद्धबंदियों को लौटाने का प्रस्ताव इंदिरा गाँधी ने रखा, तो लगा जैसे सभी मंत्रियों को जैसे साँप सूँघ गया."

"तब उन्होंने हक्सर से कहा कि वो इन लोगों को उनके इस प्रस्ताव का कारण समझाएं. हक्सर ने पूरे 45 मिनट तक अपने तर्क रखे. ये 'प्रेज़ेंटेशन' राजनीतिक, ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक वास्तविकताओं पर उनकी ज़बरदस्त पकड़ का बेहतरीन नमूना था."

"हक्सर के भाषण के बाद इंदिरा ने वही प्रस्ताव दोबारा अपने मंत्रियों के सामने रखा और एक के बाद एक करके जगजीवन राम, यशवंतराव चव्हाण, स्वर्ण सिंह और फ़खरुद्दीन अली अहमद ने अपनी सहमति उन्हें दे दी."

पीएन हक्सर
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पीएन हक्सर

पद्मविभूषण स्वीकार नहीं किया

पीएन हक्सर शायद अकेले शख़्स थे जिन्हें दो अलग अलग सरकारों ने पद्मभूषण देने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया.

जयराम रमेश बताते हैं, "साल 1973 में सबसे पहले इंदिरा सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण देना चाहा तो हक्सर ने भारत के तत्कालीन गृह सचिव गोविंद नारायण को लिखा कि मुझे पुरस्कार देने का विचार ही मेरे लिए बहुत बड़ा पुरस्कार है. उन कार्यों के लिए पुरस्कार लेना जो मेरी नज़र में मेरा कर्तव्य था, शायद उचित नहीं होगा."

"इस बारे में सोचने के लिए आप प्रधानमंत्री तक मेरा धन्यवाद पहुंचा दीजिए. साल 1998 में उनकी मृत्यु से डेढ़ महीने पहले वाजपेई सरकार ने उन्हें फिर पद्मभूषण देने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने उसे भी विनम्रता से अस्वीकार कर दिया."

"पहले भी कई लोगों ने इस तरह के पुरस्कार स्वीकार नहीं किए हैं. लेकिन उन्होंने इसकी सूचना तुरंत प्रेस को दी है. मुझे इसके बारे में पता तब चला जब मैं नेहरू लाइब्रेरी में पुस्तक लिखने के दौरान उनके कागज़ों पर शोध कर रहा था."

"और तो और जब 1972 में राष्ट्रपति गिरि ने इंदिरा गांधी को भारत रत्न देने का प्रस्ताव रखा तो हक्सर ने इसका भी विरोध किया जिसे इंदिरा गाँधी ने पसंद नहीं किया."

संजय गाँधी के मारुति प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़

इंदिरा गाँधी को हक्सर के घर पर बने कोफ़्ते बहुत पसंद थे. अक्सर जब उनका दिल चाहता तो वो उसकी फ़रमाइश करतीं. उनका ख़्याल था कि ये कोफ़्ते हक्सर का ख़ानसामा बनाता था.

वास्तव में ये कोफ़्ते हक्सर अपने हाथों से इंदिरा गाँधी के लिए ख़ुद बनाया करते थे. हक्सर से इंदिरा गाँधी से मनमुटाव का कारण थे संजय गाँधी.

उनका मानना था कि संजय की मारुति कार के कारण इंदिरा गांधी की बहुत बदनामी हो रही है.

इंदिरा गाँधी के आसपास के लोगों में से कई लोग उनके बेटे संजय गांधी की हरकतों से खुश नहीं थे, लेकिन उनमें से किसी की हिम्मत नहीं थी कि वो इस बारे में उनसे बात कर पाएं.

हक्सर ने इंदिरा गाँधी को सलाह दी कि वो संजय को दिल्ली से कहीं दूर भेज दे ताकि उनसे जुड़े विवाद अपने आप मर जाएं.

इंदर कुमार गुजराल अपनी आत्मकथा 'मैटर्स ऑफ़ डिसक्रेशन' में लिखते हैं, "हक्सर इस हद तक गए कि उन्होंने इंदिरा से कहा कि आप संजय से अलग रहना शुरू कर दें. इस पर उनका जवाब था कि हर कोई संजय पर हमला कर रहा है. उसके बारे में तरह-तरह की ग़लत कहानियाँ फैलाई जा रही हैं."

"हक्सर ने कहा कि इसी लिए तो मेरा मानना है कि आपको कुछ समय के लिए संजय से कोई वास्ता नहीं रखना चाहिए क्योंकि इसकी वजह से आपको नुक़सान हो रहा है."

"ज़ाहिर है इंदिरा ने हक्सर की बात नहीं मानी और ये बातचीत बहुत अप्रिय परिस्थितियों में समाप्त हुई और उसकी हक्सर को बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी."

हक्सर के चाचा की गिरफ़्तारी

साल 1975 में उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बना दिया गया.

नेहरू के ज़माने में योजना आयोग की बहुत ठसक थी, लेकिन हक्सर के समय तक सुनील खिलनानी के शब्दों में कहा जाए तो योजना आयोग 'एक सॉफ़िस्टीकेटेड अकाउंट दफ़्तर और हाशिए पर लाए गए लोगों का घर बन गया था.'

संजय का हक्सर के प्रति गुस्सा इतना बढ़ा कि आपातकाल लगने के कुछ दिनों के भीतर ही हक्सर के 80 वर्षीय चाचा की कनॉट प्लेस स्थित दुकान पर छापा मारा गया.

हक्सर की बेटी नंदिता हक्सर बताती हैं, "संजय गांधी तब तक सर्वेसर्वा बन चुके थे. पापा इंदिरा से कहा करते थे कि उन पर कुछ रोक लगाइए. इंदिरा और शायद संजय को ये बात बहुत बुरी लगी. उन्होंने पापा के चाचा को गिरफ़्तार करवा दिया."

"फिर वो मेरी बुआ, फूफा और यहाँ तक कि मेरी माँ को गिरफ़्तार करने आए. ये एक विडंबना थी कि कुछ दिन पहले तक वो भारत के सबसे ताक़तवर अफ़सर माने जाते थे, लेकिन इमरजेंसी के दौरान कोई वकील उनके चाचा का केस तक लड़ने के लिए तैयार नहीं था."

पीएन हक्सर
Courtesy: Interwined Lives/Jairam Ramesh
पीएन हक्सर

हक्सर के हटते ही इंदिरा की परेशानियाँ शुरू

दिलचस्प और चौकाने वाली बात ये थी कि जब हक्सर के चाचा के साथ ये सलूक हो रहा था, हक्सर योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे और इस हैसियत से वो इंदिरा गाँधी के मंत्रिमंडल की बैठक में शामिल हुआ करते थे.

जयराम रमेश बताते हैं, "मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान हक्सर अक्सर इंदिरा गाँधी के सामने बैठते थे. उनकी आँखें भी मिलती थीं, लेकिन इंदिरा दूसरी तरफ़ देखने लगती थीं. उन्होंने कभी भी इंदिरा गाँधी से इस बारे में न तो कोई बात की और न ही कोई पत्र लिखा."

महान परमाणु वैज्ञानिक राजा रामन्ना ने हक्सर के बारे में एक दिलचस्प बात लिखी है, "जब तक इंदिरा गाँधी ने हक्सर की बात सुनी वो जीत पर जीत अर्जित करती गईं, चाहे वो बांग्लादेश हो या परमाणु परीक्षण हो."

"लेकिन जैसे ही उन्होंने हक्सर को हटा कर अपने छोटे बेटे की बात सुननी शुरू कर दी, उनकी आफ़तें वहीं से शुरू हो गईं. इसे मात्र संयोग ही नहीं कहा जा सकता कि हक्सर के जाने के बाद इंदिरा चुनाव हारीं, संजय की मौत हुई, भिंडरावाला आए, ऑपरेशन ब्लू-स्टार हुआ और ख़ुद उनकी हत्या हुई."

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English summary
PN Haksar who led Indira Gandhi to Shikhar
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