उत्तर भारत के शहरों में सांस लेने वाले कितने साल कम जी पाते हैं? नई स्टडी में हुआ खुलासा
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बेहद गंभीर स्तर पर पहुंच गया है। यहां धुंध इस कदर हावी है कि लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है। दिल्ली की हालत गैस चैंबर जैसी हो गई है। वहीं जानकारी के मुताबिक, दिल्ली वालों को इस प्रदूषण से अभी अगले कुछ दिनों तक राहत मिलने के आसार नहीं हैं। ये हाल केवल दिल्ली का ही नहीं है बल्कि एनसीआर में भी इसका खासा असर दिखाई दे रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक दिल्ली से सटे यूपी के गाजियाबाद में वायु की गुणवत्ता की स्थित अत्यधिक खराब है। सीपीसीबी ने इसे 'सीवियर' श्रेणी में रखा है। जहां दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर गंभीर बना हुआ है, वहीं एक नई रिपोर्ट सामने आई है जिसमें चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अगर आप सोचते हैं कि बड़े शहरों के बजाय गंगा के किनारे स्थित मैदानी भाग में रहने वाले लोग वायु प्रदूषण से मुक्त हैं और लंबा जीवन जीते हैं, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है।
प्रदूषण की वजह से 7 साल तक कम हो रहा जीवन: स्टडी
गुरुवार को सामने आई इस चौंकाने वाली रिपोर्ट के मुताबिक इंडो-गंगेटिक प्लेन (IGP) इलाके में रहने वाले लोगों की जिंदगी गंभीर वायु प्रदूषण की वजह से 7 साल तक कम हो रही है। ये रिपोर्ट शिकागो यूनिवर्सिटी की शोध संस्था की तरफ से जारी की गई है। वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI) नाम से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर भारत यानी खासतौर से गंगा के मैदानी इलाकों में बसे लोगों का जीवन वायु प्रदूषण के चलते सात साल तक कम हो रहा है।
शिकागो विश्वविद्यालय की शोध संस्था EPIC ने जारी किए चौंकाने वाले आंकड़ें
अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय की शोध संस्था EPIC की वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI) का नया विश्लेषण ये बताता है कि इस इंडो गंगेटिक प्लेन यानी गंगा के मैदानी इलाकों में 1998 से 2016 के दौरान प्रदूषण में 72 फीसदी की वृद्धि हुई है। आपको बता दें कि इस इलाके में भारत की 40 फीसदी आबादी रहती है। वायु प्रदूषण में 72 फीसदी तक की बढ़ोतरी ने इस इलाके में रहने वाले लोगों का जीवन करीब 7 साल कम कर दिया है।
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर गंभीर स्थिति तक पहुंचा
रिसर्च में यह भी कहा गया है कि गंगा के मैदानी इलाके जिसमें दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल शामिल हैं, यहां रहने वाले नागरिक उच्च स्तर के वायु प्रदूषण के संपर्क में हैं और इसलिए उनका जीवन लगातार कम हो रहा है। साल 1998 में लोगों के जीवन पर वायु प्रदूषण का प्रभाव आज के मुकाबले आधा होता, अगर वहां प्रदूषण की स्थिति विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों के सापेक्ष रहती। उस स्थिति में गंगा के आस-पास रहने वाले लोगों की जिंदगी आज के मुकाबले आधा यानी 3.7 साल कम हुई होती। हालांकि, वायु प्रदूषण में 72 फीसदी तक की बढ़ोतरी ने यहां के लोगों का जीवनकाल 7 साल तक कम कर दिया है।
'गंगा के मैदानी भाग में रहने वाले लोगों की घट रही जिंदगी'
विश्लेषण के आंकड़ों की जानकारी देते हुए सर गंगा राम अस्पताल के चेस्ट सर्जन डॉ. अरविंद कुमार ने वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य पर होने वाले असर का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, 'इस समय दिल्ली में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर आपातकाल की स्थिति है। मैंने 28 वर्षीय गैर-धूम्रपान करने वालों को स्टेज-4 फेफड़े के कैंसर से जूझते हुए देख रहा हूं। यह मेरे लिए बहुत दर्दनाक अनुभव है। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा क्योंकि मैं वायु प्रदूषण से युवा मरीजों को खोते हुए देख रहा हूं।' अरविंद कुमार ने कहा, '1988 में जब वो एम्स में शामिल हुए तो 90 फीसदी लंग कैंसर के मामले धूम्रपान करने वालों में थे, लेकिन अब गैर-धूम्रपान करने वालों में 50 फीसदी ऐसे मामले देखे जा रहे हैं।'
इसे भी पढ़ें:- VIDEO: केजरीवाल ने खोला राज, कैसे बिजली, पानी, महिलाओं के लिए सफर फ्री कर पाए