जंगल में कराई महिला की डिलीवरी, गांव के कच्चे रास्तों से दो किलोमीटर चलकर पहुंचा डॉक्टर
कंधमालः ओडिशा के कंधमाल जिले में रविवार को फर्ज और इंसानियत की एक बेमिसाल कहानी सामने आई है। लेबर पेन से जूझ रही महिला की मदद के लिए डॉ यागनादत्ता ने एक मिसाल कायम की। महिला तक पहुंचने के लिए डॉ को करीब 1.5 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा और पहाड़ी और नदी को पार करना पड़ा। आदिवासी इलाके में रहने वाली सीतादाडू रयता 23 साल की हैं, उन्होंने बच्ची को जन्म दिया।
परिवार ने मांगी डॉक्टर की मदद
रविवार को महिला को लेबर पेन शुरू गया, जिसके बाद वो महिला अपने पति और परिवार के सदस्यों के साथ स्वास्थ्य केंद्र के लिए रवाना हो गई। लेकिन कुछ देर चलने के बाद महिला से चलना मुश्किल हो गया। महिला का दर्द बढ़ता गया। पत्नी की हालत देखकर उसके पति ने डॉक्टर को वहीं बुलाने का फैसला किया। सीतादाड़ू के पति ने परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ छोड़कर स्वास्थ्य केंद्र की ओर चलना शुरू किया।
जंगल में ही कराई महिला की डिलीवरी
स्वास्थ्य केंद्र पहुंचकर पूरी बात बताई। जब डॉक्टर ने ये पूरी कहानी सुनी तो उन्होंने तुरंत चलने का फैसला किया। डॉक्टर महिला के पति के साथ एम्बुलेंस लेकर रवाना हो गया। चार किलोमीटर की यात्रा करने के बाद एम्बुलेंस को रोकना पड़ा और फिर डॉक्टर और महिला का पति पैदल की जंगल की ओर पैदल चले। जहां डॉक्टर ने महिला की सुरक्षित डिलीवरी कराई।
इस फोटो के बाद हुई थी ओडिशा की स्वास्थ्य प्रणाली की आलोचना
डॉ यागनादत्ता ने समय पर पहुंचकर महिला सीतादाडू रयता की सुरक्षा के लिए पूरे इंतजाम किए। महिला के परिवार ने डॉ को शुक्रिया कहा है। ओडिशा के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में युवा डॉक्टर को पोस्टर ब्वॉय बना दिया है। ओडिशा के हेल्फ स्टिम के लिए बड़ी मिसाल है, क्योंकि इसी सूबे में आदिवासी किसान दाना मांझी को उनकी पत्नी को कंधे पर अपनी पत्नी की लाश के साथ देखा था, जिसके बाद ओडिशा स्वास्थ्य प्रणाली की काफी आलोचना हुई थी।
गांव में नहीं है बस की सुविधा
डॉ यागनादत्ता 29 साल के हैं और वो कंधमाल जिले के तमूडीबंधा समुदाय स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत हैं। इस इलाके में माओवादियों पर जनता का प्रभाव है। इस इलाके को बाहरी लोगों के लिए सेफ नहीं माना जाता है। रायत गांव स्वास्थ्य केंद्र से सात किलोमीटर की दूरी है। इस गांव में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। रास्ते का एक भाग पाहड़ी है। इस गांव तक पहुंचे के लिए कोई बस की सुविधा नहीं है। गांव तक ज्यादातर लोग पैदल ही सफर करते हैं।
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