अब तय कर सकेंगे कि कितने वक़्त तक फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम चलाना है
हमारे दिन का एक बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया खा जाता है. वक़्त मिलते ही हम फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे ऐप देखने लगते हैं. कई बार तो घंटों इन्हीं ऐप्स पर बिताते हैं.
सब जानते हैं कि ये वक़्त की बर्बादी है, पर क्या करें ये लत छूटती ही नहीं. हमारी दिमाग़ी सेहत पर भी इसका बुरा असर पड़ता है.
लेकिन अब फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर जल्द ही एक ऐसा टूल आने वाला है,
हमारे दिन का एक बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया खा जाता है. वक़्त मिलते ही हम फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे ऐप देखने लगते हैं. कई बार तो घंटों इन्हीं ऐप्स पर बिताते हैं.
सब जानते हैं कि ये वक़्त की बर्बादी है, पर क्या करें ये लत छूटती ही नहीं. हमारी दिमाग़ी सेहत पर भी इसका बुरा असर पड़ता है.
लेकिन अब फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर जल्द ही एक ऐसा टूल आने वाला है, जो इस मामले में आपकी मदद कर सकता है. इस टूल की मदद से आप ये तय कर सकते हैं कि आप इन ऐप्स पर कितना वक़्त बिताएंगे.
यूज़र अब ये पता कर सकेंगे कि स्क्रोलिंग में उन्होंने कितना वक़्त बिताया. वो ये भी तय कर सकेंगे कि सोशल मीडिया को कितना वक़्त देना है. जैसे ही आपका समय ख़त्म होगा, ऐप से आपको एक रिमाइंडर आ जाएगा. आप तय समय तक नोटिफिकेशन भी बंद कर सकेंगे.
लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि इससे ज़्यादा फ़ायदा नहीं होगा.
ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट के ग्रांट ब्लैंक कहते हैं, "ये एक क्रांतिकारी बदलाव हैं. इससे फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम इस्तेमाल करने के लोगों के तरीक़ों में काफ़ी बदलाव आएगा."
"कंपनी अपने कॉरपोरेट हितों और लोगों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी में संतुलन बनाना चाहती है. जो लोग लगातार आ रहे नोटिफिकेशन से परेशान हो जाते हैं, कंपनी उन लोगों के लिए समाधान लेकर आई है."
दिसंबर 2017 में फ़ेसबुक ने एक ब्लॉग प्रकाशित किया था, जिसमें उसके प्लेटफ़ॉर्म पर बहुत ज़्यादा टाइम बिताने से पड़ने वाले बुरे प्रभावों का ज़िक्र था.
मिशिगन विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों को 10 मिनट तक यू हीं फ़ेसबुक स्क्रॉल करने के लिए कहा गया जबकि कुछ दूसरे छात्रों को पोस्ट करने और दोस्तों से बात करने के लिए कहा गया. इसके बाद पाया गया कि साइट पर ज़्यादा एक्टिव रहे इन छात्रों के मुकाबले यू हीं फ़ेसबुक स्क्रॉल करने वाले छात्रों का मूड दिन के अंत तक 'बहुत ख़राब' हो गया था.
कुछ और अध्ययनों से भी ये बात सामने आई है कि दूसरों के मुकाबले लिंक्स पर चार गुना ज़्यादा क्लिक करने वाले और पोस्ट को दो गुना ज़्यादा लाइट करने वाले लोगों की 'दिमागी सेहत पर अधिक बुरा असर पड़ता है.'
'समय की बर्बादी'
24 साल की लाइफस्टाइ व्लॉगर और इंस्टाग्रामर एम शेलडॉन कहती हैं, "दोस्तों और आस-पास के लोग के अपडेट्स चेक करना हमारी दिनचर्या का हिस्सा है."
"जैसे ही मैं फ्री होती हूं, सोशल मीडिया पर स्क्रोलिंग करने लगती हूं. 24 घंटे मैं ये कर सकती हूं. लेकिन मुझे लगता है कि सोशल मीडिया इस्तेमाल करने का समय तय करने की ज़रूरत है."
ये पूछे जाने पर कि क्या नया टूल आने के बाद फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर उनका वक़्त बिताना कम हो जाएगा. एम कहती हैं, "मैं नहीं कह सकती कि मुझे इससे कुछ मदद मिलेगी या नहीं, क्योंकि मैं जानती हूं कि मैं सोशल मीडिया का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल करती हूं."
लेकिन उनका मानना है कि रिमाइंडर नोटिफिकेशन कुछ मददगार साबित हो सकते हैं.
"रिमाइंडर आने के बाद मैं सोचूंगी कि अब मुझे फोन रख देना चाहिए."
"अगर आपके पास एक नोटिफिकेशन आता है कि आप पिछले छह घंटे से ऐप चला रहे हैं, तो मेरा दिमाग कहेगा कि ये बहुत ज़्यादा है और मैं समय की बर्बादी कर रही हूं."
ट्विटर पर हर रोज़ 15 घंटे
एक डिजिटल मार्केटिंग कपनी के सह-संस्थापक हैरी हुगो इसे एक बेहद अहम बदलाव मानते हैं.
"इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का बहुत अधिक इस्तेमाल करने वाले युवा मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं. इसलिए इसके लिए कदम उठाए जाने की ज़रूरत है."
"अगर उन्हें बताया जाएगा कि वो इन प्लेटफॉर्म पर घंटों बिता रहे हैं, तो हो सकता है कि वो अगली बार ऐसे करने से पहले दो बार सोचें."
हैरी बताते हैं कि वो खुद किशोरावस्था में 15 से 16 घंटे ट्विटर पर बिताया करते थे. "आज मुझे इसके बारे में सोचकर हैरानी होती है."
उनका मानना है कि लोगों को अपनी ज़िम्मेदारी खुद ही लेनी होगी.
"हम ही फोन उठाते हैं और इंस्टाग्राम खोल लेते हैं. हम फ़ेसबुक और दूसरी सोशल मीडिया कंपनियों पर इसकी पूरी ज़िम्मेदारी नहीं थोप सकते."
नया टूल लाने का फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम का कदम तो अच्छा है, लेकिन देखना होगा कि इसका कितना फ़ायदा लोगों को मिल पाता है.
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