निर्भया केस: डेथ वारंट में क्या होता है फॉर्म-42, जो तय करता है दोषी की फांसी
'दोषी को तब तक गर्दन से फांसी पर लटकाया जाए, जब तक वह मर ना जाए', यह लाइन डेथ वारंट के इस फॉर्म नंबर 42 में ही लिखी होती है।
नई दिल्ली। दिल्ली के बसंत विहार गैंगरेप मामले में तिहाड़ जेल में बंद चारों दोषियों की फांसी की घड़ी लगातार नजदीक आ रही है। फांसी को लेकर तिहाड़ जेल प्रशासन ने भी अपने इंतजाम पूरे कर लिए हैं। अगले हफ्ते बुधवार को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट चारों दोषियों के खिलाफ ब्लैक वारंट यानी डेथ वारंट जारी करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करेगी। ये याचिका निर्भया के माता-पिता ने दाखिल की है। दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी होने के बाद उन्हें तिहाड़ जेल में तय तारीख और समय पर फांसी दे दी जाएगी। इस डेथ वारंट में एक फॉर्म नं- 42 होता है, जिमसें फांसी देने का पूरा ब्यौरा लिखा होता है।
फॉर्म-42 में क्या क्या लिखा होता है
'दोषी को तब तक गर्दन से फांसी पर लटकाया जाए, जब तक वह मर ना जाए', यह लाइन डेथ वारंट के इस फॉर्म नंबर 42 में ही दूसरे पैरा में लिखी होती है। दरअसल सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) के तहत फॉर्म-42 फांसी की सजा पाए किसी दोषी को फांसी पर लटकाने का आदेश होता है। फॉर्म-42 उस जेल के जेलर को संबोधित करते हुए जारी किया जाता है, जिस जेल में दोषियों को फांसी दी जानी है। इस फॉर्म की पहली ही लाइन में उन दोषियों के नाम लिखे होते हैं, जिन्हें फांसी पर लटकाया जाना है। इसके बाद इस फॉर्म में केस नंबर लिखा होता है।
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समय और जगह का होता है जिक्र
डेथ वारंट के फॉर्म-42 में इसके बाद उस तारीख का जिक्र किया जाता है, जिस दिन दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी होता है। इसके बाद दोषियों को फांसी दिए जाने की तारीख लिखी होती है। इसके अगले पैरा में लिखा होता है- 'दोषी को तब तक गर्दन से फांसी पर लटकाया जाए, जब तक वह मर ना जाए'। इसके बाद दोषियों को फांसी दिए जाने का समय और जगह लिखी होती है। फॉर्म-42 में सबसे नीचे की तरफ तारीख के साथ उस जज के हस्ताक्षर होते हैं, जो डेथ वारंट जारी करते हैं।
कब जारी होता है डेथ वारंट
आपको बता दें कि डेथ वारंट यानी ब्लैक वारंट, फांसी की सजा पाए किसी भी दोषी के खिलाफ उस वक्त जारी किया जाता है, जब न्यायिक प्रक्रिया पूरी हो जाती है और दोषी की सभी अपील खारिज हो जाती हैं। राष्ट्रपति की तरफ से दया याचिका ठुकराए जाने के बाद जेल प्रशासन ब्लैक वारंट के लिए कोर्ट जाता है। ब्लैक वारंट जारी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के नियमों के मुताबिक, जेल अधिकारी दोषियों और उनके परिजनों को फांसी के बारे में जानकारी देते हैं। ब्लैक वारंट जारी होने के बाद दोषी की इच्छा पर उसके परिजनों के साथ उसकी मुलाकात कराई जाती है।
फांसी के बाद कोर्ट को वापस भेजा जाता है डेथ वारंट
इन सारी प्रक्रियाओं के बाद तय तारीख और तय समय पर दोषी को फांसी दे दी जाती है। फांसी देने के बाद जेल के डॉक्टर चेक करते हैं कि दोषी मर चुका है या नहीं। डॉक्टर की तरफ से दोषी की मौत की पुष्टि किए जाने के बाद जेल अधीक्षक ब्लैक वारंट पर अपने साइन करते हैं। इसके बाद डॉक्टर दोषी का डेथ सर्टिफिकेट जारी करता है और इस डेथ सर्टिफिकेट को ब्लैक वारंट के साथ कोर्ट वापस भेजकर बताया जाता है कि दोषी को फांसी दे दी गई है। निर्भया मामले में एक दोषी अक्षय ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है, जिसपर 17 दिसंबर को सुनवाई होगी।
7 साल बाद निर्भया को मिलेगा इंसाफ
गौरतलब है कि दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को अपने घर लौट रही 23 वर्षीय छात्रा से बस के अंदर गैंगरेप के मामले में 6 लोगों को दोषी ठहराया गया था। इस घटना के कुछ दिन बाद छात्रा की मौत हो गई और लोगों ने सड़कों पर उतरकर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर विरोध प्रदर्शन किए। दोषी ठहराए गए 6 लोगों में से एक राम सिंह ने ट्रायल के दौरान तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली थी, जबकि एक दोषी नाबालिग था। हाल ही में हैदराबाद में महिला डॉक्टर के साथ गैंगरेप और उसे जलाकर मारने की घटना के बाद निर्भया के दोषियों को जल्द से जल्द फांसी पर लटकाए जाने की मांग उठ रही है।
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