आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से रोकी जा सकती हैं डेंगू से होने वाली मौतें: स्टडी
नई दिल्ली, 19 सितंबर: कोरोना वायरस महामारी से पूरा देश लगातार जूझ रहा है। वहीं कोरोना के बीच डेंगू बुखार के प्रकोप ने उत्तर भारत में लोगों के बीच चिंता बढ़ा दी है। इस महीने की शुरुआत से ही उत्तर प्रदेश में डेंगू वायरस के प्रकोप ने सैकड़ों जान ले ली हैं, जिसके बाद सरकार ने इस ओर ध्यान देने के लिए अफसरों को दिशा निर्देश भी दिए हैं।
डेंगू बुखार के मामले में सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि इसको रोकने के लिए कोई टीका या मुकम्मल इलाज उपलब्ध नहीं है। ऐसे में डेंगू शॉक सिंड्रोम का सटीक अनुमान लगाना या निर्धारित करना काफी महत्वपूर्ण है। जैसा कि हम जानते हैं कि डेंगू की रोकथाम मच्छरों को नियंत्रित करने पर काफी हद तक निर्भर है, जो इसे पैदा करते हैं।
लगतार आ रही नई टेक्नॉलजी के साथ अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी डेंगू का मुकाबला करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। ऐसे में सवाल है कि क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से डेंगू से होने वाली मौतों को रोका जा सकेगा? युवा भारतीय डॉक्टर-वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत रे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित समाधान लेकर आए हैं, जो डेंगू की गंभीरता से निपटने में मदद करता है और अनिश्चितता को दूर करता है। ये डॉक्टरों और रोगियों, दोनों की मदद कर सकता है।
डेंगू से मौतें: डेंगू के जो गंभीर मामले होते हैं, जिनमें अमूमन मौतें होती हैं वो हेमोरागिक शॉक की वजह से होती हैं, जिसे थ्रोम्बोसाइटोपेनिया रक्तस्राव के रूप में जाना जाता है। इसका मतलब यह है कि शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स की संख्या बहुत कम स्तर तक पहुंच जाती हैं, जो आवश्यक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को हमारे शरीर में कोशिकाओं तक पहुंचने की अनुमति नहीं देती, ताकि वे बुनियादी कार्यों को पूरा कर सकें। डेंगू के मामले में, इसे डेंगू शॉक सिंड्रोम या डीएसएस के रूप में जाना जाता है। डीएसएस ही गंभीर डेंगू बुखार के मामलों में मौत का कारण बनता है। ब्लड प्लेटलेट्स के नुकसान और इसके परिणामस्वरूप गंभीर डेंगू शॉक सिंड्रोम के बीच संबंध स्पष्ट रूप से निर्धारित करना मुश्किल रहा है।
क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से डेंगू से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है?
डॉ. अभिजीत ने नई स्टडी में मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके डेंगू शॉक सिंड्रोम को पहचानने को नया आयाम दिया है। स्टडी में सोफ्टवेयर डेंगू रोगियों के अपेक्षाकृत प्रारंभिक चरण में इस भविष्यवाणी को सफलतापूर्वक करने में सक्षम है, जो संभावित रूप से डीएसएस से पीड़ित होंगे। सॉफ्टवेयर ब्लड प्लेटलेट्स (पीएलटी) काउंट और हेमटोक्रिट (एचसीटी) स्तरों का उपयोग करता है। एआई आधारित एल्गोरिथम डेंगू बुखार वाले रोगी के तीसरे दिन से पीएलटी और एचसीटी के साथ सटीक रूप से निर्धारित करने में सक्षम है।
डॉ. अभिजीत का यह सफल शोध डीएसएस की सटीक भविष्यवाणी करने में मदद करता है। जिससे जोखिम वाले रोगियों के इलाज के तरीके प्रभावित होते हैं और चिकित्सा कर्मियों को डेंगू के रोगियों की निगरानी और उपचार करने में मदद मिलती है। इससे डेंगू बुखार से संबंधित मृत्यु दर को कम करने में मदद मिलती है। यह शोध ऐसे समय में वरदान के रूप में आया है जब देश का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश डेंगू से जूझ रहा है।
स्वास्थ्य संबंधी ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करें
ये भी पढ़ें- आगरा के अस्पतालों में बढ़ रही डेंगू-वायरल फीवर के मरीजों की संख्या, 60 फीसदी बच्चे