मोहल्ला क्लिनिक: किस हाल में है आम आदमी पार्टी का ड्रीम प्रोजेक्ट
क्या मोहल्ला क्लिनिक के ज़रिए लोगों के करीब पहुंच पा रहे हैं केजरीवाल, पढ़िए बीबीसी की ख़ास रिपोर्ट.
दिल्ली के पहाड़गंज इलाक़े में एक झोलाछाप डॉक्टर के क्लिनिक में लगे एक बेड पर दो मरीज़ लेटे हैं जिन्हें ग्लूकोज़ चढ़ रही है.
बगल में रखी बेंच पर एक महिला बैठे-बैठे ही बोतल चढ़वा रही है.
दस रुपये फ़ीस लेने वाले इस झोलाछाप डॉक्टर ने मौसमी बुख़ार के लिए जो इलाज किया है उसका ख़र्च पांच सौ रुपये पार कर चुका है.
पुरानी दिल्ली में हम्माल का काम करने वाला एक मरीज़ अपनी पेंट की भीतर की जेब से एक मुड़ा हुआ नोट निकालता है जिससे उसके पसीने की बू आ रही है.
उसके चेहरे को देखकर साफ़ समझ आता है कि इस दो दिन के बुख़ार ने उसके घर का बजट बिगाड़ दिया है.
दूसरी ओर पूर्वी दिल्ली के गणेश नगर में एक निजी फ्लैट में चल रहे मोहल्ला क्लिनिक के बाहर दर्जन भर मरीज़ अपनी बारी का इंतेज़ार कर रहे हैं.
सरकार के तीन साल, कई सवालों में घिरे केजरीवाल
मुश्किलों के भंवर से निकल पाएंगे केजरीवाल?
यहां फ़ीस नहीं लगती...
स्टील की बेंच पर बैठी 53 वर्षीय ऊषा बलोदी बीते एक साल से अपने हर मर्ज़ की दवा यहीं से ले रही हैं.
बलोदी कहती हैं, "यहां डॉक्टर की फ़ीस नहीं लगती, दवा फ्री मिलती है, सारे टेस्ट भी मुफ़्त हो जाते हैं और सबसे बड़ी बात क्लिनिक अपने ही मोहल्ले में है तो मेरा समय भी बचता है."
क्लीनिक में डॉक्टर के कमरे का दरवाज़ा बंद है.
करीब पांच मिनट बाद एक महिला मरीज़ कमरे से बाहर निकलती हैं और दरवाज़े के बाहर अपनी बारी का इंतज़ार कर रही ज़्योति शर्मा अंदर कमरे में दाख़िल हो जाती हैं.
मैं भी उनके पीछे हो लेता हूं.
केजरीवाल जी! अपनी विधायक को छुट्टी दे दीजिए
राज्यसभा पर केजरीवाल का फैसला क्यों चौंकाता है?
मोहल्ला क्लिनिक में इलाज
डॉक्टर प्रीति सक्सेना चेहरे पर मुस्कान के साथ मरीज़ का हालचाल पूछती हैं. तसल्ली से पूरी परेशानी और लक्षण समझने के बाद वो ज्योति की नब्ज़ देखती हैं.
वो पास ही बैठी नर्स को ज्योति का बीपी नापने के लिए कहती हैं. ज्योति पहली बार इस मोहल्ला क्लिनिक में इलाज कराने आई हैं.
उनकी परेशानी को पूरी तरह समझने के लिए डॉक्टर सक्सेना कई तरह के टेस्ट लिख देती हैं और उनसे दो दिन बाद सुबह आकर ब्लड सैंपल देने के लिए कहती हैं.
जो ज्योति बाहर परेशान खड़ीं थी थोड़ी देर बाद वो हाथ में दवाई और चेहरे पर मुस्कान लिए क्लीनिक से बाहर निकलती हैं.
अपना अनुभव बताते हुए वो हती हैं, "फिलहाल डॉक्टर साहिबा ने दर्द के लिए दवा दे दी है. सारी चीज़ का टेस्ट लिखी हैं जब रिपोर्ट आएगी तो उसके अनुसार इलाज चलेगा."
"यहां आने की फ़ीलिंग बहुत अच्छी है. वो सुनती हैं, समझती हैं और दवाई भी देती हैं."
स्मॉग पर ख़ुद फंस गए केजरीवाल?
क्यों दोबारा बोलने लगे हैं अरविंद केजरीवाल?
मरीज़ का इंतज़ार
डॉक्टर सक्सेना गणेश नगर के इस मोहल्ला क्लिनिक में रोज़ाना औसतन डेढ़ सौ मरीज़ देखती हैं.
एक निजी इमारत के ग्राउंड फ्लोर पर बने एक कमरे के घर में चल रहे इस क्लीनिक में सभी तरह के ब्लड टेस्ट भी किए जाते हैं.
डॉक्टर सक्सेना के अलावा यहां दो और महिला कर्मचारी कार्यरत हैं.
यहां से करीब दो डेढ़ किलोमीटर दूर शकरपुर स्कूल ब्लॉक इलाक़े में एक सरकारी इमारत की पार्किंग में चल रहे मोहल्ला क्लिनिक का वेटिंग एरिया खाली है.
दोपहर के करीब एक बजे यहां एक भी मरीज़ नहीं है. अंदर डॉक्टर अपनी सीट पर बैठे मरीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं.
मुफ़्त स्वास्थ्य सेवाएं
कुछ देर में पास के ही घरों में काम करने वाली एक लड़की आती है, सर दर्द और हल्के बुख़ार की परेशानी बताती है और मुफ़्त दवा लेकर चली जाती है.
पार्किंग में बना ये पोटा क्लिनिक बनावट में गणेश नगर के मोहल्ला क्लिनिक से बेहतर है. लेकिन यहां टेस्ट की सुविधाएं अभी नहीं हैं.
इस क्लिनिक में औसतन सौ मरीज़ रोज़ाना आते हैं. दिल्ली सरकार के ये मोहल्ला क्लिनिक प्राथमिक सामुदायिक स्वास्थ्य की तस्वीर बदल रहे हैं.
यहां आसपास रहने वाले लोगों को अपने घर के पास मुफ़्त स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं. डॉक्टर चंद्रकांत लहरिया सामुदायिक स्वास्थ्य हैं.
वे कहते हैं, "मोहल्ला क्लिनिक स्वास्थ्य सेवाओं को आम लोगों की पहुंच तक ला रहे हैं. ये घर के दरवाज़े पर मरीज़ों को डाइगनॉस्टिक, इंनवेस्टिगेशन और दवा दे रहे हैं."
बड़ा बदलाव
डॉक्टर चंद्रकांत लहरिया कहते हैं, "स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए प्राथमिक स्तर पर सुधार करना सबसे अहम है. मोहल्ला क्लिनिक इस दिशा में एक सही क़दम हैं."
हालांकि वो इसकी संख्या को नाकाफ़ी मानते हैं. उनका कहना है, "आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में सालाना 16 करोड़ ओपीडी विज़िट होती हैं."
"ये आंकड़ा सिर्फ़ पंजीकृत चिकित्सीय प्रतिष्ठानों का है. ऐसे में प्रस्तावित 1000 मोहल्ला क्लिनिक भी नाकाफ़ी ही साबित होंगे."
"शोध बताते हैं कि यदि प्राथमिक स्तर पर सही सेवाएं दी जाएं तो 80 प्रतिशत मरीज़ यहीं से ठीक हो सकते हैं. ये क्लिनिक उच्च स्वास्थ्य संस्थानों का बोझ भी कम करेंगे."
"भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती है लंबी यात्रा करके स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचना और फिर स्वास्थ्य केंद्र पर इंतेज़ार करना."
इलाज के खर्च में कमी
डॉक्टर लहरिया के मुताबिक़, "मोहल्ला क्लनिकि स्वास्थ्य सेवाओं को लोगों के दरवाज़े तक लाकर निश्चित तौर पर मरीज़ों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ा रहे हैं."
"घर के पास ही क्लिनिक होने की वजह से लोग बीमारी की शुरुआत में ही दवा लेने आएंगे जिससे इलाज के खर्च में भी कमी आएगी."
मोहल्ला क्लिनिक के तहत स्थापित होने वाले सामुदायिक क्लिनिक में एक डॉक्टर, एक नर्स, एक फार्मासिस्ट और एक लैब टेक्निशियन होते हैं.
दिल्ली में पहला मोहल्ला क्लिनिक पीरागढ़ी इलाक़े में 19 जुलाई 2015 को खुला था.
50 वर्ग गज में बनने वाले मोहल्ला क्लिनिक में एक डॉक्टर का कमरा, एक फ़ार्मेसी, लैबोरेटरी टेस्टिंग किट्स, कुर्सियों समेत एसी वेटिंग एरिया, और पीने का पानी होता है.
दिल्ली में इस समय 162 मोहल्ला क्लिनिक चल रहे हैं और इनकी संख्या बढ़ाकर एक हज़ार की जानी है. ये आम आदमी पार्टी के अहम चुनावी वादों में भी शामिल था.
सभी के लिए बराबर
स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञ डॉक्टर पीसी भटनागर कहते हैं, "मोहल्ला क्लिनिक एक बहुत अच्छी शुरुआत हो सकते थे."
"जिस तरह और जिस संख्या में इनकी योजना बनाई गई थी अगर वो पूरी तरह लागू हो पाती."
"लेकिन अभी मोहल्ला क्लिनिक इतनी कम संख्या में हैं कि इनके कुछ परीणाम देखना या प्रभाव बता पाना मुश्किल हो रहा है."
"पहल के रूप में ये बहुत अच्छा सुझाव है. फ्री सेवा और फ्री डाइगनोस्टिक एक बहुत अच्छा क़दम है. मोहल्ला क्लिनिक की सेवाएं सभी के लिए बराबर है."
"इसमें ग़रीबों या अति ग़रीबों के लिए कुछ विशेष नहीं है. ये सबके लिए फ्री है."
"लेकिन हम ये भी देखते आए हैं कि जो सेवाएं सबके लिए एक जैसी होती हैं उनसे कहीं न कहीं ग़रीब और अति ग़रीब बाहर हो जाते हैं."
क्या हैं चुनौतियां?
हालांकि तीन साल बीत जाने पर भी आम आदमी पार्टी अभी सिर्फ़ दिल्ली में 162 मोहल्ला क्लिनिक ही शुरू कर चुकी है.
ऐसे में एक हज़ार क्लिनिक स्थापित करने का लक्ष्य दूर दिखाई दे रहा है.
दिल्ली सरकार के साथ इस योजना पर शुरुआत से जुड़े रहे इरफ़ान ख़ान कहते हैं, "योजना एक हज़ार क्लिनिक खोलने की है, इसकी अनुमति भी मिल गई है."
"लेकिन इसे कार्यान्वित होने में समय लग रहा है. सबसे बड़ी दिक्कत ज़मीन की आ रही है. सभी मोहल्ला क्लिनिक का डिज़ाइन पोटा कैबिन पर आधारित है."
"इसे खोलने के लिए जो जगह चाहिए होती है उस जगह को मुहैया करा पाना या ढूंढ पाना बड़ी चुनौती है. इसी वजह से ये क्लिनिक किराए के मकानों में भी चलाए जा रहे हैं."
"पिछड़ी आबादी वाले इलाक़ों में ये क्लिनिक खोलना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है लेकिन वहां ज़मीन खोज पाना बहुत मुश्किल हो रहा है."
राजनीतिक वजहें
दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं पर लंबे समय से रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार मुकेश केजरीवाल कहते हैं, "डोरस्टेप पर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं मुहैया कराने के लिए मोहल्ला क्लिनिक एक बहुत अच्छा प्रयास था."
"जहां-जहां खुल गए हैं वो सही से चल भी रहे हैं लेकिन हर जगह खोलना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है और इसमें सरकार को बहुत कामयाबी मिलती दिख नहीं रही है."
मुकेश केजरीवाल मानते हैं कि मोहल्ला क्लिनिक के बड़ी तादाद में न खुल पाने की सबसे बड़ी वजह दिल्ली में बहुस्तरीय शासन व्यवस्था है जिसमें राज्य सरकार, लेफ़्टिनेंट गवर्नर और केंद्र सरकार के बीच मतभेद रहते हैं.
वहीं विपक्षी कांग्रेस का का कहना है कि आम आदमी पार्टी के मोहल्ला क्लिनिक सिर्फ़ राजनीतिक नौटंकी है.
कांग्रेस ने एक बयान जारी कर कहा, "इस क़दम का सबने स्वागत किया लेकिन उनके पास कोई विज़न नहीं है, सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट तो शुरू किया लेकिन कोई पूर्ण योजना लागू नहीं कर सकी."
राजनीतिक फ़ायदा
मोहल्ला क्लिनिक में आए लोगों से बात करते हुए अहसास होता है कि क्लिनिक को लोगों के करीब लाकर आम आदमी पार्टी भी लोगों के करीब पहुंच रही है.
बहुत मुमकिन है कि मोहल्ला क्लिनिकों में मुफ़्त स्वास्थ्य सेवाएं लेने वाले लोग पार्टी के मतदाता भी बन जाएं.
पत्रकार मुकेश केजरीवाल कहते हैं, "जहां-जहां मोहल्ला क्लिनिक खुले हैं वहां-वहां लोगों में एक सकारात्मक नज़रिया भी पार्टी के लिए बना है."
"लेकिन अभी जो 162 मोहल्ला क्लिनिक खुले हैं वो पार्टी को चुनाव जितवाने लायक नहीं है. अब सवाल ये पूछा जा रहा है कि जितने का वादा किया गया था उतने क्लिनिक क्यों नहीं खुल पा रहे हैं."
आम आदमी पार्टी की ओर से इस सवाल का जवाब देने के लिए कोई उपलब्ध नहीं हो सका.
इस संवाददाता ने कई बार स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन से यही सवाल पूछने की कोशिश की लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला.