मेघालय: जो लोग अवैध खदान में फंसे हैं, उनके परिवार किस हाल में हैं
ये अवैध कोयले की खदानें सैकड़ों लोगों की जाने लेती रही हैं. छिटपुट हादसे आम हैं लेकिन इतना बड़ा हादसा पहली बार सुर्ख़ियों में आया है.
मेघालय सरकार के प्रवक्ता आर सुसंगी का कहना है कि पहली बार ऐसा हादसा हुआ है, जिसके कारण प्रशानिक अमला इसके लिए पहले से तैयार नहीं था.
पूर्वोत्तर राज्य मेघालय के 'वेस्ट गारो हिल्स' के मागुरबारी गाँव में मातम पसरा हुआ है.
यहाँ के रहनेवाले सात लोग मज़दूरी करने 'ईस्ट जैंतिया हिल्स' के कसान इलाक़े में गए थे.
फिर ख़बर आई कि जो 15 लोग कसान के अवैध कोयला खदान में पानी भरने से पिछले 13 दिसंबर से फंसे हुए हैं, उनमें ये सात लोग भी हैं. गाँव के लोग परेशान हैं क्योंकि जिस जगह ये लोग काम करने गए थे वो मागुरबारी से लगभग 850 किलोमीटर दूर है.
फंसे हुए लोग किस स्थिति में है, इतने दिन बाद भी सरकारी मशनरी इस बात का पता नहीं लगा पाई है.
इनकी ख़ैर ख़बर लेने गाँव के कुछ लोग घटनास्थल पर जाते रहते थे, लेकिन अब उनका सब्र भी जवाब दे जा रहा है. अचानक आई इस विपदा से यहाँ के लोग समझौता करने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन खदान में फंसे सात लोगों के परिवार अभी भी उनकी वापसी के सपने देख रहा है. पिछले 13 दिसंबर से वो जिस 'अच्छी ख़बर' की आस लगाए बैठे हैं, अब उस पर तेज़ी से नाउम्मीदी का साया मंडराने लगा है.
मेघालय की इन अवैध खदानों में 'रैट होल माइनिंग' के ज़रिये कोयला निकाला जाता है.
राज्य सरकार पर आरोप है कि उसने रहत और बचाव कार्यों को शुरू करने में काफ़ी देर कर दी.
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कमाने वाला अब कोई दूसरा नहीं
मागुरमारी के लोग परेशान हैं क्योंकि अब खदान में पानी भरे कई दिन बीत चुके हैं लेकिन राहत दल फंसे हुए मज़दूरों तक पहुँचने में नाकाम रहा है. कोल इंडिया लिमिटेड के महाप्रबंधक जुगल बोरा कहते हैं कि इन इलाक़ों के कोई मैप नहीं हैं इसलिए बचाव कार्यों में परेशानियां आ रही हैं.
मागुरमारी गाँव के दो भाई उमर अली और शराफ़त अली का परिवार उनका इंतज़ार कर रहा है. इस घर में सिर्फ़ औरतें और बच्चे ही रह रहे हैं क्योंकि कमाने वाले लोग तो 850 किलोमीटर दूर ज़मीन के कई फीट नीचे फंसे हुए हैं.
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उमर अली की पत्नी सेपाली बेगम कहती हैं कि गाँव में ही रहने वाला एक माइनिंग सरदार उनके पति और देवर को अपने साथ काम दिलाने की बात कह कर ले गया था.
हादसे के बाद से माइनिंग सरदार फ़रार है.
शराफ़त अली की पत्नी साहिबा बेगम अपने एक बेटे और बेटी के साथ इसी घर में रहती हैं.
वो कहती हैं कि उनके पति पहली बार इस तरह का काम करने इतनी दूर गए थे. उनका कहना था कि बहुत मना करने के बावजूद भी वो बहकावे में आकर चले गए.
घटना की ख़बर उन्हें गाँव के लोगों ने आकर दी. इस घर में अब कोई दूसरा कमाने वाला नहीं है.
खदान में फंसे एक और मज़दूर रियाजुल के पिता सहर अली अपने बेटे को याद करते हुए कहते हैं कि उनके बुढ़ापे का सहारा कब घर लौटेगा. वो उसकी आस लगाए बैठे हैं लेकिन अभी तक उनको मायूसी का ही सामना करना पड़ रहा है.
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जान खतरे में क्यों डालते हैं लोग?
ऐसे ही एक 'रैट होल' में काम कर चुके अब्दुल करीम अब अपाहिज हो गए हैं. खदान में काम के दौरान उनपर कोयले का बड़ा अम्बार आ गिरा था, जिस कारण उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गयी थी.
उनके बड़े भाई अब्दुल कलाम भी कसान के उसी कोयला खदान में फंसे हुए हैं.
बीबीसी से बात करते हुए अब्दुल करीम कहते हैं कि उनके इलाक़े में रोज़गार के साधन नहीं हैं. "खेती करना भी घाटे का सौदा है. अगर दूसरों के खेतों में काम करने जाते हैं तो दिहाड़ी 200 से 250 रुपए प्रति दिन के आसपास ही मिल पाती है."
"खदान में मज़दूरी ज़्यादा मिलती है. एक दिन का 3000 रूपए तक मिलता है. इसलिए लोग ज़्यादा पैसे कमाने वहां चले जाते हैं. जिस तरह चूहा अपना बिल बनाता है, यहाँ की खदानों में उसी तरह का काम होता है. इसलिए फंसे लोगों को बचाना बड़ी चुनौती है."
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एक-एक लाख रुपए की मदद
अपने बड़े भाई के बारे में बात करते हुए अब्दुल करीम कहते हैं कि घटना की ख़बर गाँव के लोगों ने जब दी तो उन्होंने अपने भाई के मोबाइल पर फ़ोन किया. मगर वो फ़ोन बंद बता रहा था.
अब इस घर में भी कमाने वाला कोई नहीं बचा है. अब्दुल कलम की पत्नी अफ़रोज़ा, दूध मूंहा बेटा, दो बहने, बूढ़े माँ-बाप और एक अपाहिज भाई.
अफ़रोज़ा कहतीं हैं कि जाने से पहले उनके पति पैसे भी नहीं देकर गए. अब वो परेशान हैं कि घटना स्थल इतनी दूर है कि कोई जाने वाला ही नहीं है.
मेघालय की सरकार ने अंतरिम राहत के रूप में फंसे हुए लोगों के परिजनों को एक-एक लाख रुपए देने की घोषणा की है.
राजाबाला के स्थानीय विधायक आज़ाद ज़मान ने आरोप लगाया कि घटना के कई दिनों तक राज्य सरकार ने बचाव कार्य शुरू तक नहीं किया.
साल 2014 में 'नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल' ने कोयले के खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था. प्रतिबंध इसलिए लगाया गया क्योंकि इन खदानों से अवैज्ञानिक तरीक़े से कोयला निकाला जा रहा था.
जिसकी ज़मीन के नीचे कोयला, वो मालिक
संविधान की अनुसूची 6 के तहत आने वाले इस इलाक़े में जिसकी ज़मीन के नीचे कोयला है वही उसका मालिक भी है. इसलिए लोग अपने-अपने स्तर से खनन करवाते रहते हैं, जिसमें सुरक्षा और दूसरी चीज़ों, जैसे आधुनिक उपकरणों की पूरी तरह अनदेखी होती है.
खनन में सभी के हाथ सने हुए हैं इसलिए इस कारोबार पर रोक नहीं लग पाया है.
ये अवैध कोयले की खदानें सैकड़ों लोगों की जाने लेती रही हैं. छिटपुट हादसे आम हैं लेकिन इतना बड़ा हादसा पहली बार सुर्ख़ियों में आया है.
मेघालय सरकार के प्रवक्ता आर सुसंगी का कहना है कि पहली बार ऐसा हादसा हुआ है, जिसके कारण प्रशानिक अमला इसके लिए पहले से तैयार नहीं था.
अब हर बीतते वक़्त के साथ मागुरमारी के लोगों की परेशानियां बढ़ रहीं हैं.
उनकी उम्मीदों पर कसान की अवैध कोयले की खदानों ने पानी फेरना शुरू कर दिया है. इन परिवारों के लिए ये लड़ाई निराशा और आशा के बीच जा फंसी है.