पश्चिम बंगाल में दीदी की नाक में दम करने वाली भाजपा के पीछे हैं ये दिमाग
नई दिल्ली- पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और उनकी टीएमसी (TMC) को चुनौती देने में बीजेपी (BJP) महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के साथ जमीन पर तीन लोग बेहद सक्रियता और संजीदगी से मिशन को अंजाम देने में जुटे थे। इन लोगों ने प्रदेश में पार्टी के लिए ग्राउंड लेवल पर इस तरह से स्ट्रैटजी बनाई कि दीदी की नाक में दम कर दिया। हर रैली में ममता बनर्जी की जो बौखलाहट नजर आती थी, उसके पीछे इन्हीं तीनों रणनीतिकारों का दिमाग काम कर रहा था। ये तीन नाम हैं, आरएसएस (RSS) से बीजेपी में आए- शिव प्रकाश, अरविंद मेनन और सुनील देवधर। टीएमसी सुप्रीमो को अपनी जमीन खिसकरती दिख गई थी, इसलिए वो बार-बार आपे से बाहर हो जाती थीं। आइए जरा उन लोगों के बारे में जान लें, जिनके चलते ममता बनर्जी (Mamata Banerjee)ने पिछले दो-ढाई महीनें बड़ी टेंशन में गुजारी है।
बंगाल में बीजेपी का बढ़ता ग्राफ
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के संस्थापक डॉक्टर के बी हेडगेवार (KB Hedgewar) का मेडिकल स्टूडेंट होने के नाते कलकत्ता (अब कोलकाता) से लगाव था। कहते हैं कि बंगाल (West Bengal)में राष्ट्रवाद के प्रभाव ने उनपर बहुत असर डाला था। 1952 के पहले आम चुनाव में भारतीय जनसंघ ने यहां की 36 में से 6 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5.59% वोट शेयर के साथ 2 सीटें जीत लीं। बीच के कई दशक तक सिफर में सफर करने के बाद बीजेपी (BJP) 2019 में उसी राज्य में 40% से ज्यादा वोट शेयर के साथ सभी 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर 18 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की है, तो इसके पीछे उसके ऐसे ही डेडिकेटेड वर्कर्स का रोल है। न्यूज 18 की खबर के मुताबिक इन्हीं लोगों ने अपने 'जन संपर्क' के अनुभव के जरिए संघ के साइलेंट स्वयं सेवकों को मोटिवेट करके पार्टी को यहां तक पहुंचाया है।
अरविंद मेनन
3 अक्टूबर, 2018 के अमित शाह ने नेशनल एग्जिक्युटिव मेंबर अरविंद मेनन (Arvind Menon) को बंगाल में वहां मिशन पर लगे नेताओं के सहयोग के लिए नियुक्त किया। संघ के पूर्व प्रचारक रहे मेनन की बंगाली भाषा पर कमांड और 'मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट' के रूप में उनकी पहचान उनको जिम्मेदारी मिलने का मूल कारण था। खासकर ग्रामीण इलाकों में लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के उनके हुनर ने पार्टी को पश्चिम बंगाल(West Bengal) में अपना जनाधार बढ़ाने में बहुत बड़ा रोल निभाया। लोकसभा चुनाव शुरू होने से पहले ही उन्होंने कहा था, "जनता ममता बनर्जी से बहुत नाराज है, क्योंकि वो उनसे ठगा हुआ महसूस कर रही है। टीएमसी (TMC) की स्थिति बंगाल में सीपीएम से भी खराब हो चुकी है। टीएमसी के गुंडे हमें और मोदी जी एवं अमित शाह जी जैसे हमारे वरिष्ठ नेताओं को भी परेशान और धमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। मैं समझता हूं कि जनता इसका जवाब देगी और बीजेपी बंगाल में बहुत ज्यादा सीटें जीतने जा रही है, जो आपकी कल्पना से भी परे है।" जब पार्टी की ओर से उन्हें दी गई जिम्मेदारी के बार में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, "हम लोग पोस्ट कार्ड की तरह हैं- मेरी पार्टी उसपर जो भी पता लिख देगी, हम वहां पहुंच जाएंगे। मैं अपनी पार्टी का एक सच्चा सिपाही हूं और कैलाश विजयवर्गीय, शिवप्रकाशजी, दिलीप घोष जी और बंगाल की पूरी टीएम एवं हम सभी लोगों की कड़ी मेहनत से, हम इस लोकसभा में एक इतिहास रचने जा रहे हैं।" आज उनकी कही ये बातें पूरी तरह सही साबित हुई है।
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शिवप्रकाश
शिवप्रकाश (ShivPrakash) को मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और उसके साथ पश्चिमी यूपी एवं उत्तराखंड में संगठनात्मक मामलों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वे 2014 में अमित शाह के साथ रहकर काम कर चुके हैं। वर्षों तक जमीनी स्तर पर इनकी लगातार की मेनहत की बदलौत बीजेपी ने बंगाल में 2011 के अपने वोट शेयर 4.1% को 2016 के विधानसभा चुनाव तक बढ़ाकर 11% कर लिया। यह सिलसिला लगातार बढ़ता रहा और 2018 के पंचायत चुनावों में पार्टी ने उसमें और सुधार किया और इसी का नतीजा है कि 2014 में उसका 17.2% वोट शेयर 2019 के लोकसभा चुनाव में 40% को पार कर चुका है। शिवप्रकाश (ShivPrakash)कहते हैं, "बंगाल में परिवर्तन लाना मेरे लिए सबसे बड़ा चैलेंज था, क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी जरूरी हो गया था। 2015 में मुझे बंगाल की जिम्मेदारी मिली थी और तब से मेरा मुख्य काम पार्टी कैडर्स के बीच बेहतर तालमेल बनाने और बंगाली जनता का विश्वास जीतना रहा।" उन्होंने आगे कहा कि, "हम लोग अपने दायित्व में सफल रहे और इसकी सामान्य वजह ये रही कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजेन्स (NCR) के बारे में गलत सूचनाएं फैलाए जाने के बावजूद, बंगाल के लोगों ने उसे समझा और हमारे फैसले का स्वागत किया। इसलिए एनसीआर (NCR) मुद्दे के बावजूद जनता ने खुलकर हमें वोट दिया। " उन्होंने ये बात भी जोड़ी की यह कहना गलत है कि बंगाल में टीएमसी से कोई मुकाबला नहीं कर सकता, यह धारणा सिर्फ 34 साल के लेफ्ट शासन के चलते बन गई है।
सुनील देवधर
बंगाल में साइलेंट वॉरियर बनकर और लो-प्रोफाइल रहकर काम करने वाला तीसरा नाम संघ के पूर्व प्रचारक सुनील देवधर (Sunil Deodhar) का है। इनको संगठन में विचारधारा के प्रति समर्पित शानदार मैनेजमेंट स्किल के लिए जाना जाता है। इनकी सांगठनिक दक्षता ने बंगाल में बीजेपी के आधार को मजबूत बनाने का काम किया है। देवधर पहली बार तब सुर्खियों में आए जब उन्हें 2014 में पीएम मोदी के वाराणसी लोकसभा क्षेत्र को देखने की जिम्मेदारी सौंपी गई। 2018 में त्रिपुरा में बीजेपी की अप्रत्याशित जीत के पीछे भी इनका रोल माना जाता है। त्रिपुरा में कामयाबी मिलने के बाद अमित शाह ने फॉरन उन्हें बंगाल का जिम्मा संभालने को कह दिया। उन्होंने कहा कि, "मेरे लिए बंगाल में सबसे बड़ा चैलेंज संगठन को पटरी पर लाना था, जैसे कि त्रिपुरा में हमनें अपने बेस को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया था। बंगाल में बूथ-लेवल और मंडल-लेवल का काम नदारद था। आखिरकार चुनाव तो बूथ लेवल पर ही लड़ा जाता है। हमनें इस चैलेंज को स्वीकार किया और कुछ महीनों में हमनें इसे पटरी पर लाने की कोशिश की और हमें अच्छी सफलता मिली।" उन्होंने कहा कि मोदी लहर बंगाल में भी मौजूद था और टीएमसी के कुशासन से परेशान होकर बंगाल के लोग यहां बदलाव चाहते थे। जाहिर है कि इन तीनों की सक्रियता जितनी बढ़ती गई, बंगाल की दीदी उतनी परेशान होती रहीं और 23 तारीख को उनकी चिंता जगजाहिर भी हो गई।
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