मनमोहन सिंह सरकार ने 10 साल तक रक्षा क्षेत्र में कुछ नहीं ख़रीदा, निर्मला सीतारमण का ये दावा कितना सही?
निर्मला सीतारमण ने संसद में कहा है कि 2014 से पहले 10 साल में यूपीए शासन के दौरान रक्षा क्षेत्र में ख़रीद नहीं हुई, लेकिन उनका ये दावा कितना मज़बूत है? पूरी सच्चाई क्या है.
भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते सोमवार को संसद में दावा किया है कि साल 2014 से पहले 10 सालों के दरम्यान रक्षा के क्षेत्र में 'शून्य ख़रीद' दर्ज की गई जिससे भारतीय सैन्य बलों ने एक 'असहाय स्थिति' महसूस की.
वित्त मंत्री बनने से पहले निर्मला सीतारमण रक्षा मंत्री थीं. संसद टीवी पर मौजूद उनके 47 मिनट लंबे भाषण और सीतारमण के दफ़्तर की ओर से किए गए ट्वीट में लिखा गया है -
"भारतीय रक्षा क्षेत्र में 10 सालों तक कुछ भी नहीं ख़रीदा गया. 10 साल निकल गए और 10 साल बाद, 2014 के बाद हमें बेहद तेज़ी के साथ पिन से लेकर एयरक्राफ़्ट तक सबकुछ ख़रीदना पड़ा. मैं उन चीज़ों को एक बार फिर दोहरा दूं जिनकी वजह से हमारा रक्षा क्षेत्र हथियार विहीन हो गया. रक्षा क्षेत्र में कुछ भी नहीं किया गया, कुछ भी नहीं ख़रीदा गया. कोई भी चीज़ रातों-रात नहीं हो जाती. पुरानी दिक़्क़तें बनी रहती हैं.
हम इसका सामना करने की कोशिश कर रहे हैं (दूसरे सदस्य को जवाब देते हुए) 10 साल काफ़ी लंबा वक़्त होता है जब कुछ नहीं ख़रीदा गया. और हमें इस चीज को मानना पड़ेगा. दस साल में जो कुछ ख़रीदा जाना था, वो सात साल में ख़रीदा जा रहा है और इसकी सराहना की जानी चाहिए."
उनका भाषण उनकी पार्टी के सहयोगियों दिवंगत रक्षा मंत्री अरुण जेटली और वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के ऑडिट निष्कर्षों और बयानों पर आधारित था, यह दावा करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि ख़रीदारी में कमी का मतलब है कि सेना की स्थिति 'तब बहुत असहाय जैसी' थी
यह दावा कितना सच है?
जो कुछ मंत्री ने कहा उसके विपरीत, रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के रिकॉर्ड को देखने पर पता चलता है कि 10 साल की अवधि में ख़रीद और अधिग्रहण किया गया था. इनमें जहाज़ों, पनडुब्बियों, मिसाइल प्रणालियों और विमानों जैसे अहम अधिग्रहण शामिल थे.
बीबीसी ने रक्षा मंत्रालय के डेटा की समीक्षा की. इसे संसद में अपनी वार्षिक रिपोर्ट के ज़रिए शेयर भी किया (यह रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है).
उस दौरान जो प्रमुख ख़रीदारी की गई वो इस प्रकार है:-
• 2005- अक्तूबर 2005 में ट्रांसफ़र ऑफ़ टेक्नोलॉजी के तहत मुंबई के मझगांव डॉक लिमिटेड (एमडीएल) में स्वदेशी छह फ़्रेंच स्कॉर्पियन क्लास की पनडुब्बियों के निर्माण के कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए. उन छह में पांचवीं पनडुब्बी का समुद्री परीक्षण भी अब शुरू हो गया है और जल्द ही इसके भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल किए जाने के आसार हैं.
• 2006- वायु सेना के लिए 20 स्वनिर्मित हल्के लड़ाकू विमानों (एलसीए) तेजस बनाने को लेकर मार्च 2006 में रक्षा मंत्रालय और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच 2701.7 करोड़ रुपये के एक कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किया गया था.
• 2007- वायु सेना के लिए 40 अतिरिक्त सुखोई-30 जेट एक कॉन्ट्रैक्ट के ज़रिए प्राप्त किए गए, जिस पर रक्षा मंत्रालय और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के हस्ताक्षर थे.
• 2008- भारत ने वायु सेना के लिए छह C130J हरक्यूलिस विमानों की ख़रीद के लिए अमेरिकी सरकार के साथ 'प्रस्ताव और अनुमोदन के पत्र' पर हस्ताक्षर किया. यह 3835.38 करोड़ रुपये का सौदा था.
• 2009- जनवरी में बोइंग इंडस्ट्रीज़ के साथ भारतीय नौसेना ने आठ P-8I लंबी दूरी के समुद्री गश्ती विमानों की ख़रीद के लिए 2.137 बिलियन डॉलर का एक समझौता किया गया. यह भारतीय रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के आधार पर हुआ था.
• 2009- रक्षा मंत्रालय के सालाना रिपोर्ट के डेटा में 2009-10 में भारतीय सेना के लिए ब्रह्मोस मिसाइल के कॉन्ट्रैक्ट का ज़िक्र है.
• 2009- भारतीय वायुसेना में सबसे एडवांस हेलिकॉप्टरों में से एक एमआई17वी5 हेलिकॉप्टर को रूस के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट के बाद शामिल किया गया था, इसका उल्लेख रक्षा मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट 2009-10 में किया गया है.
• रक्षा मंत्रालय की इसी रिपोर्ट में स्वदेशी रक्षा उत्पादन पर कहा गया है कि कैसे इसके अपने सार्वजनिक उपक्रम बीईएल को आकाश मिसाइल के दो स्क्वॉड्रन की वायु सेना को आपूर्ति के लिए (1222 करोड़ रुपये के) ऑर्डर मिले जो कि रक्षा सेवाओं से ऐसी जटिल और इस क़िस्म की सामरिक स्वदेशी हथियार प्रणाली के लिए पहला कॉन्ट्रैक्ट था.
फ़रवरी 2014 में, अपने अंतिम महीने के दौरान, यूपीए सरकार के रक्षा मंत्रालय ने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए ख़र्च की गई पूंजी की जानकारी भारतीय संसद को दी.
इसमें बताया गया कि 2010-11 में जहां इसने 62,056 करोड़ रुपये ख़र्च किए, वहीं 2012-13 में यह ख़र्च बढ़ कर 70,499.12 करोड़ रुपये पर जा पहुंचा.
इससे साबित होता है कि वित्त मंत्री का बार-बार यह दावा करना कि भारतीय सेना के लिए कुछ भी नहीं ख़रीदा गया ग़लत है.
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