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कर्नाटक दोहराने की धौंस देते-देते एमपी भाजपा में कैसे लग गई सेंध

By राजीव ओझा
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नई दिल्ली: धुआं यूं ही नहीं उठता बिना चिंगारी के, हो सकता है आग अपनों ने ही लगाई हो। आग लगाने वाले विपक्ष के भी हो सकते और सत्तापक्ष के भितरघाती भी। कर्नाटक सरकार गिरने के चौबीस घंटे के भीतर ही उसकी आंच मध्य प्रदेश में महसूस की जा रही है। कर्नाटक सरकार गिरने के अगले दिन ही बुधवार को मध्य प्रदेश में बीजेपी के दो विधायकों ने कांग्रेस सरकार के पक्ष में वोट दिया और बीजेपी छोड़ने के संकेत दिए। दोनों विधायक कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए थे। सरकार के पक्ष में वोट करने वाले भाजपा हैं नारायण त्रिपाठी और शरद कौल। कल तक बीजेपी के जो नेता कांग्रेस सरकार को चौबीस घंटे में गिराने की बात कर रहे थे, उनके ही किले में सेंध लग गई। यानी तुम डाल डाल तो हम पात पात की तर्ज पर खेल तो अब शुरू हुआ है।

अपने घर की खबर नहीं चले दूसरों का घर ढहाने

अपने घर की खबर नहीं चले दूसरों का घर ढहाने

कहते हैं न कि जिनके घर शीशे के होते वो दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंका करते। मंगलवार को कर्नाटक सरकार गिरी और बुधवार को ही मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बीजेपी के गोपाल भार्गव ने ताल ठोंक दी। उनका कहना था कि आलाकमान से आदेश मिलते ही कांग्रेस का किला एक दिन में ढहा दिया जायेगा। कांग्रेस पर हमला बोलने वाले दूसरे नेता थे पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान। उनका कहना है कि कर्नाटक की तरह मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार आंतरिक कलह के चलते बहुत दिन नहीं चलने वाली। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पलटवार किया कि भाजपा पहले अपना घर संभाले। किसी भी दिन सरकार गिराने की बात करने वाले देखें कि सदन में क्रिमिनल लॉ बिल पर वोटिंग के दौरान भाजपा के दो विधायकों ने सरकार के पक्ष में वोट किया। यह तो वही बात हुई कि अपने घर की खबर नहीं चलें हैं दूसरों का घर ढहाने। मुख्यमंत्री कमनलाथ ने बीजेपी के गोपाल भार्गव के वार पर भी जबरदस्त पलटवार किया। कमलनाथ ने कहा कि आपकी पार्टी में सबसे ऊपर बैठे दो लोग समझदार हैं इसीलिए वो आदेश नहीं दे रहे। बीजेपी चाहे तो सदन में विश्वास प्रस्ताव लाकर जोर आजमा लें।

मध्य प्रदेश में मामला बराबरी का

मध्य प्रदेश में मामला बराबरी का

मध्य प्रदेश में बीजेपी के प्रांतीय नेता अति उत्साह में पार्टी आलाकमान की किरकिरी करा रहे हैं। दलबदल और इस जुबानी जंग के बीच यह जानना जरूरी है कि क्या मध्य प्रदेश सरकार के हालात कर्नाटक जैसे हैं? यह सच है कि कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार को विपक्षी बीजेपी से मामूली अंतर से बहुमत प्राप्त था। मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस सरकार को बीजेपी से मामूली अंतर से बढ़त प्राप्त है। लेकिन कर्नाटक और मध्य प्रदेश की स्थिति में एक बड़ा अन्तर है। कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को मिलाकर बहुमत था। जेडीएस के पास 37 विधायक थे और कांग्रेस के पास 78, लेकिन मुख्यमंत्री जेडीएस का बना। यानी पहले दिन से ही मुख्यमंत्री कुमारस्वामी पर कांग्रेस का भारी दबाव था। इसके चलते कुमार स्वामी सरकार साल भर के भीतर ही गिरने का अनुमान लगाया जा रहा था। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं इसलिए कर्नाटक जैसा दबाव नहीं है। कर्नाटक में फ्लोर टेस्ट के समय बसपा के एकमात्र विधायक ने मायावती के निर्देश को न मानते हुए अंतिम समय पर दगा दे दिया। हालांकि सदन में उनके उपस्थित रहने पर भी कर्नाटक में जीत-हार में फर्क नहीं पड़ता। मध्य प्रदेश में अभी बीजेपी के दो विधायक बागी हुए हैं। भविष्य में शक्ति परीक्षण पर इसका असर जरूर पड़ेगा। फिलहाल मामला बराबरी का है। क्या पता गुटबाजी के चलते कल कांग्रेस के भी कुछ विधायक बागी हो जाएं। सपा, बसपा और निर्दल विधायकों का कोई भरोसा नहीं कब पलट जाएं। ऐसे में कांग्रेस की तबियत भी खराब हो सकती है।

बीजेपी आलाकमान जल्दबाजी नहीं करेगा

बीजेपी आलाकमान जल्दबाजी नहीं करेगा

मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटें हैं और बहुमत के लिए 116 विधायकों की जरूरत होती है, कांग्रेस के पास अपने 114 विधायक हैं। उसे बहुजन समाज पार्टी के 2, समाजवादी पार्टी के 1 तथा 4 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है। फिलहाल कांग्रेस के पास बहुमत से 5 विधायकों की संख्या अधिक हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी के पास 109 विधायक हैं। सरकार गिराने के लिए उसे 7 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। मध्य प्रदेश के उत्साही बीजेपी नेता भले ही कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश में जोडतोड़ कर सरकार गिराने का सपना देखने लगे हों लेकिन दो विधायकों के बागी होने के बाद आलाकमान जल्दबाजी में ऐसा कोई फैसला लेगा इसकी सम्भावना बहुत कम है। सभी की नजर फिलहाल इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर है। इस साल देश में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं और जम्मू-कश्मीर के बारे में भी चुनाव आयोग फैसला ले सकता है। इसी तरह 2021 में बंगाल में विधान सभा चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी नहीं चाहेगी कि उसके किसी कदम से विरोधियों को जनता के बीच कोई बड़ा मुद्दा उठाने का मौका मिल जाए।

निर्दलियों का चाल-चरित्र एक जैसा

निर्दलियों का चाल-चरित्र एक जैसा

दूसरी तरफ कांग्रेस का दावा किया था कि कमलनाथ की सरकार गिराने के लिए बीजेपी नेताओं को सात जन्म लेने पड़ेंगे। इस दावे को बीजेपी के बागी विधायकों ने मजबूती दी है। दूसरी ओर इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मध्यप्रदेश कांग्रेस में भी आंतरिक कलह है। यह किसी से छिपा नहीं कि मुख्यमंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य में नहीं बनती। 2018 में हुए विधान सभा चुनावों में छत्तीसगढ़ के विपरीत मध्यप्रदेश में बीजेपी ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी थी और कुछ निर्दलियों की मदद से बमुश्किल कांग्रेस की सरकार बन पाई थी। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की कुल 29 सीटों में से 28 सीट पर कब्जा कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। जबकि कांग्रेस केवल एक सीट छिन्दवाड़ा ही जीत पाई। भाजपा ने गुना सीट को कांग्रेस से छीन ली। आखिर बीजेपी को क्यों लगता है कि वो कर्नाटक जैसा कुछ उलट-फेर मध्य प्रदेश में भी कर सकती है। जाहिर है कि निर्दलियों का चरित्र और चाल हर जगह एक जैसा होता। अभी कमलनाथ सरकार 4 निर्दलीय और एसपी-बीएसपी के तीन विधायकों के सहारे सत्ता में टिकी हुई है।

 कल की किसको खबर

कल की किसको खबर

अगर बीजेपी कांग्रेस के विधायकों या फिर निर्दलीय और एसपी-बीएसपी विधायकों को तोड़ने में सफल हुई तो फिर कमलनाथ सरकार भी संकट में आ सकती है। मध्य प्रदेश के मंत्री और कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने कहा कि 'कर्नाटक में जो हुआ वैसा मध्य प्रदेश में नहीं होगा। बीजेपी ने हमारे लिए समस्याएं पैदा करने के लिए सब कुछ किया, मगर यह कमलनाथ की सरकार है, कुमारस्वामी की नहीं। उन्हें इस सरकार में हॉर्स ट्रेडिंग करने के लिए सात जन्म लेने होंगे।' लेकिन जीतू पटवारी को भी समझाना होगा कि अमूमन विधायकों का स्वभाव भी एक जैसा होता और "हॉर्स ट्रेडिंग" का असर हर जगह होता है। यह जानना दिलचस्प है कि विधान सभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत 41 प्रतिशत था जबकि कांग्रेस का 40.9 फिर भी कांग्रेस को अधिक सीटें मिलीं। मध्य प्रदेश में जोड़तोड़ का खेल अभी शुरू हुआ है, देखिये नतीजा कब आता है।

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English summary
madhya pradesh politics 2 bjp mla voted in favour of kamal nath govt
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