मध्य प्रदेश: क्या पिता की हार का बदला ले पाएंगी भाजपा की इकलौती मुस्लिम उम्मीदवार?
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए 28 दिसंबर को मतदान किए जाएंगे। पिछले 15 सालों से प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा एक बार फिर अपनी जीत कायम रखना चाहेगी। वहीं कांग्रेस इस बार सरकार में आने के लिए पूरा जोर लगा ही है।
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भोपाल। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए 28 दिसंबर को मतदान किए जाएंगे। पिछले 15 सालों से प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा एक बार फिर अपनी जीत कायम रखना चाहेगी। वहीं कांग्रेस इस बार सरकार में आने के लिए पूरा जोर लगा ही है। भाजपा बहुमत के साथ मध्य प्रदेश की सरकार चलाती आ रही है, लेकिन प्रदेश की एक सीट ऐसी है जहां जीत को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता और वो है भोपाल उत्तर। मध्य प्रदेश की भोपाल-उत्तर की सीट पर इस बार भाजपा ने कांग्रेस के आरिफ अकील के खिलाफ फातिमा रसूल सिद्दीकी को उतारा है।
भोपाल उत्तर की सीट पर 20 सालों से है कांग्रेस का कब्जा
भोपाल उत्तर की सीट पर इस बार कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। पिछले 20 सालों से इस सीट पर कांग्रेस के आरिफ अकील का कब्जा है। भाजपा ने मुस्लिम बहुल इस सीट पर अपना इकलौता मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। इस बार आरिफ अकील का मुकाबला फातिमा रसूल सिद्दीकी से होगा, जिनके पिता रसूल अहमद सिद्दीकी को अकील ने हराया था। फातिमा अपने पिता की हार का बदला जरूर लेना चाहेंगी।
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आरिफ अकील के खिलाफ भाजपा ने उतारीं फातिमा
रसूल अहमद सिद्दीकी 1980 और 1985 में दो बार कांग्रेस से भोपाल उत्तर के विधायक चुने गए थे। 1992 में आरिफ अकील निर्दलीय इस सीट पर लड़े और जीत दर्ज की। उस चुनाव में सिद्दीकी तीसरे स्थान पर रहे थे। इंडिया टुडे के मुताबिक इस हार से सिद्दीकी कभी उबर नहीं पाए और 1997 में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई। वहीं आरिफ अकील उसके बाद कांग्रेस में शामिल हो गए और तभी से इस सीट पर अपनी जीत दर्ज करते आ रहे हैं।
क्या अकील का विजयरथ रोकेंगी फातिमा?
हालांकि भले ही वो सभी चुनाव जीतते आ रहे हों, लेकिन वो कभी बड़े अंतर से जीत दर्ज नहीं कर पाए हैं। 1998 में वो 16,857 वोट से जीते। 2003 चुनावों में वो केवल 7,708 से जीते थे, वहीं 2008 में केवल 4,026 वोट। 2013 विधानसभा चुनावों में अकील ने 6,664 वोटों से जीत दर्ज की थी। फिर भी इस सीट पर आरिफ अकील को हराना काफी मुश्किल बताया जाता है।
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भाजपा-कांग्रेस, दोनों खेल रहे मुस्लिम कार्ड
अकील 1998 से इस सीट पर जीतते आ रहे हैं। 1977 से इस सीट पर 9 चुनाव हुए हैं, जिसमें से कांग्रेस ने 6 जीते हैं, वहीं भाजपा, जनता पार्टी और निर्दलीय ने एक-एक जीता है। इसलिए भाजपा ने इस सीट पर फातिमा को पार्टी ज्वाइन करने के कुछ घंटों बाद ही उम्मीदवार घोषित कर दिया। फातिमा ने सुबह कांग्रेस छोड़ दिन में भाजपा का दामन थामा और कुछ ही घंटों में पार्टी ने उन्हें भोपाल उत्तर से अकील के खिलाफ उम्मीदवार बना दिया।
'मुख्यमंत्री समाज के सभी वर्गों के लिए करते हैं काम'
भाजपा को उम्मीद है कि कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार के खिलाफ वो भी अपना इकलौता मुस्लिम कार्ड खेलकर वोट अपने पक्ष में कर सकती है। चुनावों पर फातिमा ने कहा, 'मेरे पिता हिंदु-मुस्लिम भाईचारे में यकीन रखते थे और हमेशा ही गंगा-जमुनी तहजीब के लिए खड़े हुए। मैंने देखा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इसी विचारधारा में यकीन रखते हैं। वो धर्म-निर्पेक्ष हैं और समाज के हर वर्ग के लिए काम कर रहे हैं।'
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