रायबरेली: जब चुनावी इतिहास का बन गई थी टर्निंग प्वाइंट, इंदिरा को मिली थी करारी हार
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के अतिविशिष्ट लोकसभा क्षेत्रों में रायबरेली भी एक है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यहाँ से सोनिया गाँधी लगातार पांचवीं बार चुनाव लड़ रहीं हैं। इस लिहाज से अमेठी और वाराणसी की तुलना में रायबरेली की अधिक चर्चा इस बार नहीं हो रही। इस सीट पर सोनिया के लिए मैदान साफ़ है। सोनिया गाँधी से मुकाबले के लिए वैसे तो बीजेपी प्रत्याशी दिनेश सिंह ताल ठोक कर मैदान में हैं लेकिन वास्तव में कांग्रेस के लिए रायबरेली का मुकाबला, अमेठी की तुलना में कहीं आसन है। पूरे उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल बेहद गर्म है पर रायबरेली का पारा सामान्य है।
लोकतंत्र के इतिहास में रायबरेली टर्निंग पॉइंट
जबकि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में रायबरेली एक टर्निंग पॉइंट के रूप में दर्ज है। रायबरेली का नाम आते ही आपातकाल के बाद 1977 का लोकसभा चुनाव याद आ जाता है जब उत्तर प्रदेश से कांग्रेस का सफाया हो गया था। तब रायबरेली में इंदिरा गाँधी, राजनारायण से चुनाव हार गईं थीं। वही रायबरेली, जहाँ देश आजाद होने से लेकर अब तक हुए लोकसभा चुनावों में केवल तीन बार गैरकांग्रेसी उम्मीदवार विजयी रहें है। इससे अंदाज लग जाता है कि रायबरेली कांग्रेस का कितना मजबूत किला है। लेकिन जब सामने कोई मजबूत प्रतिद्वंद्वी न हो तो विशिष्ट होते हुए भी सीट की कोई ख़ास चर्चा नहीं होती।
चुनावी कबड्डी में पाला बदलू दिनेश सिंह
रायबरेली में सोनिया गाँधी के सामने बीजेपी बड़ी चुनौती है, ऐसा नहीं लगता क्योंकि सपा-बसपा गठबंधन ने यहाँ पर अपना कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है। हालांकि रायबरेली में बीजेपी और कांग्रेस चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। रायबरेली में कांग्रेस की जीत के प्रति प्रियंका आश्वस्त हैं। वह तंज कसती हैं कि बीजेपी के दल बदलू प्रत्याशी दिनेश सिंह कभी पैर पड़कर कहते थे कि कांग्रेस नहीं छोड़ूंगा और अब मौका देख कर पाला बदल दिया। दरअसल चुनावी कबड्डी में दिनेश सिंह जो पहले कांग्रेस में थे, अब छटक कर बीजेपी के पाले में पहुँच गए हैं और कांग्रेस को ललकार रहे हैं। दिनेश सिंह पर हमला करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा है कि हारने के बाद वह एक बार फिर से उनके पास आएंगे। प्रियंका गांधी ने असल मुद्दों से निपटने में नाकाम रहने को लेकर भाजपा पर हमला तेज करते हुए कहा कि असल राष्ट्रवाद लोगों और देश से प्रेम करना है जिसका अर्थ है कि उनका सम्मान किया जाए और भाजपा के कामों में ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता।
रायबरेली लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास
रेल कोच फैक्ट्री के बहाने विकास का पाठ
दूसरी ओर बीजेपी काफी पहले से यहाँ कांग्रेस को चुनौती देने की तैयारी में जुट गई थी। दिसम्बर 2018 में यहाँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जनसभा भारी भीड़ जुटी थी। नरेन्द्र मोदी ने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के गढ़ में जनसभा में कांग्रेस पर करारा हमला किया। इस दौरान उन्होंने रेल कोच फैक्ट्री के बहाने कांग्रेस की पिछली सरकार को अक्षम करार दिया और जनता को बताने की कोशिश की कि वास्तव में विकास के मायने क्या होते हैं।
कभी सपा के मंच पर कभी सपेरे के साथ
कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी भी बीजेपी पर पूरी ताकत से प्रहार कर रहीं हैं। कहीं प्रियंका कहती हैं कि कांग्रेस के प्रत्याशी जहां थोड़े कमजोर हैं वहां बीजेपी के खिलाफ वोटकटवा की भूमिका भी निभाएं। कभी प्रियंका सपेरों की बस्ती में पहुंच कर उनके साँपों से बेफिक्री से खेलने लगती हैं। यह भी प्रचार का तरीका है क्योंकि अब यह वीडिओ सोशल मीडिया पर तेजी से घूम रहा है। गुरुवार 2 मई को लोग चौंक गए जब प्रियंका ने प्रचार के दौरान ऊंचाहार में सपा कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग की। इस दौरान ऊंचाहार विधायक मनोज पांडेय भी मौजूद थे। प्रियंका ने सपा कार्यकर्ताओं को संबोधित भी किया और समर्थन की अपील की। गठबंधन ने रायबरेली में भले ही प्रत्याशी न उतारा हो लेकिन मायावती अपनी जनसभाओं में कांग्रेस पर जम कर हमला बोल रहीं हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान जब सपेरों के बीच सांपों से खेलने लगीं प्रियंका, देखें VIDEO
इंदिरा गाँधी ने जीत के बाद छोड़ी सीट
वैसे तो 1977 का लोकसभा चुनाव हारने के तीन साल बाद ही कांग्रेस ने रायबरेली का दुर्ग पुनः जीत लिया था लेकिन तब इंदिरा गाँधी की जगह यहाँ से शीला कौल ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। जनवरी 1980 में हुए सातवीं लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली और मेडक (आंध्र प्रदेश) से जीत दर्ज की। पर उन्होंने रायबरेली से इस्तीफा दे दिया था और जीवन के आखिरी समय तक मेडक लोकसभा सीट का ही प्रतिनिधित्व किया। शीला कौल ने 1980 उपचुनाव में रायबरेली सीट जीती। लेकिन सही मायने में रायबरेली सीट पर गाँधी परिवार की वापसी 1999 में हुई जब यहाँ से सोनिया गाँधी ने जीत हासिल की।
अगर 1980 के लोकसभा चुनावों की बात की जाए तो इंदिरा गांधी ने बड़े धमाकेदार ढंग से वापसी की थी। जनता पार्टी की अंदरूनी लड़ाई और कारगुजारियां ही उसके पतन का कारण बन गयी थीं। अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गयी थी। कांग्रेस ने तब ‘ग़रीबी हटाओ' के नारे को छोड़कर स्थाई सरकार देने के मुद्दे पर चुनाव लड़ा। साथ ही आपातकाल में नसबंदी कार्यक्रम की वजह से नाराज मुसलमानों से संजय गांधी ने माफ़ी मांग उन्हें अपनी ओर मिला लिया। नतीजा सामने था कांग्रेस को भारी 353 सीटों के साथ भारी जीत मिली।
रायबरेली लोकसभा सीट गाँधी परिवार की पहचान
उसके बाद से रायबरेली लोकसभा सीट गाँधी परिवार की पहचान बन गई है। सोनिया गाँधी यहाँ से लगातार चार बार लोकसभा चुनाव जीत चुकीं हैं और इस बार भी मैदान में हैं। भाजपा के लिए रायबरेली सीट फतह करना अत्यंत कठिन है क्योंकि यहाँ की जानता अच्छी तरह से जानती है कि रायबरेली का विशिष्ट दर्जा तभी तक बरकरार रहेगा जब तक इस सीट पर गांधी परिवार का कोई सदस्य यहाँ से चुनाव लड़ता रहेगा। जिस दिन गाँधी परिवार ने रायबरेली सीट को छोड़ा उस दिन यह सीट भी उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से एक रह जाएगी। कांग्रेस भले ही सत्ता में न रहे लेकिन रायबरेली सीट के प्रतिनिधित्व के चलते कोई सरकार इस क्षेत्र के विकास की अनदेखी नहीं कर सकती। 1991 और 96 में नेहरु-गाँधी परिवार की शीला कौल के जाने के बाद उनकी जगह गाँधी परिवार के वफादार सतीश शर्मा ने रायबरेली लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया लेकिन दो साल में ही बीजेपी ने कांग्रेस के इस दुर्ग को भेद दिया। हालाँकि कांग्रेस ने पुनः सीट को हासिल कर लिया। सोनिया गाँधी इस सीट पर 1999 से लगातार काबिज हैं। इसीलिए रायबरेली की जनता नहीं चाहती कि इस विशिष्ट क्षेत्र का दर्जा उनसे कोई छीने।
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