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बिहार: काराकाट और सीवान में माले की भंवर, फंस सकती है महागठबंधन की नैया

By अशोक कुमार शर्मा
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नई दिल्ली। बिहार में भाकपा माले के अलग चुनाव लड़ने से महागठबंधन की दो सीटों का समीकरण बिगड़ता हुआ दिख रहा है। उपेन्द्र कुशवाहा की काराकाट सीट और बाहुबली शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब की सीवान सीट पर बाजी पलट सकती है। रोहतास और सीवान जिले में भाकपा माले का मजबूत जनाधार है। पिछले चुनाव में माले को काराकाट में चार फीसदी से अधिक वोट मिले थे। जब कि सीवान में उसने 10 फीसदी वोट हासिल किये थे। भाकपा माले बिहार में सबसे मजबूत साम्यवादी दल है। नकारे जाने से नाराज माले अब महागठबंधन को अपनी ताकत दिखाना चाहती है। माले को जो भी वोट मिलेगा वह महागठबंधन के वोट में सेंधमारी होगी। माले भी गरीब, दलित और पिछड़ों की ही राजनीति करती है।

भंवर में फंस सकती है कुशवाहा की नैया

भंवर में फंस सकती है कुशवाहा की नैया

पिछले चुनाव में उपेन्द्र कुशवाहा मोदी लहर पर सवार हो कर करीब एक लाख वोटों से जीते थे। अब हालात जुदा हैं। वे महागठबंधन का हिस्सा हैं। इस लिहाज से उन्हें अब कुशवाहा और राजद समर्थक वोटों का ही आसरा है। कुशवाहा जाति के सभी वोट उपेन्द्र को मिल ही जाएंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता। यहां से एनडीए के उम्मीदवार महाबली सिंह भी इसी जाति से आते हैं। जहां तक राजद मतों का सवाल है तो पिछले चुनाव में कांति सिंह को 2 लाख 33 हजार वोट मिले थे। इस लिहाज से उपेन्द्र कुशवाहा को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। 2014 में भाकपा माले के उम्मीदवार राजाराम सिंह को करीब 32 हजार वोट मिले थे। यह आंकड़ा कुल मतों का 4.14 फीसदी था। यानी कुशवाहा को इस चुनाव में वंचित तबके की एक बड़ी आबादी का समर्थन नहीं मिल पाएगा। अगर माले इस सीट से चुनाव नहीं लड़ती तो अधिकतर वोट कुशवाहा को मिल सकते थे। पिछले चुनाव में 10 हजार 185 वोटरों ने नोटा का बटन दबाया था। जब मुकाबला कांटे का हो तो इस तरह का आंकड़ा खेल बिगाड़ सकता है।

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काराकाट में माले की चुनौती

काराकाट में माले की चुनौती

बिहार का रोहतास नक्सल प्रभावित जिला है। काराकाट, रोहतास का हिस्सा है। काराकाट में भाकपा माले की मजबूत पैठ है। 2000 और 2005 में काराकाट विधानसभा क्षेत्र से माले के अरुण सिंह विधायक चुने गये थे। काराकाट लोकसभा क्षेत्र में औरंगाबाद जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें एक ओबरा भी नक्सल प्रभावित इलाका है। ओबरा से भाकपा माले के राजाराम सिंह 1995 और 2000 में विधानसभा चुनाव जीते चुके हैं। वही राजाराम सिंह अब फिर लोकसभा चुनाव में ताल ठोक रहे हैं। पिछले चुनाव में वे हार गये थे। लेकिन बदली हुई परिस्थियों में उनकी चुनौती गंभीर होगी। वे हार कर भी कुशवाहा को जीत से रोक सकते हैं।

सीवान में राजद को परेशानी

सीवान में राजद को परेशानी

भोजपुर, रोहतास के बाद सीवान भी भाकपा माले का प्रभाव वाला जिला है। अभी बिहार विधानसभा में माले के तीन विधायक हैं। इनमें एक सत्यदेव राम सीवान के दरौली से विधायक हैं। राजद के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन फिलहाल तो जेल में बंद हैं लेकिन माले ने उनके खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को 2 लाख 58 हजार वोट मिले थे और वे दूसरे स्थान पर रहीं थीं। भाकपा माले के अमरनाथ यादव को 81 हजार वोट मिले थे और तीसरे स्थान पर रहे थे। माले को कुल मतों का 9.16 फीसदी हिस्सा हासिल हुआ था। अमरनाथ यादव इस बार भी चुनौती पेश कर रहे हैं। पिछले चुनाव में माले ने सत्तारूढ़ जदयू को चौथे स्थान पर धकेल दिया था। जदयू उम्मीदवार मनोज सिंह को 79 हजार वोट मिले थे। 2019 के चुनाव में एक बाऱ फिर माले के खड़ा होने नुकसान राजद का ही होगा। वह इसलिए क्यों कि दोनों के वोट बैंक लगभग मिलते-जुलते हैं। अगर राजद ने माले से समझौता किया होता तो ये सीट महागठबंधन के खाते में जा सकती थी। माले के अलग लड़ने से राजद को करीब दस फीसदी वोटों का नुकसान होता दिख रहा है।

<strong>राजद ने माले को क्यों दी आरा सीट? क्या है डील की असल वजह?</strong>राजद ने माले को क्यों दी आरा सीट? क्या है डील की असल वजह?

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English summary
lok sabha elections 2019 bihar gathbandhan rjd congress face cpi ml
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