राजस्थान के रेगिस्तान में 9 दिन पैदल चलकर पंजाब पहुंचे मजदूरों के 3 परिवार, किसी ने पानी भी नहीं पूछा
नई दिल्ली- मजदूरों की बेबसी की खबरें देश में हर जगह से आ रही है। इस रिपोर्ट में हम जिस खबर के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, उससे इंसानियत शर्मसार हो जाती है। पिछले मार्च में पंजाब से मजदूरों का एक जत्था हरे छोले की कटाई के लिए राजस्थान के जैसलमेर गया था। जत्थे में गर्भवती महिलाएं और मासूम बच्चे भी शामिल थे। राजस्थान में लॉकडाउन के कड़े नियमों के चलते वे लोग बेबस होकर रेगिस्तान के रास्ते पंजाब की लौट पड़े। उन्हें लगभग 600 किलोमीटर की दूरी तय करने में करीब 9 दिन लगे। आसमान आग उगल रही थी, लेकिन ये लोग रेत पर चलते जा रहे थे। अब जब 21 लोगों का ये जत्था क्वारंटीन से निकला है, तब अपनी आपबीती बता रहा है। उन्हें 9 दिनों में रास्ते में किसी ने पानी तक के लिए नहीं पूछा। यहां तक कि पेड़ की छावं में बैठने से भी रोक दिया।
तपती जमीन और 600 किलोमीटर से लंबा सफर
पंजाब के मुक्तसर जिले के रहने वाले तीन परिवारों ने रविवार को 21 दिनों का होम क्वारंटीन पूरा किया है। इन परिवारों में कुल 21 लोग शामिल थे, जो पिछले महीने की 25 तारीख को 9 दिन पैदल चलकर राजस्थान के जैसलमेर जिले से अपने घर वापस लौटे हैं। इन लोगों ने जो अपनी 9 दिनों की पीड़ादायक पैदल यात्री मीडिया से बयां की है, वह किसी को भी हिलाकर रख सकता है। ये लोग हर साल की तरह इस बार भी हरे छोले की कटाई के लिए मार्च में मुक्तसर के अपने गांव से जैसलमेर के सुथार मंडी गए थे। लेकिन, वहां काम शुरू हो पाता कि लॉकडाउन में फंस गए। मजदूरों के जत्थे में दो गर्भवती महिलाएं और छोटे-छोटे मासूम बच्चे भी थे। पहला लॉकडाउन तो किसी तरह से जैसलमेर में ही गुजारा लेकिन, दूसरा लॉकडाउन शुरू होते ही कर्फ्यूग्रस्त राजस्थान में पुलिस से बचते-बचाते रेगिस्तानी रेतीली रास्तों से अपने गांव की ओर निकल पड़े। इनकी पैदल यात्रा 16 अप्रैल को शुरू हुई और 25 अप्रैल को अपने गांव पहुंचे।
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मजदूरों को पानी तक नहीं पीने दिया
600 किलोमीटर की दूरी पार करना था और आसमान से आग बरसनी शुरू हो चुकी थी। बावजूद इसके इन्हें पुलिस से बचने के लिए रेगिस्तानी रास्तों को ही चुनना पड़ा। क्योंकि, राजस्थान शुरू से ही बहुत ही कठोर कर्फ्यू का पालन कर रहा है। 9 दिनों की उस कभी न भूलने वाली यात्रा के बारे में 21 वर्षीय सुखदेव सिंह कहते हैं, '16 अप्रैल को जब हम निकले तो कर्फ्यू का कड़ाई से पालन हो रहा था। मेन रोड पर पुलिस से बचने के लिए हम रेगिस्तान की रेतीली जमीन पर चलने लगे। सुथार मंडी से हमारे गांव की दूरी करीब 602 किलोमीटर है, लेकिन मुझे लगता है कि हम लोगों को और ज्यादा चलना पड़ा। रास्ते में किसी ने हमारी मदद नहीं की। यहां तक कि सिंचाई के लिए बने चैनल तक से भी किसी ने हमें पानी नहीं पीने दिया। अगर गांव वाले हमें देख लेते तो साफ कह देते थे कि हम उनके पानी को संक्रमित कर देंगे।'
दो गर्भवती महिलाएं और दो मासूम बच्चे भी थे शामिल
गर्भवती पत्नी नसीब कौर और 6 साल की बच्ची को साथ लेकर चले गुरुदेव सिंह कहते हैं, 'अगर हम किसी पेड़ की छांव में भी थोड़ा आराम करना चाहते थे तो हमें किसी गांव में घुसने नहीं दिया गया।' नसीब की तरह वीरपाल कौर भी मजदूरों के जत्थे में शामिल थी, जो पहली बार मां बनने वाली हैं। ग्रुप में एक परिवार के पास 3 साल की बच्ची थी। सुखदेव ने कहा कि 'रास्ते में हमनें देखा कि कई और पंजाबी पैदल लौट रहे हैं। हम ने पानी की कमी के चलते एक आदमी को गिरकर मरते हुए भी देखा। हमें पता नहीं कि वो शव को लेकर कैसे अपने गांव लौटे होंगे।'
किसी को मासूमों पर भी तरस नहीं आया
9 दिन की रेतीली सफर में जिंदा रहने के लिए इन मजदूर परिवारों के पास सिर्फ वही सहारा था, जो वे लोग अपने साथ लेकर चले थे। उनके पास गेहूं का आटा, गुड़, चना और दूध का पावडर था। सुखदेव ने बताया कि 'रास्ते में जो सूखी झाड़ियां मिल जाती थीं, उसे ही उठा लेते थे, जिसपर हम रोटियां सेंक लेते थे। दूध के पावडर से हम बच्चों को दूध पिलाते और चाय बनाते थे। हमें इस बात की पीड़ा है कि हमारे साथ बच्चे थे, लेकिन फिर भी पूरे रास्ते किसी ने हमारी मदद नहीं की।' अब इन परिवारों का 21 दिनों का क्वारंटीन पूरी हो चुका है और अब यह गांव में खेती से जुड़े कुछ रोजगार की उम्मीद कर रहे हैं। जिस गांव से ये मजदूर हैं, वहीं के पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल भी हैं। उनके भाई और कांग्रेस नेता जयजीत सिंह जोहाल ने भी मजदूरों की हालत पर बहुत ही खेद जताया है और खुद से और पंजाब सरकार की ओर से भी उनकी मदद का भरोसा दिलाया है। (तस्वीरें प्रतीकात्मक)
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