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ज्ञानवापी विवाद के बीच जमीयत उलमा-ए-हिंद ने SC ने दाखिल की याचिका, जानिए क्या की गई मांग ?

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नई दिल्ली, 07 जून: काशी के ज्ञानवापी मस्जिद मामले में जारी विवाद के बीच जमीयत उलमा-ए-हिंद ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है। इस याचिका में आग्रह किया गया कि वह 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार न करे। संगठन ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका में खुद को भी एक पक्ष बनने के मांग की है।

Jamiat Ulema e Hind moves Supreme court against pleas challenging Places of Worship Act

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने क्या दिया तर्क ?

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, "कई मस्जिदों की एक लिस्ट है, जो सोशल मीडिया पर वायरल है। आरोप है कि मस्जिदों को कथित रूप से हिंदू मंदिरों को नष्ट करके बनाया गया था। कहने की जरूरत नहीं है कि अगर वर्तमान याचिका पर विचार किया जाता है, तो यह अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमेबाजी के द्वार खोल देगा। देश में और अयोध्या विवाद के बाद जिस धार्मिक विभाजन से देश उबर रहा है, उसे केवल और बढ़ा दिया जाएगा।''

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अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती

बता दें, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए 1991 के अधिनियम के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी गई थी, जिसने 15 अगस्त, 1947 को प्रचलित पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने या इसके चरित्र में बदलाव की मांग करने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगा दी थी। मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। हाल ही में, अधिनियम की कुछ धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसमें कहा गया है कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। जमीयत उलमा-ए-हिंद का तर्क है कि अधिनियम आंतरिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के दायित्वों से संबंधित था और सभी धर्मों की समानता के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

English summary
Jamiat Ulema e Hind moves Supreme court against pleas challenging Places of Worship Act
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