अनिल देशमुख की सीबीआई जाँच से उद्धव ठाकरे सरकार पर मंडराता ख़तरा?
सीबीआई जाँच के आदेश के बाद अनिल देशमुख ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सीबीआई जाँच से उद्धव सरकार ख़तरे में आ गई है?
मुंबई हाईकोर्ट ने राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख के ख़िलाफ़ मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के आरोपों की जाँच सीबीआई से कराने के आदेश दिए हैं.
इस जाँच के आदेश के बाद अनिल देशमुख ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सीबीआई जाँच से उद्धव सरकार ख़तरे में आ गई है?
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने आरोप लगाया है कि गृह मंत्री अनिल देशमुख प्रत्येक महीने 100 करोड़ रूपये जुटाने की माँग की थी. अनिल देशमुख ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भेजे अपने इस्तीफ़े में कहा है कि सीबीआई द्वारा मामले की जाँच को देखते हुए उनका पद पर बने रहना नैतिक रूप से सही नहीं होगा.
लगातार दो महीनों में दो मंत्रियों के इस्तीफ़े- पहले वन मंत्री संजय राठौड़ और फिर गृह मंत्री अनिल देशमुख के इस्तीफ़े- से उद्धव ठाकरे के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग रहे हैं.
सचिन वाझे मामले में अब एक ओर नेशनल इंविस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) जाँच कर रही है तो दूसरी ओर अनिल देशमुख पर लगे आरोपों की जाँच सीबीआई करेगी. यहां यह ध्यान देने की बात है कि ये दोनों एजेंसियां केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करती हैं, यही वजह है कि उद्धव ठाकरे सरकार के अस्तित्व को लेकर सवाल उठ रहे हैं. उद्धव ठाकरे सरकार के लिए आने वाले दिनों में चुनौती बढ़ेगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.
'कुछ और नाम आएंगे'
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि इस मामले में कुछ और नाम सामने आएंगे. उन्होंने कहा, "किसी पुलिस अधिकारी के लिए बिना राजनीतिक संरक्षण के ऐसा करना संभव नहीं है. सचिन वाझे एक छोटा आदमी है. उसको ऑपरेट करने वाले, हैंडल करने वाले सरकार में बैठे हैं."
फडणवीस ने अनिल देशमुख के इस्तीफ़े के बाद मुख्यमंत्री पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा, "काफ़ी देरी से इस्तीफ़ा आया है. अनिल देशमुख को गृह मंत्री के पद से आरोप लगने के बाद ही इस्तीफ़ा देना चाहिए था. इतनी बड़ी घटना पर अब तक मुख्यमंत्री चुप क्यों हैं? मुख्यमंत्री को जवाब देना चाहिए."
विश्लेषकों का मानना है कि मामला सचिन वाझे तक सीमित रहता है या इसके घेरे में और भी लोग आते हैं- इस पर काफ़ी कुछ निर्भर करेगा.
वरिष्ठ पत्रकार विजय चोरमारे ने कहा, "सचिन वाझे कहां तक जाएंगे, इसको लेकर संदेह बना हुआ है. मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह भी मुश्किल में हैं, लेकिन उन्होंने अनिल देशमुख पर सीधा आरोप लगाया है. सीबीआई पैसा उगाही के मामले में और भी खुलासे कर सकती है."
केंद्रीय जाँच एजेंसियों के चलते मुश्किलें बढ़ेंगी?
महाराष्ट्र में जब से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी है, या कहें, 2019 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के बाद से राज्य के ज़्यादातर मामलों की जाँच केंद्रीय एजेंसियां कर रही हैं. बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में भी विपक्ष ने कई आरोप लगाए थे, जिसके बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया था. तब राज्य सरकार ने कहा था कि अगर सीबीआई राज्य में किसी मामले की जाँच करेगी तो उसे राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी. हालांकि परमबीर सिंह मामले में सीबीआई हाईकोर्ट के आदेश के तहत जाँच करेगी.
ऐसी चर्चा है कि कुछ दिन पहले शरद पवार की गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात हुई है. हालांकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने मुलाक़ात की ख़बरों का खंडन किया है. विपक्षी दल लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि मोदी सरकार विपक्षी दलों को दबाने के लिए सीबीआई, एनआईए और ईडी जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल दूसरे राज्यों में भी कर रही है.
राजनीतिक विश्लेषक सुनील चौके ने बीबीसी मराठी से बताया, "काफ़ी कुछ सीबीआई की जाँच पर निर्भर करेगा, देखना होगा कि उसमें क्या निकलता है."
हालांकि इससे पहले राज्य के कई मामलों में सीबीआई पुख़्ता सबूत नहीं जुटा सकी. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में भी विपक्ष के आरोपों और सीबीआई की जाँच में काफ़ी असमानताएं थीं.
राजनीतिक विश्लेषक रविंद्र अंबेकर के मुताबिक़ इस मामले में सीबीआई के प्रवेश से राजनेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. उन्होंने कहा, "अदालत के आदेश से जाँच परमबीर सिंह की नहीं, बल्कि अनिल देशमुख की भूमिका की होगी. यही वजह है कि जाँच के घेरे में कुछ और राजनेता और मंत्री आ सकते हैं."
रविंद्र अंबेकर ने बताया, "अगर सीबीआई गठबंधन के शक्तिशाली मंत्री रहे देशमुख पर शिकंजा कसना चाहेगी तो वह परमबीर सिंह के आरोपों के आधार पर आगे जाँच करेगी. इसलिए इस मामले में अभी काफ़ी राजनीतिक ड्रामा होना है."
हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अनिल देशमुख के ख़िलाफ़ उगाही के सबूत जुटाने बेहद मुश्किल होंगे. इसकी वजह बताते हुए रविंद्र अंबेकर कहते हैं, "गृह मंत्रालय राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास ही है, ऐसे में कौन सामने आकर कहेगा कि मैंने पूर्व गृहमंत्री को पैसा दिया था. मेरे ख़्याल से सबूत जुटाने में मुश्किल होगी."
सीबीआई की जाँच की दिशा क्या होगी?
कुछ दिन पहले परमबीर सिंह को सचिन वाझे मामले में मुंबई पुलिस कमिश्नर पद से हटाया गया. इसके बाद परमबीर सिंह ने पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख पर प्रति महीने 100 करोड़ रुपये जुटाने के आदेश के बारे में बताते हुए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को 20 मार्च, 2021 को चिट्ठी लिखी.
इसी आरोप की जाँच अब सीबीआई करेगी. यह बेहद हाई प्रोफ़ाइल मामला बन गया है, पूर्व पुलिस कमिश्नर ने पूर्व गृह मंत्री पर आरोप लगाया है. इसके चलते सीबीआई पुलिस अधिकारी, सचिव स्तर के प्रशासनिक अधिकारी, मंत्री और नेताओं से पूछताछ कर सकती है. वकील असीम सारोदे ने बताते हैं, "सीबीआई के पास किसी से भी पूछताछ करने का अधिकार है. सचिव स्तर के अधिकारी और मंत्री की गिरफ़्तारी के लिए सीबीआई को मुख्यमंत्री से अनुमति लेनी होगी."
सीबीआई को अपनी जाँच में यह देखना होगा कि परमबीर सिंह ने अपने दावे में जो कहा है उसमें सच्चाई कितनी है.
यह भी दावा किया जा रहा है कि पुलिस अधिकारी और मंत्रियों के बीच में इस मामले को लेकर व्हाट्सऐप चैट भी है, ऐसी स्थिति में सीबीआई डेटा ज़ब्त करके मामले की जाँच करेगी. असीम सारोदे ने बताया, "अदालत में व्हाट्सऐप चैट सेकेंडरी सबूत ही होगा. अगर कोई ठोस सबूत मिलता है तो उसके साथ चैट्स को दिखाया जा सकता है. अगर मोबाइल फ़ोन नष्ट भी कर दिया गया तो भी चैट को साबित किया जा सकता है."
सरकार की छवि को कितना ख़तरा?
दो महीने में उद्धव ठाकरे सरकार के दो मंत्रियों का इस्तीफ़ा हो चुका है. किसी भी सरकार के लिए दो मंत्रियों का इस्तीफ़ा शर्मनाक स्थिति होती है. कोरोना संक्रमण की स्थिति, सुशांत सिंह राजपूत मामले, धनंजय मुंडे पर यौन उत्पीड़न के आरोप, पूजा चाह्वाण की मौत, सचिन वाझे की गिरफ़्तारी और परमबीर सिंह के गंभीर आरोपों के चलते विपक्ष ने सरकार के बॉयकॉट करने का फ़ैसला लिया है. इन सबसे सरकार की छवि प्रभावित हो रही है लेकिन क्या इससे लोगों के मन में सरकार विरोधी छवि बन पाएगी?
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार विजय चोरमारे ने बताया, "सरकार की छवि पर असर पड़ सकता है. विपक्ष के पास और भी मामले हो सकते हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में दूसरे मंत्रियों के नाम भी आ सकते हैं. ऐसे में सरकार की साख ख़राब होगी. ऐसी स्थिति में आम लोगों के बीच यह छवि बन सकती है कि ये एक भ्रष्ट सरकार है. सरकार की छवि धूमिल होगी. ऐसी किसी स्थिति में अगर राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो विपक्ष को फ़ायदा होगा.