Maharashtra government formation: क्या राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा है महाराष्ट्र ?
नई दिल्ली- महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर सियासी सीन अभी तक साफ नहीं है। बीजेपी और शिवसेना, जिन्हें चुनावों में सरकार बनाने का मैनडेट मिला है, वह परिणाम आने के लगभग दो हफ्ते बाद भी सरकार गठन को लेकर कोई सहमति नहीं बना पाए हैं। दूसरी ओर जिन विपक्षी दलों के समर्थन के भरोसे शिवसेना नेता उछल रहे हैं, वे भी इतनी जल्दी जनादेश के विपरीत जाकर कोई तिरड़म करते नजर आने के जोखिम से बच रहे हैं। जबकि, मौजूदा विधानसभा की मियाद खत्म होती जा रही है। समय घंटों में निकलता जा रहा है। ऐसे में 9 नवंबर से पहले नई सरकार के गठन की संभावना धूमिल पड़ती जा रही है।
अभी जनादेश के खिलाफ जाने से पीछे हटे पवार!
कई दिनों से शिवसेना नेताओं के साथ बातचीत करके एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने अटकलबाजियों को खूब मौका दिया। उनकी पार्टी की ओर से महाराष्ट्र में शिवसेना को समर्थन देने या मिलकर सरकार बनाने को लेकर कई परस्पर विरोधी बयान आए। पवार साहब इस मामले पर दिल्ली जाकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मिल आए थे। लेकिन, बुधवार को शिवसेना नेता संजय राउत से मुलाकात और पार्टी सुप्रीमो उद्धव ठाकरे से फोन पर बात करने के बाद उन्होंने शिवसेना को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने या उसके साथ मिलकर सरकार बनाने की संभावनाओं पर पूरी तरह से विराम लगा दिया। उन्होंने दो टूक कह दिया कि उनकी पार्टी एक 'जिम्मेदार विपक्ष' की भूमिका निभाएगी। पवार ने कहा, "जनता का मैनडेट भाजपा और शिवसेना की सरकार के गठन के लिए है। दोनों पार्टियां का पिछले 20-25 वर्षों से गठबंधन है। हमें विश्वास है कि अगले दो या तीन दिन में वे सरकार बनाने में कामयाब हो जाएंगे।"
जिन्हें जनादेश मिला, वे नहीं हो पा रहे तैयार
288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी-शिवसेना के पास पर्याप्त बहुमत है। बीजेपी के पास 105 और शिवसेना के पास 56 विधायक हैं। लेकिन, दिक्कत ये है कि शिवसेना 'ये दिल मांगे मोर' वाले मोड से बाहर नहीं निकल पा रही है और भाजपा इस गुमान में बैठी है कि उद्धव की पार्टी के पास गठबंधन में बने रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि शिवसेना की ओर से सरकार बनाने के संबंध में कोई प्रस्ताव नहीं मिल रहा है। वह सिर्फ इतना कहकर निश्चिंत बैठी है कि सरकार हमारी ही बनेगी और सहयोगी से बातचीत के लिए हमारे दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं। बीजेपी को लगता है कि शिवसेना के नेता चाहे जितनी भी उछल-कूद करें, उनकी विचारधारा कांग्रेस-एनसीपी के साथ आया राम-गया राम वाली ही होकर रहने वाली है। लिहाजा, न तो शिवसेना बयानबाजी के सिवा अबतक कोई ठोस कदम उठा पा रही है और न ही बीजेपी के नेता ही अपने सहयोगी को ही मना पाए हैं। इसलिए, राज्य में जनता के स्पष्ट फैसले के बावजूद उसका सम्मान नहीं हो पा रहा है।
175 विधायकों के समर्थन का दावा कर राउत डाल रहे हथियार
कल तक भाजपा विधायकों के बगैर पार्टी के पक्ष में 175 विधायकों का समर्थन करने वाले शिवसेना नेता संजय राउत अब राष्ट्रपति शासन की आशंका जताने लगे हैं। बुधवार को उन्होंने कहा कि अगर राज्य में किसी की सरकार नहीं बनने पर राष्ट्रपति शासन लगता है तो उसके लिए उनकी पार्टी जिम्मेदार नहीं होगी। उनको ये भी लगता है कि अगर राष्ट्रपति शासन की नौबत आ गई तो यह जनादेश का अपमान होगा। उनके मुताबिक, "अगर बिना कारण के कोई राज्य में राष्ट्रपति शासन लगवाने की साजिशें रच रहा है तो यह जनता के मैनडेट का अपमान होगा। राज्य में राष्ट्रपति शासन के लिए हम जिम्मेदार नहीं होंगे।" अब ये बात अलग है कि जनादेश का अपमान कौन कर रहा है, लेकिन ये सवाल तो उठता है कि अगर उनके पास 175 विधायक मौजूद हैं तो राष्ट्रपति शासन की स्थिति पैदा ही क्यों होने दे रहे हैं?
राष्ट्रपति शासन के रूप में भाजपा के पास होगा अंतिम हथियार
दरअसल, मौजूदा महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 9 नवंबर को पूरा हो रहा है। यानि, इस तारीख से पहले नई विधानसभा का गठन नहीं हो पाया तो राज्य में संवैधानिक गतिरोध की स्थिति पैदा हो सकती है। इसके लिए कम से कम 8 तारीख तक नई सरकार का बनना जरूरी है। अगर मौजूदा सियासी गतिरोध की वजह से ये मुमकिन नहीं हुआ तो राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। भाजपा नेता और मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने शिवसेना पर दबाव बनाने के लिए कुछ दिन पहले इस तरह का बयान भी दिया था। मतलब, साफ है कि अब इस संवैधानिक औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए जितना वक्त बच गया है, उसमें नई सरकार बनने की उम्मीद फीकी पड़ चुकी है। अगर अगले दो दिनों में भी बीजेपी और शिवसेना अपने स्टैंड से टस से मस नहीं हुए तो महाराष्ट्र में फिलहाल राष्ट्रपति शासन लगना तय लग रहा है।