सियासी घमासान के बीच फ्रांस में वायुसेना कर रही है राफेल विमान का परीक्षण
नई दिल्ली। फ्रांस की मशहूर राफेल लड़ाकू विमान को लेकर देश के सियासत में खासी बयानबाजियां हो रही हैं। एक तरफ कांग्रेस इस विमान की खरीदारी को लेकर केंद्र सरकार पर हमले कर रही है तो दूसरी ओर भारतीय वायुसेना के शीर्ष अधिकारी विदेशी आसमान में राफेल विमान की टेस्टिंग कर रहे हैं। आपको बता दें कि, बीते गुरुवार को भारतीय वायुसेना के डेप्युटी एयर मार्शल रघुनाथ नंबियार ने फ्रांस के इसट्रेस एयर बेस से राफेल विमान उड़ाकर इसकी टेस्टिंग की। ये परीक्षण'टेस्टबेड' के रूप में उपयोग होने वाले 17 साल पुराने राफेल विमान के साथ किया गया। इस राफेल विमान में 14 तरह ऐसे उपकरणों को भी शामिल किया गया था जिनका निर्माण भारत में किया गया है। नंबियार ने इस परीक्षण के दौरान तकरीबन 80 मिनट की उड़ान भरी।
बताते चलें कि, बीते सितंबर 2016 को राफेल विमानों के लिए 59,000 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट किया गया था। भारतीय वायुसेना की 6 सदस्यीय टीम इस समय फ्रांस में है और डासॉल्ट मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट का दौरा कर रही है। इसी यूनिट में भारत के लिए राफेल विमान तैयार किया जा रहा है। इस डील के तहत अगले 67 महीनों में फ्रांस 36 राफेल विमान भारत को देगा जिसकी शुरुआत अगले साल सितंबर से हो जायेगी। बाकी विमानों को पहली डिलीवरी के अगले 30 महीनों में देना है।
गौरतलब हो कि, रघुनाथ नंबियार ने हाल ही के दिनों में राफेल सौदे पर कहा था कि, भारत को आकाश में अभूतपूर्व क्षमता और गजब की ताकत मिलने वाली है। प्राप्त जानकारी के अनुसार नवंबर 2019 से अप्रैल 2022 के बीच राफेल को हासीमारा (पश्चिम बंगाल) और अंबाला (हरियाणा) एयरबेस में शामिल करने की योजना है। इन राफेल विमानों के अलावा परमाणु हथियार और 14 अन्य अपग्रेडों को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा 12,780 करोड़ रुपये की लागत से इसमें रडार, इजराइली हेल्मेट वाला डिस्प्ले, लो बैंड जैमर, ठंडे इलाकों में स्टार्ट होने के लिए इंजन की क्षमता जैसे अपग्रेड भी किए जाने हैं।
इस समय पड़ोसी मुल्कों चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के जो हालात हैं उनको देखते हुए देश की सुरक्षा व्यवस्था का चाक चौबंद होना बेहद ही जरूरी है। वहीं भारतीय वायुसेना आसमान में अपने परों को और भी मजबूत बनाने में जुटी है और राफेल सौदा इस कोशिश की सबसे मजबूतज कड़ियो में से एक है। भारत के पास इस समय 31 फाइटर स्क्वाड्रन हैं और रक्षा विशेषज्ञों की माने तो वायुसेना को और 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है। लेकिन जहां देश की सेना खुद को मजबूत करने में व्यस्त है वहीं कांग्रेस इस पूरे सौदे को ही अपारदर्शी घोषित कर रही है। कांग्रेस का कहना है कि इस सौदे में जरूरत से ज्यादा खर्च किया गया है। वहीं केंद्र सरकार ने इस आरोप को सीरे से खारीज कर दिया है। सरकार का कहना है कि इस डील में किसी भी तरह की कोई खामी नहीं है और इसमें किसी भी नियम का कोई उलंघन नहीं किया गया है।