ऐसे कैसे भारत बनेगा कैशलेस, जब हर चीज में मांगा जाएगा टैक्स
भारत को कैशलेस इकोनॉमी बनाने का जो सपना पीएम मोदी ने देखा है, वह शायद साकार न हो सके। दिल्ली के एक आम आदमी की आप बीती सुनकर कुछ ऐसा ही लगता है।
नई दिल्ली। पीएम मोदी ने नोटबंदी की घोषणा करने के बाद लोगों से कैशलेस ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने की मांग की थी। पीएम ने लोगों को कैशलेस ट्रांजैक्शन करने को तो कह दिया, लेकिन ये नहीं बताया कि हर बार ऐसी ट्रांजैक्शन करने पर आपको कुछ अतिरिक्त पैसे टैक्स के तौर पर चुकाने होंगे। दिल्ली मेट्रो में आने जाने वाले लोगों को भी इस टैक्स की मार झेलनी पड़ रही है। यूं तो लोग कैश देकर अपना मेट्रो कार्ड रिचार्ज करा लिया करते थे, लेकिन अब जब वह अपने डेबिट या क्रेडिट कार्ड के जरिए अपने मेट्रो कार्ड को रिचार्ज करते हैं तो उन्हें कुछ टैक्स देना पड़ रहा है।
ऐसे
में
एक
सवाल
यह
खड़ा
हो
रहा
है
कि
आखिर
नोटबंदी
किस
कालेधन
पर
रोक
लगाने
के
लिए
की
गई
थी।
वो
कालाधन
जो
अमीरों
के
पास
है
या
फिर
वो
पैसे
जो
आम
जनता
अपनी
रोजमर्रा
की
जरूरतें
पूरी
करने
के
लिए
खर्च
कर
रही
है।
नोटबंदी
के
फैसले
से
उन
लोगों
को
भले
ही
कोई
नुकसान
हुआ
हो
या
न
हुआ
हो
जिनके
पास
करोड़ों
रुपयों
का
कालाधन
है,
लेकिन
आम
आदमी
की
जरूरत
अब
पहले
से
महंगी
हो
गई
है।
जो
लोग
पीएम
मोदी
की
बात
मानकर
कैशलेस
ट्रांजैक्शन
की
ओर
बढ़
रहे
हैं
उन्हें
या
तो
अपनी
जरूरत
की
चीजों
के
लिए
अधिक
खर्च
करना
पड़
रहा
है
या
फिर
अपनी
जरूरतें
ही
कम
करनी
पड़
रही
हैं,
क्योंकि
अप्रत्यक्ष
रूप
से
अब
वह
चीज
महंगी
हो
चुकी
है।
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पर
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पर!
कुछ
ऐसा
ही
हाल
है
दिल्ली
में
रहने
वाले
एक
शख्स
सचिन
लखनवी
का।
इन्होंने
गुरुवार
की
शाम
को
मेट्रो
कार्ड
को
500
रुपए
से
रिचार्ज
कराया
था।
और
दिन
इस
रिचार्ज
के
लिए
उन्हें
500
रुपए
ही
देने
पड़ते
थे,
लेकिन
इस
बार
उन्होंने
पीएम
मोदी
के
कैशलेस
इकोनॉमी
के
सपने
में
सहयोग
करने
की
सोची
और
अपने
डेबिट
कार्ड
से
भुगतान
किया।
जब
उन्हें
रसीद
मिली
तो
वह
यह
देखकर
चौंक
गए
कि
आखिर
504
रुपए
क्यों
काटे
गए
हैं,
जबकि
उन्होंने
रिचार्ज
तो
500
रुपए
का
ही
कराया
था।
पूछने
पर
पता
चला
कि
ये
टैक्स
है
जो
हर
उस
शख्स
को
देना
होगा
जो
कार्ड
से
भुगतान
करेगा।
उन्होंने
फेसबुक
पर
उस
रसीद
की
एक
तस्वीर
पोस्ट
करते
हुए
सरकार
से
एक
अपील
भी
की
है।
उन्होंने
लिखा
है-
'पूरी
सैलरी
पर
50
फीसदी
टैक्स
ले
लो...
बस
सोशल
सिक्योरिटी
दे
दो...
डायरेक्ट
और
इनडायरेक्ट
टैक्स
बंद
करो'
भले
ही
4
रुपए
छोटी
रकम
है,
लेकिन
हर
जरूरत
में
कार्ड
का
इस्तेमाल
करने
पर
4-4
रुपए
मिलकर
काफी
बड़ी
रकम
बन
जाएंगे,
जो
एक
आम
आदमी
के
बजट
को
बिगाड़
देंगे।
ऐसे
में
बड़ा
सवाल
ये
उठता
है
कि
आखिर
कोई
कैशलेस
इकोनॉमी
को
बढ़ावा
क्यों
दे,
जबकि
उसे
पता
है
कि
इसका
भार
उसी
की
जेब
पर
पड़ेगा।
इस
तरह
से
कैशलेस
इकोनॉमी
का
सपना
देखना
भी
बेकार
साबित
होता
दिख
रहा
है।
इस
तरह
के
टैक्स
से
बचने
के
लिए
हर
शख्स
अपनी
जरूरतों
के
लिए
कार्ड
के
बजाए
कैश
का
इस्तेमाल
करना
पसंद
करेगा
और
कैशलेस
इकोनॉमी
एक
सपना
ही
बनकर
रह
जाएगा।