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पंजाब के किसान हरजीत सिंह सज्जन कैसे बन गए कनाडा के रक्षा मंत्री

पैंतालीस साल के हरजीत सज्जन कनाडा के 42वें रक्षा मंत्री हैं. इस ओहदे तक उनका सफ़र होशियारपुर ज़िले के गांव बंबेली के खेतीहर परिवार से वैंकुवर की खेत मज़दूरी से होता हुआ पुलिस की नौकरी और नैटो फ़ौज की मुहिमों से निकलकर मुकम्मल हुआ है.लिबरल पार्टी की टिकट पर दक्षिणी वैंकुवर से जीतकर वह जस्टिन ट्रूडो की सरकार में रक्षा मंत्री बने हैं.

By BBC News हिन्दी
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हरजीत सज्जन
NARINDER NANU/AFP/GETTY IMAGES
हरजीत सज्जन

पैंतालीस साल के हरजीत सज्जन कनाडा के 42वें रक्षा मंत्री हैं. इस ओहदे तक उनका सफ़र होशियारपुर ज़िले के गांव बंबेली के खेतीहर परिवार से वैंकुवर की खेत मज़दूरी से होता हुआ पुलिस की नौकरी और नैटो फ़ौज की मुहिमों से निकलकर मुकम्मल हुआ है.

लिबरल पार्टी की टिकट पर दक्षिणी वैंकुवर से जीतकर वह जस्टिन ट्रूडो की सरकार में रक्षा मंत्री बने हैं.

बंबेली में नंगे पांव वाले बचपन की यादें संभालने वाले हरजीत सज्जन के मन में सिर पर चारा ढो रही दादी की छवि अभी भी ताज़ा है.

वैंकुवर में हरजीत सज्जन के माता-पिता खेतों में बेरी तोड़ते थे. उन्होंने अपने बच्चों को पाला और पढ़ाया. हरजीत सज्जन ने मंत्री बनने के बाद मैकलीअन नाम की वेबसाइट को बताया, "हम खेतीहर परिवार थे और मेरी दादी सिर पर चारा उठाकर लाती थी. हमारे पास तीन बैल थे और एक सुस्त-सा बैल मेरे आगे-पीछे घूमता रहता था."

पांच साल के हरजीत सज्जन अपनी मां और बहनों के साथ पिता के पास वैंकुवर चले गए.

खुले खेतों में घूमने वाले हरजीत को ज़्यादातर घर के अंदर रहना पड़ता था, लेकिन उन्होंने जल्दी ही अपने आप को नए माहौल में ढाल लिया. उस दौर में तीसरी दुनिया से कनाडा आए नौजवान गैंग्स की तरफ़ आकर्षित थे.

लेकिन हरजीत बताते हैं, "नस्लीय भेद-भाव होता था. लेकिन हमारी मंडली को गुंडागर्दी नापसंद थी."

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हरजीत सिंह सज्जन
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हरजीत सिंह सज्जन

धर्म की तरफ़ आकर्षण

इसी दौरान हरजीत का धर्म की तरफ़ आकर्षण बढ़ा. वह कहते हैं, "मुझे शराब और बुरी आदतों से बचने के लिए आसरे की दरकार थी."

हरजीत ने जब बाल रखने और पगड़ी बांधने का फ़ैसला किया तो उन्हें सलाह दी गई कि इस तरह वह सभी की नज़रों में रहेंगे और डेटिंग मुश्किल हो जाएगी. वह याद करते हैं, "इस मामले में कोई मुश्किल नहीं आई. मुझे विश्वास था कि आत्मविश्वास वाले लोगों के सभी कायल होते हैं."

इसके बाद हरजीत सज्जन फ़ौजी पायलट बनने के इरादे से रिज़र्व फ़ोर्स में भर्ती हो गए. ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने बाकियों से ज़्यादा रगड़ा बर्दाश्त किया. "उस समय कनाडा में नस्लीय भेद-भाव होता था. वह नस्लीय भेद-भाव से नस्लीय विविधता को परवान किए जाने के बीच का दौर था."

इस रगड़े से सताए हरजीत ने फ़ौज छोड़ने का फ़ैसला किया और अपने पिताजी से बात की. उन्हें अपने पिता की बात अभी भी याद है. "उन्होंने कहा कि घर आ जाओ, लेकिन याद रखना कि हर पगड़ी बांधने वाला और इसके बिना हर दूसरा आदमी अल्पसंख्यक समुदाय में शामिल है. तुम्हारे वापस लौटने से नाकामयाबी का दाग सभी पर लगेगा."

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हरजीत सिंह सज्जन
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हरजीत सिंह सज्जन

जासूसी का अनुभव

पुलिस में हरजीत को दक्षिणी वैंकुवर के गैंग्स की जासूसी के लिए तैनात किया गया. इसके बाद वह जूनियर कैप्टन के तौर पर नैटो सेना में बोस्निया गए जो उनके लिए बड़ा मौका था. इसी जगह पर उनकी निजी ज़िंदगी का तज़ुर्बा पेशेवर हुनर के तौर पर सामने आया.

हरजीत बताते हैं, "मैंने सरब बिरादरी को समझा. उस समय सभी सरबों को दानव के तौर पर देखा जा रहा था. हम लोगों से बात करते थे तो पता चलता था कि बाकियों की तरह उनकी भी पारिवारिक ज़िंदगियां हैं."

इस मुहिम के बाद उन्होंने पक्के तौर पर फ़ौज में रहने के बजाए वापस पुलिस में जाने का फ़ैसला किया. वह नशा-तस्करी में जुटी गैंग्स के धंधे में माहिर जासूस बने. उनके कई जानकार और स्कूल के साथी गैंग्स में शामिल थे.

उन्होंने इन गैंग्स से निपटने के लिए गैंग्स में शामिल लड़कों के माताओं-पिताओं, किराए पर घर देने वाले मकान मालिकों और तस्करी का माल इधर से उधर ले जाने वालों में मुखबिरों का जाल बिछाया. उनका यही तज़ुर्बा नैटो के साथ अगली मुहिमों में काम आया.

हरजीत को अफ़ग़ानिस्तान के कंधार प्रांत में स्थानीय समुदाय के अंदर मुखबिरों का ढांचा बनाने में कामयाबी मिली.

कंधार की स्थानीय भाषा पंजाबी के साथ मिलती-जुलती होने के कारण उन्हें स्थानीय लोगों से बात करने के लिए किसी अनुवादक की ज़रूरत नहीं पड़ी.

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हरजीत सिंह सज्जन
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हरजीत सिंह सज्जन

नेटो सेना का अनुभव

नैटो के ब्रिगेडियर जनरल डेविड फ़्रेज़र ने उन्हें 'पूरे जंगी थियेटर में कैनेडियन ख़ुफ़िया तंत्र का सबसे बेहतरीन एसेट' करार दिया.

नैटो की दो मुहिमों के बाद उन्होंने पुलिस से इस्तीफ़ा दे दिया और अमरीकी मेजर जनरल जेम्स टैरी के विशेष सहायक के तौर पर अफ़ग़ानिस्तान गए. जब जस्टिन ट्रूडो की हिमायत से हरजीत दक्षिणी वैंकुवर में लिबरल पार्टी के उम्मीदवार बनने की दौड़ में शामिल हुए तो नई बहस शुरू हो गई.

उनके मुकाबले में लिबरल पार्टी के भूतपूर्व मेंबर पार्लियामेंट बरज ढाहा थे, जिन्होंने अपना नाम वापस ले लिया.

हरजीत सज्जन के हवाले से सिखों की गुटबंदी उभर आई, लेकिन उनका दावा है, "मैं अपनी बिरादरी को जानता था और इसी कारण अलग-अलग गुटों में मेरे नाम पर एकता हुई."

हरजीत ने अपने जासूसी जीवन के दौरान एक तरफ़ स्थानीय संस्कृति और रीति-रिवाज़ का इस्तेमाल किया. वहीं दूसरी तरफ़ अकादमिक शोधार्थियों से भी संपर्क कायम रखा.

कई किताबें लिखने वाले अमरीकी रक्षा विशेषज्ञ बर्नट रूबिन का हरजीत सज्जन के साथ पुराना संपर्क है. रूबिन ने एक इंटरव्यू में बताया, "हरजीत ने गैंग्स के साथ मुकाबला करते हुए, जो तज़ुर्बा वैंकुवर की गलियों में हासिल किया, वही तालिबान के ख़िलाफ़ अफ़ग़ानिस्तान में लागू किया."

जब हरजीत चुनाव जीत गए तो ओटावा इलाके से चुनाव जीतने वाले भूतपूर्व जनरल एंड्रियो लैसले रक्षा मंत्री के पद के लिए सबसे बड़े दावेदार थे.

'सिखों' से माफ़ी के बाद ट्रूडो अब स्वर्ण मंदिर जाएंगे

हरजीत सिंह सज्जन
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हरजीत सिंह सज्जन

कोमागाटा मारू कांड की माफ़ी में भूमिका

हरजीत ने बर्नट रूबिन से अपनी छवि उभारने में मदद मांगी. बर्नट रूबिन ने बताया, "मैं जानता था कि हरजीत बहुत महत्वाकांक्षी है, लेकिन मुझे नहीं लगता था कि वह रक्षा मंत्री बन जाएगा."

रक्षा मंत्री बनने के बाद सज्जन ने सीरिया के शरणार्थियों के बारे में कई बयान दिए हैं.

वह पुरानी सरकार की नीतियों को लागू करते रहे हैं और उन्हीं उपलब्धियों के दम पर इस सरकार में मंत्री हैं.

नई सरकार की समझ पुरानी सरकार से अलग है, लेकिन हरजीत सज्जन की अहम ओहदों पर उपस्थिति लगातार कायम है. इसी दौर में कनाडा में कोमागाटा मारू कांड के लिए माफ़ी मांगी गई है.

कोमागाटा मारू हिंदुस्तानियों से भरा जहाज़ था जिसे 1914 में कनाडा के बंदरगाह पर सवारियों को उतारने नहीं दिया गया था और ज़बरदस्ती वापस भेज दिया गया था.

हरजीत सज्जन कामागाटा मारू कांड के लिए ज़िम्मेदार ब्रिटिश कोलंबिया रेजीमेंट के कमांडिंग अफ़सर रहे हैं.

हरजीत ने ग्लोब एंड मेल के पत्रकार से बात करते हुए कहा था, "हमारी रेजीमेंट उस दिन को काले दिवस के तौर पर याद करती है."

जब जस्टिन ट्रूडो से मिले जस्टिन ट्रूडो

हरजीत सिंह सज्जन
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1984 का कत्लेआम

जब ओंटारियो प्रांत में 1984 के सिख कत्लेआम को जनसंहार करार दिया गया तो हरजीत सज्जन के भारत भ्रमण के दौरान बहस शुरू हो गई.

हरजीत का बयान सीबीएस न्यूज़ पर दर्ज है. "मैंने अपने भारतीय समकक्ष को बताया है कि ओंटारियो लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई प्रांतीय सरकार है. ओंटारियो की प्रांतीय लिबरल पार्टी ही फ़ेडरल लिबरल पार्टी नहीं है."

इसी तरह जब उनको ख़ालिस्तानी करार दिया गया तो एसबीएस में उनका एक बयान छपा, "मैं पुलिस अफ़सर रहा हूं और अपने देश की सेवा की है. मेरे ख़िलाफ़ ऐसा बयान बेहूदगी से कम नहीं और मैं इसे अक्रामक मानता हूं."

इस मोड़ पर हरजीत सज्जन को समझने के लिए बर्नट रूबिन की मदद मिल सकती है जो विशेषज्ञ के तौर पर हरजीत के हुनर और महत्वाकांक्षा की गवाही देते हैं.

नोम चॉम्स्की और माइकल एलबर्ट के बोस्निया के बारे में लिखे लेख (नेटो, मीडिया, लाइज़) और अफ़ग़ानिस्तान में नेटो की मुहिमों के बारे में मानवीय अधिकार संगठनों की रिपोर्टें भी नेटों फ़ौजों की उपलब्धियों की तस्दीक करती हैं, लेकिन मायने बदल देती हैं.

हरजीत सज्जन का बयान हाउस ऑफ कॉमंस की सरकारी वेबसाइट पर दर्ज है. "हम यह यकीनी बनाना चाहते हैं कि जब कनाडा के लड़के-लड़कियां फ़ौजी मुहिमों पर जाएं तो उनके पास कामयाबी के लिए ज़रूरी सामर्थ्य हो."

इस बयान में हुनर की दावेदारी है और महत्वकांक्षा का इज़हार है जो कनाडा और हरजीत सज्जन को एक बना देता है.शायद इसी लिए वह कनाडा कि रक्षा मंत्री हैं.

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English summary
How Punjabs Farmer Harjeet Singh Sajjan Became Canadian Defense Minister
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