25 जून 1975: इन 4 प्रमुख कारणों की वजह से इंदिरा गांधी ने लागू किया था आपातकाल
25 जून 1975: इन 4 प्रमुख कारणों की वजह से इंदिरा गांधी ने लागू किया था आपातकाल
नई दिल्ली, 25 जून: भारत में 25 जून 1975 को लागू हुए आपातकाल की आज 46वीं वर्षगांठ है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की थी। ये आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च, 1977 तक चला था। यानी पूरे 21 महीने तक। ये भारत का पहला आपातकाल था। 26 जून 1975 के तड़के ऑल इंडिया रेडियो से प्रधानमंत्री (तत्कालीन) इंदिरा गांधी ने कहा, ''राष्ट्रपति (फखरुद्दीन अली अहमद) ने आपातकाल की घोषणा कर दी है। घबराने की कोई बात नहीं है।'' इंदिरा गांधी के ऑल इंडिया रेडियो स्टूडियो जाने से थोड़े दे पहले ही कैबिनेट मंत्रियों को इस इमरजेंसी के बारे में सूचित किया गया था। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने पिछली रात यानी 25 जून (1975) करीब 11.30 बजे आपातकाल की घोषणा की थी। इसके बाद फौरन ही दिल्ली भर के सारे समाचर पत्रों के ऑफिस में बिजली काट दी गई ताकी अगले दो दिनों तक अखबार में कुछ भी छापा ना जा सके। वहीं दूसरी ओर 26 जून की सुबह सैकड़ों राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं और कांग्रेस पार्टी का विरोध करने वाले ट्रेड यूनियनों को जेल में बंद कर दिया गया था।
इमरजेंसी के लिए इंदिरा गांधी ने तीन कारणों का किया था जिक्र
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इंदिरा गांधी सरकार द्वारा बताया गया कि भारत में 21 महीनों तक चलने वाले आपातकाल का लक्ष्य देश में फैले आंतरिक अशांति को नियंत्रित करना है। इसलिए देशभर में संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी पर अंकुश लगा दिया गया था। इंदिरा गांधी ने अपने संबोधन में तीन प्रमुख कारणों का जिक्र किया और आपतकाल को उचित ठहराया। पहला कारण देते हुए इंदिरा गांधी ने कहा, 'देश में जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए आंदोलन की वजह से भारत की सुरक्षा और लोकतंत्र खतरे में है।' दूसरा कारण देते हुए इंदिरा गांधी बोलीं, 'मेरा विचार है कि देश में तेजी से आर्थिक विकास और पिछड़े वर्गों, वंचितों के उत्थान की जरूरत है।' तीसरा इंदिरा गांधी ने कहा, ''विदेशों से आने वाली शक्तियां भारत को अस्थिर और कमजोर कर सकती हैं।''
आपातकाल के पहले देश में थी आर्थिक तंगी
25 जून 1975 को भारत में आपातकाल लागू होने से पहले के कुछ महीनों में देश में आर्थिक तंगी चल रही थी। देशभर में लोग बढ़ती बेरोजगारी, अत्यधिक मुद्रास्फीति और भोजन की कमी की परेशानियों से जूझ रहे थे। भारतीय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति के बीच देश कई हिस्सों में दंगे और विरोध प्रदर्शन किए जा रहे थे।
1970 के दशक की इन चार बड़ी वजहों के बाद इंदिरा गांदी ने लगाया आपातकाल
1. गुजरात का नवनिर्माण आंदोलन (1973)
अहमदाबाद में एल डी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्र फीस में बढ़ोतरी के विरोध में दिसंबर 1973 में हड़ताल पर चले गए थे। इस हड़ताल के ठीक एक महीने बाद गुजरात विश्वविद्यालय के छात्रों ने राज्य की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। इस पूरे आंदोलन को 'नवनिर्माण आंदोलन' या उत्थान के लिए आंदोलन का नाम दिया गया। उस वक्त गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल थे।
2. जेपी आंदोलन (1974)
गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन से प्रेरित होकर बिहार में भी इसी तरह का आंदोलन शुरू हो गया। मार्च 1974 में बिहार में एक भी एक छात्र आंदोलन शुरू। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए विपक्षी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। सबसे पहले इस विरोध का नेतृत्व 71 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण ने किया। जो जेपी के नाम से जाने जाते थे। इसलिए इस आंदोलन को जेपी आंदोलन कहा जाता है। बिहार में दूसरा विरोध प्रदर्शन उस वक्त हुआ, जब इंदिरा गांधी ने बिहार विधानसभा के निलंबन को स्वीकार नहीं किया था। इतिहासकारों का मानना है कि आपातकाल घोषित करने के लिए जेपी आंदोलन महत्वपूर्ण था।
3. रेलवे हड़ताल (1974)
बिहार में जब जेपी आंदोलन की आग लगी हुई थी तो उसी दौरान समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस के नेतृत्व में रेलवे की हड़ताल की घोषणा की गई थी। जिससे पूरे देश में रेल सेवा प्रभावित हुई थी। मई 1974 में शुरू हुआ रेलवे हड़ताल तीन हफ्तो तक चला था। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब में लिखा है, इस आंदोलन में करीब एक लाख रेलकर्मियों ने हड़ताल का सर्मथन किया था। लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार प्रदर्शनकारियों पर भारी पड़ी, हजारों रेलवे कर्मचारियों को गिरफ्तार किया गया और उनके परिवारों को उनके रेलवे क्वार्टर से बाहर कर दिया गया था।
4. राज नारायण फैसला
देशभर में विपक्षी दलों, ट्रेड यूनियनों और छात्रों द्वारा जारी विरोध प्रर्दशन के बीच इंदिरा गांधी के लिए समाजवादी नेता राज नारायण द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर याचिका एक नये खतरे के तौर पर सामने आया। समाजवादी नेता राज नारायण 1971 के रायबरेली संसदीय चुनावों में इंदिरा गांधी से हार गए थे। इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर अपनी याचिका में राज नारायण ने इंदिरा गांधी पर भ्रष्ट आचरण और गलत तरीकों से चुनाव जीतने का आरोप लगाया गया था। राज नारायण ने आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने अनुमति से अधिक पैसा खर्च किया और सरकारी अधिकारियों द्वारा उसका चुनाव अभियान चलाया गया था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान 19 मार्च 1975 को इंदिरा गांधी अपना बयान देने पहुंची। इंदिरा गांधी अदालत में गवाही देने वाली भारत की पहली प्रधानमंत्री बनी। 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सिन्हा ने इंदिरा गांधी के संसद के चुनाव को शून्य घोषित करने का फैसला पढ़ा। हालांकि इंदिरा गांधी ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 20 दिनों का समय मांगा।
जिसके बाद 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर सशर्त रोक लगा दी थी और फैसला दिया कि इंदिरा गांधी संसद में उपस्थित हो सकती हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साथ में ही कहा, जब तक अदालत ने उनकी अपील पर फैसला नहीं सुनाती है, तब तक उन्हें वोट देने की अनुमति नहीं दी जाएगी। जिसके बाद जेपी आंदोलन के नेताओं ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग की। कहा जाता है कि राज नारायण याचिका पर सुनवाई भी इमरजेंसी के पीछे की अहम वजह थी।